कट्टरपंथी ट्रैप में बांग्लादेश
बांग्लादेश में सिर्फ पांच साल के लिए शरिया लॉ लागू कर दिया जाए और मदीना लॉ के तहत रूल किया जाए। मैं दावे के साथ कहता हूं कि पांच साल बाद कोई भी मुसलमान इस्लामिक लॉ की बात नहीं करेगा।’ यह टिप्पणी उस बांग्लादेशी युवक नजीमुद्दीन समद की है जिसकी जिंदगी इसी माह के पहले सप्ताह में कट्टरता की भेंट चढ़ गयी। बांग्लादेश ‘मुक्ति’ की लड़ाई लड़कर वजूद में आया था, लेकिन बांग्लादेश के सामने यह सवाल शायद पुन: उठ रहा है कि मुक्ति पाथे कौन? कट्टरपंथ जिस तरह से धर्मनिरपेक्ष लेखकों, ब्लॉगरों और अल्पसंख्यकों को मौत के घाट उतार रहा है, उससे यह अनुमान तो लगाया जा सकता है अभी भी वहां समाज के प्रगतिशील लोग मुक्त नहीं हैं। ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या इसे बांगलादेश में कानून और व्यवस्था तक सीमित करके देखा जाए या फिर यह मान लिया जाए कि इसका फलक बहुत विस्तृत है? सही अर्थों में तो यह केवल कानून-व्यवस्था का सामान्य मामला नहीं है बल्कि यह कट्टरपंथ का उभार है जिसका असर दूर तक होना है। तो फिर ये तथ्य कहीं इस बात की ओर इशारा तो नहीं कर रहे कि एक राष्ट्र के रूप में बांग्लादेश को परिभाषित करने का संघर्ष आज भी जारी है? पिछले लगभग एक वर्ष में बांग्लादेश में सुनियोजित तरीके से अल्पसंख्यकों, धर्मनिरपेक्ष ब्लॉगरों और विदेशियों को कट्टरपंथी हमलों के जरिए निशाना बनाया जा रहा है। इनमें नजीमुद्दीन समद, अविजीत रॉय, अनंत बिजॉय दास, वशीकुर रहमान, निलॉय चक्रवर्ती, अरेफिरन दीपान, राजीव हैदर, आसिफ मोहिउद्दीन आदि प्रमुख हैं। इनमें में से कुछ की हत्या की जिम्मेदारी इस्लामी स्टेट ने ली है और कुछ की अंसारुल्लाह बांग्ला टीम अथवा अन्य किसी चरमपंथी संगठन ने। उल्लेखनीय है कि अंसारुल्लाह के तार अल कायदा से भी जुड़े हैं और जमात-ए-इस्लामी से भी। इससे सहज अनुमान लगाया जा सकता है कि बांग्लादेश में जो हत्याएं हो रही हैं उनका निहितार्थ स्थानीय कारकों में नहीं बल्कि बांग्लादेश से बाहर है। हालांकि बांग्लादेश संवैधानिक रूप से एक धर्मनिरेपक्ष राष्ट्र है, लेकिन कट््टरपंथी इसे इस्लामी देश बनाना चाहते हैं। सेक्युलर बुद्धिजीवी, लेखक-पत्रकार और समाजकर्मी उनके कट्टरपंथ की आलोचना करता है या फिर वह इस्लाम के कट्टरपंथी विचारधारा और उसके विविध पक्षों को निशाना बनाता है। इसलिए इनका कट्टरपंथियों द्वारा इनका निशाना बनना स्वाभाविक सी बात है। गौर करने लायक बात यह है कि 1971 के युद्ध अपराधों पर सुनवाई के लिए न्यायाधिकरण के गठन के बाद उदारवादियों और लोकतंत्रवादियों पर कट्टरपंथियों के हमले और तेज हो गए, क्योंकि जमात-ए-इस्लामी के कई प्रमुख लोगों के खिलाफ न्यायाधिकरण ने सजा सुनाई। सामान्यतया बांग्लादेश की अवामी लीग सरकार धर्मनिरपेक्षता की तरफदार है, लेकिन कट्टरपंथी गुटों से निपटने में वह काफी शिथिल नजर आ रही है। मजे की बात यह है कि सरकार ने कट्टरपंथी इस्लामवादियों के साथ-साथ कुछ सेक्युलर ब्लॉगरों और बुद्धिजीवियों को भी जेल में इसलिए बंद कर दिया ताकि वह ‘संतुलन’ बनाए रख सके और इस्लामवादियों की गुस्से का शिकार न हो।
