उत्तर प्रदेशराष्ट्रीय
हैदराबाद के लड़के ने मोबाइल से फिल्में बनाकर लगा दी पुरस्कारों की झड़ी
पढ़ाई तो अपनी जगह थी लेकिन देश-समाज के लिए कुछ करने की आग उसके दिल में हमेशा से धधकती रही। कॉलेज के दौरान उसने अपनी क्लास के हर स्टूडेंट से एक रुपया बतौर चंदा जुटाना शुरू कर दिया। महीने के आखिर में जुटाए गए चंदे को सामाज कल्याण के कार्यों में देना था तो उसने शुरुआत आंखों से अक्षम बच्चों के स्कूल से की।
स्कूल में इमारत तो थी। लेकिन संसाधनों का अभाव था। आज की जरूरत के हिसाब से कंप्यूटर नहीं थे। समस्या का हल निकालने के लिए उसके दिमाग में अनूठा आइडिया आया। उसने अपना मोबाइल निकाला और स्कूल की फिल्म बनानी शुरू कर दी।
मोबाइल फोन से बनाई गई शॉर्ट फिल्म को हैदराबाद के लायंस क्लब ने देखा। फिल्म देख संस्था के लोगों का दिल पसीज गया और 12 कंप्यूटर उस स्कूल में लगवा दिए।
स्कूल की बेहतरी में किया गया ये काम हैदराबाद के अंशुल की सक्सेस स्टोरी का पहला स्टेप बना। इस काम से मिली प्रेरणा अंशुल को बहुत आगे तक ले आई और सफर अब भी जारी है। मोबाइल फोन से बनाई डॉक्युमेंट्री फिल्में के लिए आज सैकड़ों पुरस्कारों से अंशुल का घर भरा है।
ये सक्सेस स्टोरी उन लोगों के सपनों में प्राण फूंक सकती है जो संसाधनों से मोहताज हैं फिर भी जीवन में कुछ बड़ा करना चाहते हैं। आगे की स्लाइड में पढ़ें पूरी सक्सेस स्टोरी।
स्कूल में इमारत तो थी। लेकिन संसाधनों का अभाव था। आज की जरूरत के हिसाब से कंप्यूटर नहीं थे। समस्या का हल निकालने के लिए उसके दिमाग में अनूठा आइडिया आया। उसने अपना मोबाइल निकाला और स्कूल की फिल्म बनानी शुरू कर दी।
मोबाइल फोन से बनाई गई शॉर्ट फिल्म को हैदराबाद के लायंस क्लब ने देखा। फिल्म देख संस्था के लोगों का दिल पसीज गया और 12 कंप्यूटर उस स्कूल में लगवा दिए।
स्कूल की बेहतरी में किया गया ये काम हैदराबाद के अंशुल की सक्सेस स्टोरी का पहला स्टेप बना। इस काम से मिली प्रेरणा अंशुल को बहुत आगे तक ले आई और सफर अब भी जारी है। मोबाइल फोन से बनाई डॉक्युमेंट्री फिल्में के लिए आज सैकड़ों पुरस्कारों से अंशुल का घर भरा है।
ये सक्सेस स्टोरी उन लोगों के सपनों में प्राण फूंक सकती है जो संसाधनों से मोहताज हैं फिर भी जीवन में कुछ बड़ा करना चाहते हैं। आगे की स्लाइड में पढ़ें पूरी सक्सेस स्टोरी।
अंशुल सिन्हा ने मात्र 21 साल की उम्र में मोबाइल फोन के जरिए फिल्मों की शूटिंग शुरू की। अंशुल की सारी फिल्में सामाजिक मुद्दों पर ही आधारित है और उनका उद्देश्य आम लोगों को इन मुद्दों से जागरूक कराना है। अंशुल ने अपने इस अनोखे काम के लिए 102 पुरस्कार जीते हैं।फिल्मों में शौक के चलते अंशुल ने एमबीए की पढ़ाई पूरी करने के बाद भारतीय विद्या भवन से मास कम्यूनिकेशन में डिप्लोमा किया। हैदराबाद से उसने डॉक्युमेंट्री फिल्म बनाने का सफर शुरू किया। अब तक का यह सफर काफी रोचक रहा क्योंकि अंशुल सारी फिल्में मोबाइल फोन के जरिए बनाता है।
वह अब तक 41 फिल्में बना चुका है। उसे 102 पुरस्कार से नवाजा भी गया, जिसमें 22 इंटरनेशनल नोमिनेशन शामिल हैं। उसकी पहली फिल्म भारत में गरीबी पर आधारित थी जिसने कॉलेज, युनिवर्सिटी और राज्य स्तर पर 15 पुरस्कार जीते। उसने भारती फिल्म फेस्टिवल में भी 14 पुरस्कार जीते।
साल 2012 में कॉलेज खत्म करने के बाद अंशुल ने एक और शॉर्ट फिल्म ‘लपेट’ बनाई। अंशुल की इस फिल्म ने लॉस एंजेल्स में आयोजित फिल्म फेस्टिवल में धूम मचाई और उसे पहला इंटरनेशनल अवॉर्ड मिला।
इन फिल्मों की शूटिंग करने में उसे कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। अंशुल ने बताया कि उसकी इन फिल्मों को प्रोड्यूस करने के लिए कोई तैयार नहीं था। तब उसने रात में काम कर पैसे जमा करने शुरू किए। वह रातभर काम करता था और दिन में शूटिंग। उसका कहना है कि उसने यह अनोखा काम समाज में कुछ बदलाव लाने के लिए किया है और वह यह भी चाहता है कि देश के युवा आगे आकर कुछ अलग करें और समाज को नई दिशा की ओर जाने के लिए प्रेरित करें।
वह अब तक 41 फिल्में बना चुका है। उसे 102 पुरस्कार से नवाजा भी गया, जिसमें 22 इंटरनेशनल नोमिनेशन शामिल हैं। उसकी पहली फिल्म भारत में गरीबी पर आधारित थी जिसने कॉलेज, युनिवर्सिटी और राज्य स्तर पर 15 पुरस्कार जीते। उसने भारती फिल्म फेस्टिवल में भी 14 पुरस्कार जीते।
साल 2012 में कॉलेज खत्म करने के बाद अंशुल ने एक और शॉर्ट फिल्म ‘लपेट’ बनाई। अंशुल की इस फिल्म ने लॉस एंजेल्स में आयोजित फिल्म फेस्टिवल में धूम मचाई और उसे पहला इंटरनेशनल अवॉर्ड मिला।
इन फिल्मों की शूटिंग करने में उसे कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। अंशुल ने बताया कि उसकी इन फिल्मों को प्रोड्यूस करने के लिए कोई तैयार नहीं था। तब उसने रात में काम कर पैसे जमा करने शुरू किए। वह रातभर काम करता था और दिन में शूटिंग। उसका कहना है कि उसने यह अनोखा काम समाज में कुछ बदलाव लाने के लिए किया है और वह यह भी चाहता है कि देश के युवा आगे आकर कुछ अलग करें और समाज को नई दिशा की ओर जाने के लिए प्रेरित करें।