वेश्याएं बुरी हैं पर उनकी कहानियां क्या सचमुच अच्छी?
सीरियल में क्रिस्टीन रीड लॉ कंपनी में काम सीख रही हैं और रात में पेशा करती हैं। इस सीरियल की कहानी, लॉज केरिगन और एमी सीमेट्ज नाम के फ़िल्म निर्माताओं ने लिखी है। सवाल यह कि सीरियल का मक़सद, इसकी हीरोइन की तारीफ़ करना है या उसके किरदार को नीचा दिखाना? हम जितना वक़्त क्रिस्टीन के साथ बिताते हैं, उतना ही उसको समझने के बजाय उससे दूर हो जाते हैं। उतना ही उसका किरदार रहस्य के पर्दों में छुपता जाता है। हॉलीवुड में वेश्याओं को जिस तरह पेश किया गया है, उनमें वो ज़्यादातर शोषण की शिकार दिखाई गई हैं। चाहे वो ”बटरफील्ड 8” हो या फिर ”प्रेटी वुमन” जैसी फ़िल्म। फ़िल्म निर्माता-निर्देशकों ने इन किरदारों को ऐसे पेश किया है कि कभी वो लुभाती हैं, वासना जगाती हैं। कभी उनके किरदार इतने ख़राब बताए जाते हैं, मानो कहानी लिखने वाला उन्हें और बाक़ी समाज को नैतिकता का पाठ पढ़ाना चाहता है।
किसी वेश्या के किरदार वाली पहली हॉलीवुड फ़िल्म थी 1929 में आई ”पैंडोराज़ बॉक्स”। इस मूक फ़िल्म में लुलू नाम की वेश्या ही मुख्य भूमिका में थी। इसमें लुलू को ऐसी महिला के बतौर पेश किया गया, जो अपनी ख़ूबसूरती के बूते मर्दों के दिलों पर राज करती है। मगर, क़त्ल के एक आरोप की वजह से वो वेश्यावृत्ति के दलदल में फँस जाती है।
इसके बाद लुलू जिन मुसीबतों का सामना करती है, उससे यूँ ज़ाहिर होता है, जैसे वेश्यावृत्ति बहुत ख़राब चीज़ है। इसकी एक और वजह ये थी कि लुलू का रोल कभी वेश्या रही ब्रूक्स नाम की एक्ट्रेस ने किया था। जिसने तीन फ़िल्मों में कॉल गर्ल का ही रोल किया। तीसरी फ़िल्म में बदनाम सीरियल किलर जैक द रिपर को उसका क़त्ल करते दिखाया गया था। हॉलीवुड फिल्म ”पैंडोराज़ बॉक्स” से प्रेरणा लेकर फ्रेंच निर्देशक ज्यां लू गोडार्ड ने 1962 में फ़िल्म बनाई- ”माय लाइफ़ टू लिव।”
फ़िल्म में एक ऐसी लड़की की ज़िंदगी की कहानी थी जो अभिनेत्री बनना चाहती थी, मगर वेश्या बन गई। उस किरदार का नाम था ‘नाना’। नाना को ”पैंडोराज़ बॉक्स” की लुलू की तरह ही पेश किया गया था। दिलचस्प ये है कि ताज़ा सीरीज़, ”द गर्लफ्रैंड एक्सपीरियंस” में क्रिस्टीन की एक दोस्त को वैसे ही मेकअप में दिखाया गया था। गोडार्ड ने अपनी फ़िल्म में नाना के किरदार को जैसे पेश किया, वो उन हालात को बयां करता था, जिनसे कोई भी वेश्या गुज़रती है। जब उसके ख़्वाब टूटते हैं, जब वो इमोशनल होती है और जब वो दिल टूटने की तकलीफ़ से गुज़रती है। वेश्याओं पर बनी एक और मशहूर फ़िल्म 1971 में बनी ”क्लूट” है। यूँ तो इसकी कहानी क़त्ल का एक केस सुलझाने की कोशिश करने वाले जासूसी एजेंट की है। मगर इसमें एक बड़ा रोल ब्री डेनियल्स नाम की कॉल गर्ल का भी है।