हालांकि बांग्लादेश में इन हत्याओं, विशेषकर अविजित रॉय की हत्या के बाद जिस तरह से विरोध-प्रदर्शन हुए थे, उससे सरकार को एक बड़ा संदेश मिला था, लेकिन मजहबी सियासती नफा-नुकसान शायद इस पर ज्यादा भारी पड़ा। सर्वाधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि वर्ष 2013 में अंसारुल्लाह बांग्ला टीम नाम के कट्टरपंथी संगठन ने 84 सेक्युलर ब्लॉगरों की एक सूची जारी की थी, जिसमें उन सभी लोगों के नाम शामिल थे, जो कलम के जरिए धार्मिक समानता, महिला अधिकारों और अल्पसंख्यकों को मुद्दा उठाते रहते थे, और अब मारे जा चुके हैं। इसके बावजूद सरकार कोई निर्णायक कार्रवाई करने में सफल नहीं हुयी है। कार्य-कारण सम्बंधों की दृष्टि से देखा जाए तो आजादी के कुछ समय बाद ही बांग्लादेश अपने धर्मनिरपेक्ष चरित्र से भटकने लगा क्योंकि उसके तत्कालीन सैन्य शासकों ने सत्ता पर पकड़ मजबूत बनाने के लिए इस्लाम को राष्ट्रीय धर्म की हैसियत प्रदान कर दी थी। इसका एक अन्य कारण बांग्लादेशी जनरलों का पाकिस्तान की ओर झुकाव भी था जहां इस दशक में जनरल जियाउल हक हुदा और ईश निंदा कानून लागू कर रहे थे। परिणाम यह हुआ कि बांग्लादेश में मदरसों की शृंखला और कट्टरपंथियों की फौज स्थापित हो गयी। 2001 के बाद से वहां पाकिस्तान की ओर से तालिबान और अलकायदा के लड़ाके भी पहुुंचने लगे जिन्होंने रिफ्यूजी कैम्पों से रोहिंग्याओं (बर्मी मुस्लिम) को, अफगानिस्तान, कश्मीर और चेचन्या से जिहादियों को भर्ती कर कट्टरपंथियों और तथाकथित जिहादियों की एक फौज खड़ी कर ली। तमाम आतंकी संगठन पनपे जिन्होंने बांग्लादेश या भारत में ही नहीं बल्कि दुनिया के तमाम हिस्सों में आतंकी गतिविधियों को अंजाम दिया जैसे-हरकत-उल-जिहाद-अल-इस्लामी (हूजी), इस्लामी ओकैया जोटे, जाग्रत मुस्लिम जनता बांग्लादेश (जेएमजेबी), जमात-उल-मुजाहिदीन बांग्लादेश (जेएमबी)…आदि। यहीं से बांग्लादेश में कट्टरपंथी जमातें ताकतवर हुयीं और धर्मनिरपेक्ष धीरे-धीरे कमजोर होकर हाशिए की तरफ जाने के लिए विवश हुए। चूंकि सरकारें कट्टरपंथी सहयोग पर टिकीं थीं इसलिए वे उनके खिलाफ कोई कदम उठाने में समर्थ नहीं हुयीं। हालांकि अब बाहरी दबाव के चलते बांग्लादेश की सरकार और न्यायपालिका इस दिशा में कुछ करना चाहती है लेकिन अब यह कार्य आसान नहीं रह गया। उल्लेखनीय है कि कुछ समय पहले ही बांग्लादेश के एक हाईकोर्ट ने धर्मनिरपेक्ष संगठनों की ओर से इस विषय पर दायर एक याचिका पर सुनवाई के लिए अपनी सहमति प्रदान कर दी है लेकिन जमाते-ए-इस्लामी जैसे कट्टरपंथी संगठन इसे किसी भी कीमत पर स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हैं क्योंकि उनकी दृष्टि में सेक्युलरों का तात्पर्य धर्मविरोधियों से है जो इस्लाम से राष्ट्रीय धर्म की हैसियत छीनने का षड्यंत्र कर रहे हैं। इसका मतलब यह हुआ कि अभिव्यक्ति और अधिकारों पर चलने वाली कट्टरपंथी फिलहाल अभी रुकने वाली नहीं है। आधुनिक कही जाने वाली दुनिया का शायद यह सबसे दु:खद पक्ष है, जिसे राज्य की सत्ता, कानून की सरकार होने के बावजूद मनुष्य भोगने के लिए विवश है।
