अद्धयात्म

वाल्मीकि से पहले हनुमानजी ने रची थी रामायण

एजेन्सी/  l_hanuman00-1460527229भगवान श्रीराम का प्राकट्य दिवस अत्यंत शुभ दिन माना जाता है। 15 अप्रेल 2016 (शुक्रवार) को रामनवमी है। भारत सहित दुनिया में जहां भी रामभक्त हैं, वे भगवान का पूजन-स्मरण करेंगे। इस दिन रामचरितमानस का पाठ अत्यंत पुण्यदायक होता है। इससे मन की समस्त शुभ इच्छाएं पूर्ण होती हैं। आमतौर पर भगवान राम की जीवनलीला के बारे में दो ही ग्रंथों का नाम आता है- रामायण और रामचरित मानस। इनके अलावा भी श्रीराम पर अनेक ग्रंथ रचे गए हैं। रामायण भी एक नहीं है। यह जानकर आपको आश्चर्य होगा कि भगवान श्रीराम पर हनुमानजी ने भी एक रामायण रची थी। 

माना जाता है कि सबसे पहले श्रीराम पर रामायण हनुमानजी ने ही रची थी। चूंकि वे भगवान राम के महान भक्त थे और बहुत विद्वान भी। परंतु एक विशेष कारण से उन्हें अपनी रचना समुद्र में बहानी पड़ी। हनुमानजी ने वह रामायण कागज या पत्तों पर नहीं, बल्कि चट्टानों पर लिखी थी। उसका नाम था हनुमद रामायण। यह रामायण उन्होंने रावण वध के पश्चात रची थी। वे हिमालय की चट्टानों पर अपने नाखूनों से रचना करते थे।

एक बार वाल्मीकि भी स्वरचित रामायण शिवजी को अर्पित करने के लिए कैलाश पर्वत गए। इसी दौरान उन्होंने चट्टान पर हनुमानजी द्वारा रचित रामायण देखी। उसे पढ़कर वाल्मीकि ने महसूस किया कि हनुमानजी की रचना अत्यंत उत्कृष्ट थी। उन्होंने वाल्मीकि रामायण से भी ज्यादा सुंदर रचना की थी। 

वाल्मीकि ने हनुमानजी की प्रशंसा करते हुए कहा कि आपकी रचना के सामने तो मेरा लेखन कुछ भी नहीं है। उस समय हनुमानजी ने अनुभव किया कि वाल्मीकि भी श्रीराम के भक्त हैं। वे महान कवि हैं। उनकी रचना मेरी रचना से ज्यादा सुंदर नहीं तो क्या हुआ, उस पुस्तक में भी श्रीराम का यश गाया गया है। अत: मुझे ऐसा निर्णय लेना चाहिए कि वाल्मीकि की रचना ही विश्व में आदर पाए, प्रसिद्ध हो जाए।

हनुमानजी ने रामायण रची शिला उठाई तथा उसे समुद्र में विसर्जित कर दी। वाल्मीकि के लिए हनुमानजी ने बहुत बड़ा त्याग किया। जब वाल्मीकि को यह ज्ञात हुआ तो उन्होंने हनुमानजी की स्तुति की और बोले, आपकी रामभक्ति धन्य है। मैं आपको वचन देता हूं कि कलियुग में रामायण की रचना के लिए फिर जन्म लूंगा। श्रीराम ने वाल्मीकि की यह इच्छा पूर्ण की तथा वे कलियुग में तुलसीदास के रूप में प्रकट हुए। इस जन्म में उन्होंने रामचरित मानस की रचना की तथा हनुमान चालीसा रचकर हनुमानजी के त्याग को भी नमन किया। 

 

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