यह रोल मशहूर अभिनेत्री जेन फोंडा ने किया था। इसके लिए जेन को सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का ऑस्कर अवार्ड भी मिला था। जेन का किरदार यानी ब्री डेनियल्स बंदिशों के आज़ाद महिला का है। फ़िल्म के एक सीन में वह एक ग्राहक से संबंध बनाते वक़्त अपनी घड़ी पर नज़र डालती है। आमतौर पर ऐसे मौक़ों पर लोग घड़ी नहीं देखते। मगर ये सीन दिखाता है कि वो अपने पेशे के प्रति कितनी ईमानदार है, वक़्त की पाबंद है। जेन फोंडा का रोल ”द गर्लफ्रैंड एक्सपीयिरंस” की क्रिस्टीन से काफ़ी मेल खाता है। आम धारणा है कि वेश्यावृत्ति सिर्फ़ महिलाओं का पेशा है। मगर इसे चुनौती देते हुए 1980 में हॉलीवुड में फ़िल्म बनी ”अमेरिकन जिगोलो”। इसमें एक मर्द को सेक्स का पेशा करते दिखाया गया था। फ़िल्म का हीरो महंगी कारों का शौक़ीन था और अधेड़ उम्र महिला ग्राहकों को ख़ुश करने के पैसे लेता था। मगर उसकी ज़िंदगी तब बदल जाती है जब वह एक नेता की पत्नी से मिलता है, जो ज़िंदगी से बेज़ार एक अधेड़ महिला है। तब जिगोलो को प्यार के मानी समझ में आते हैं। यह किरदार मशहूर हॉलीवुड अभिनेता रिचर्ड गियर ने बख़ूबी निभाया था।
”द गर्लफ्रैंड एक्सपीरियंस” सीरियल को वेश्यावृत्ति पर बनी अब तक की सभी फ़िल्मों के किरदारों का कॉकटेल कहें तो ग़लत नहीं होगा। वैसे टीवी में कॉलगर्ल्स को हमेशा एक ख़ास चश्मे से ही देखा गया है। ऐसी महिलाएं जो देह का धंधा करने को मजबूर हैं। मगर उनका दिल सोने का है। ऐसे सीरियल्स में एचबीओ पर आया सीरियल वेस्टर्न डेडवुड और ब्रेकिंग बैड। वेस्टर्न डेडवुड की कॉलगर्ल ट्रिक्सी ज़्यादा असरदार रोल माना जाता है। सीरियल के तीन सीज़न्स में ट्रिक्सी सबसे पसंदीदा रोल माना गया था। उसके मुक़ाबले ब्रेकिंग बैड में कॉलगर्ल किरदार वेंडी, बहुत असरदार नहीं दिखी।
हालांकि सीरियल के बाद के एपिसोड में उसका रोल कुछ बेहतर हुआ था। मगर हर नए ग्राहक से मुलाक़ात के साथ ही वेंडी का किरदार कमज़ोर होता जाता है। और अब ”द गर्लफ्रैंड एक्सपीरियंस” की क्रिस्टीन रीड हमारे सामने हैं। जो अपने से पहले के कॉलगर्ल के तमाम रोल का मिला-जुला रूप हैं। सीरियल में वो दिन में कॉरपोरेट लॉ फर्म के बेहद थकाऊ काम में व्यस्त रहती है। तो रात में वो हाई प्रोफ़ाइल कॉल गर्ल बन जाती है।
यूं तो सीरियल निर्माता सोडेरबर्ग ने इससे पहले इसी नाम से और इसी कहानी पर फ़िल्म बनाई थी। मगर ये सीरियल ”द गर्लफ्रैंड एक्सपीरियंस” असल में इसके लेखकों केरीगन और सेमिट्ज का है।
सीरियल का निर्देशन दोनों ने मिलकर किया है, लेकिन अलग-अलग एपिसोड दोनों ने अलग-अलग निर्देशित किए हैं। इससे दोनों की छाप एकदम अलग दिखती है। इसी वजह से 13 एपिसोड का ये सीरियल साढ़े छह घंटे की फ़िल्म लगता है। सीरियल के आख़िर तक आते-आते क्रिस्टीन अपने दोनों पेशों में तेज़ी से कामयाबी की सीढ़ियां चढ़ती है। मगर उसकी लॉ फ़र्म के एक साथी को पता चल जाता है कि वह रात में कॉलगर्ल का पेशा भी करती है। इस सच का सामना करती हुई क्रिस्टीन की एक्टिंग वाकई शानदार है। सेक्स, कॉरपोरेट नौकरी और ज़िंदगी की चुनौतियों का सामना करती क्रिस्टीन पूरी तरह हालात को अपने काबू में रखती दिखती है। अंदर वो कितना टूट चुकी होती है, ये सीरियल देखकर ज़ाहिर नहीं होता। शायद निर्देशकों ने इसकी ज़रूरत नहीं समझी। हां, सीरियल देखकर एक बात फिर साबित होती है कि कामयाबी के शिखर पर पहुँचकर आप बहुत अकेलापन महसूस करते हैं।