मुहल्ले के दुकानदार, आठ साल में हो जाएंगे गायब
नई दिल्ली। अगले कुछ सालों में दुकानदारी का सारा गणित बदल जाएगा। न दुकानें दिखेंगी, न सामान बेचते दुकानदार। सामान खरीदने और बेचने के लिए शायद मुहल्ले की दुकानें और शहर की पॉश लोकैलिटी में बने छोटे-बड़े स्टोर नदारद हो जाएं। पारंपरिक दुकानें चलाने वालों के लिए यह खतरे की घंटी है। नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत ने इस खतरे का साफ संकेत दिया है।
यहां आयोजित एक कार्यक्रम में पहुंचे कांत ने कहा कि भारत एक अरब मोबाइल फोन और बायोमीट्रिक पहचान वाला एकमात्र देश है। बीते 45 सालों में 19 बैंकों को लाइसेंस मिले। जबकि पिछले नौ महीनों में ही 23 पेमेंट बैंकों को लाइसेंस प्रदान किए गए। ऐसे माहौल में पारंपरिक दुकानों (ब्रिक एंड मोर्टार स्टोर) का खत्म होना तय है।
कांत ने इसके पीछे कई ठोस कारण गिनाए। उन्होंने कहा, “मौजूदा ई-कॉमर्स बाजार 18 से 19 अरब डॉलर के करीब है। मेरी मानें तो यह 2023 तक 300 अरब डॉलर का जाएगा।” वह बोले कि 2023 तक सभी लेनदेन मोबाइल और टेलीफोन पर होंगे।
इसकी वजह यह है कि अभी करीब 35 करोड़ लोग इंटरनेट का इस्तेमाल कर रहे हैं। जबकि 2020-23 तक भारत में करीब एक अरब लोग इंटरनेट का उपयोग करेंगे। ज्यादा लोगों के हाथों में स्मार्टफोन आने के साथ इंटरनेट का इस्तेमाल भी बढ़ेगा। सौ करोड़ भारतीयों की पहुंच में इंटरनेट, आधार कार्ड (बायोमीट्रिक पहचान) और हाथों में स्मार्टफोन दुनिया को बदलकर रख देगा।
कांत का बयान इसे देखते हुए भी खासा अहम है कि हाल के दिनों में कई बार ऐसा हुआ जब पारंपरिक दुकानदार और गैर-पारंपरिक यानी ऑनलाइन बिक्री करने वाले विभिन्न मुद्दों को लेकर आमने-सामने दिखे। ई-कॉमर्स कंपनियों के बिक्री के तौर-तरीकों को लेकर पारंपरिक दुकानदार शुरुआत से ही अपनी नाराजगी जताते रहे हैं।
खासतौर पर फ्लिपकार्ट, स्नैपडील, अमेजन जैसी ई-कॉमर्स फर्मों की ओर से भारी छूट पर उत्पादों की बिक्री से अपने नुकसान को देखते हुए ये दुकानदार सरकार पर दबाव बनाए हुए हैं।