मेरी कलम से…
केन्द्र की मोदी सरकार भी पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार का अनुसरण करते हुए राज्यों की सत्ता में दखलंदाजी करके येन-केन प्रकारेण अपने दल के लाभ के लिए शतरंज की हर चाल की तरह शह और मात का खेल जारी रखना चाहती है। उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव के बाद के परिणाम में आंशिक अंतर से भाजपा की सरकार न बन पाने की कशक भाजपा नेताओं को लगातार टीसती रही और उनकी इस कशक को ताकत तब मिली जब उत्तराखंड के कांग्रेसी बागियों का साथ मिल गया। हरक सिंह रावत, विजय बहुगुणा और कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो चुके सतपाल महाराज इन तीनों की तिकड़ी ने मिलकर हरीश रावत सरकार के खिलाफ एक ऐसा षड्यंत्र रचा जिससे हरीश रावत सरकार अत्यधिक आत्मविश्वास में धोखा खा गयी और बजट सत्र में विरोधियों ने खुलकर सरकार के खिलाफ अपना मत देते हुए अल्पमत की सरकार को गिराने का दावा किया और उसके बाद सिलसिला शुरू हुआ विधायकों की खरीद-फरोख्त का। जो राजनीतिक परिदृश्य की लालसा और मौकापरस्ती का उदाहरण बन चुकी है। इस राजनीतिक घटनाक्रम में हरीश रावत खुद भी एक बड़ी भूल कर बैठे और एक पत्रकार के द्वारा विधायकों को खरीदने के मैनेजमेंट के लालच में एक स्टिंग ऑपरेशन में फंस गये। हालांकि हरीश रावत ने उसको मानने से इनकार किया है लेकिन केन्द्र में बैठी मोदी सरकार ने इसे एक महत्वपूर्ण साक्ष्य मानकर सरकार को बर्खास्त करने का आधार बना लिया और उत्तराखण्ड में राज्यपाल के द्वारा पूर्व में दी गयी 28 मार्च की तारीख से एक दिन पहले 27 मार्च को ही राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया। अब प्रश्न यह उठता है कि जब बहुमत सिद्ध करने का राज्यपाल द्वारा पूर्व में तारीख की घोषणा की जा चुकी थी तो एक दिन के अंतर में ऐसा क्या होने वाला था जिसका केन्द्रीय सत्ता इंतजार नहीं कर सकी। तो कुल मिलाकर बात इतनी ही है कि राजनीतिक खेल में बेईमानी, धोखा अकाट्य सत्य बन चुका है, केवल उसको संवैधानिक अमली जामा पहनाने का नाटक किया जाता है।
उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लगाने को कांग्रेस न्यायालय में चुनौती दे रही है और भाजपा इसके प्रति उत्तर में मजबूत पैरोकारी कर अपने निर्णय को बचाये रखना चाहती है। कांग्रेसियों का ये आरोप कि उनके साथ अन्याय किया जा रहा है और भारतीय जनता पार्टी की केन्द्र में शासित सरकार ने असंवैधानिक तरीके से राष्ट्रपति शासन लागू किया है किन्तु स्टिंग ऑपरेशन में फंसे हरीश रावत के पास इसका कोई जवाब नहीं है कि आखिर विधायकों की खरीद-फरोख्त की बात वो क्यों कर रहे थे? अगर भारतीय जनता पार्टी असंवैधानिक कार्य कर रही थी तो उनका कृत्य भी कोई संवैधानिक नहीं था। स्टिंग ऑपरेशन के बारे में सवाल तो खड़े किये जा सकते हैं किन्तु स्टिंग ऑपरेशन करने वाले पत्रकार के चरित्र हनन को हथियार बनाकर स्टिंग आपरेशन को नकारा नहीं जा सकता। कानूनी तौर पर स्टिंग की वैधता को चैलेंज किया जा सकता है किन्तु आम जनमानस में और राजनीतिक गलियारों में स्टिंग ऑपरेशन की सत्यता की चर्चा हो रही है। इस खेल में सही और गलत का आरोप लगाने वाले दोनों पक्ष के हाथ राजनीतिक चालबाजियों और धोखाधड़ी में संलिप्त हैं। हर राजनीतिक दल अपने को साफ-सुथरा बताता जरूर है लेकिन सत्ता में आने के बाद वही कार्य करता है जो पूर्ववर्ती राजनीतिक लोग करते रहते हैं। इसलिए उत्तराखंड का राजनीतिक घटनाक्रम कुछ नया नहीं, जब भी केन्द्र में सरकारें बदलती हैं तो वे अपने हित के हिसाब से राज्यों की सरकारों में दखल देती ही रहती हैं। ऐसा होता रहा है और होता भी रहेगा क्योंकि वर्तमान समय में कोई ऐसी राजनीतिक धारा या दल नहीं दिखाई पड़ता कि वो राजनीतिक शुचिता का कोई नया मापदंड खड़ा कर पायेगा। केन्द्र शासित भाजपा ने भी उत्तराखंड की घटनाक्रम से यह साबित कर दिया है कि वह अपनी एकमात्र प्रतिद्वन्द्वी कांग्रेस पार्टी के ही पूर्ववर्ती कार्यों का अनुसरण करती रहेगी। विरोध तो बस सत्ता में आने के लिए ही किया जाता है।