बांग्लादेश में जगह बना रहा आईएस
एक लम्बे समय से छुट-पुट अंतराल के बाद इस तरह की खबरें आ ही जाती हैं कि इस्लामी स्टेट (आईएस) भारत में अपनी गतिविधियों को अंजाम देने की रणनीति पर काम कर रहा है। कुछ सूचनाओं के अनुसार आईएस भारत पर गुरिल्ला हमले करने की मंशा रखता है। इस्लामिक स्टेट का दावा है कि बांग्लादेश में उसका नेटवर्क सक्रिय है। बांग्लादेश को गढ़ बनाकर भारत और म्यांमार को निशाना बनाने की तैयारी है। इस्लामिक स्टेट की प्रोपेगंडा मैग्जीन ‘दबिक’ ने बांग्लादेश के आतंकियों की तस्वीरें जारी की हैं जो बांग्लादेश से लेकर भारत तक इस्लामी स्टेट के लिए काम करने के लिए तैयार हैं। अबु इब्राहिम ने बांग्लादेश को वैश्विक जिहाद के लिए बहुत अहम जगह बताया है। उसके अनुसार बंगाल यानि बांग्लादेश की भौगोलिक स्थिति बड़ी अहम है, यहां जिहाद का मजबूत केंद्र होने से भारत में अंदर और बाहर से गुरिल्ला हमले करना आसान होगा। अमेरिकी खुफिया एजेंसी भी बांग्लादेश को आईएस की मौजूदगी की चेतावनी दे चुकी है। हालांकि बांग्लादेश सरकार अब तक इस बात से इन्कार करती रही है कि उनके देश में इस्लामिक स्टेट सक्रिय है। लेकिन बांग्लादेश में बढ़ते कट्टरपंथी हमलों को देखते हुए इस निष्कर्ष पर पहुंचा जा सकता है कि वहां इस्लामी स्टेट किसी न किसी रूप से प्रवेश पा चुका है। चूंकि लम्बे समय से पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई बांग्लादेश के जिहादियों और कट्टरपंथियों के जरिए भारत विरोधी अभियान चला रही है। उल्लेखनीय है कि आईएसआई भारत में अवैध बांग्लादेशी घुसपैठियों को अपना हथियार बनाकर ‘ऑपरेशन पिन कोड’ को सार्थक परिणाम तक यानि पूर्वोत्तर के सीमावर्ती जिलों का तालिबानीकरण (पैन-इस्लामाइजेशन) तक ले जाना चाहती है। ऐसी स्थिति में जब इस्लामी स्टेट, बांग्लादेश आधारित चरमपंथी एवं आतंकी संगठन तथा पाकिस्तान के चरमपंथी/आतंकी संगठन समूहीकृत हो रहे हों और आईएसआई का मस्तिष्क उनके साथ मिल जाए, तो भारत के लिए खतरा बढ़ जाता है।
सेक्युलर लेखकों व ब्लॉगरों पर हुए हमले
सेक्युलर लेखकों और ब्लॉगरों पर हमले की शुरुआत 14 जनवरी 2013 को ढाका में आसिफ मोहिउद्दीन पर हुए हमले के साथ हुयी थी। तब से यह सिलसिला बदस्तूर जारी है ।
नजीमुद्ीन समद की हत्या: सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक पर इस्लाम विरोधी टिप्पणी लिखने वाले इस 28 वर्षीय युवक पर चरमपंथी ने पहले सिर पर मीट काटने वाले चाकू से अटैक किया और बाद में गोली मारकर हत्या कर दी। हत्या के बाद हमलावर अल्लाहू अकबर के नारे लगाते हुए चले गये। नजीमुद्दीन समद जगन्नाथ यूनिवर्सिटी के लॉ डिपार्टमेंट में ग्रेजुएशन का छात्र था।
वशीकुर रहमान की हत्या: पिछले वर्ष मई में उत्तरी-पूर्वी बांग्लादेश के सिलहट शहर में ही धार्मिक कट्टरपंथ के खिलाफ लिखने वाले ब्लॉगर वशीकुर रहमान की हत्या कर दी गयी थी।
आशुरा पर शियाओं की हत्या: 2015 में ढाका के पुराने इलाके में शियाओं के त्योहार अशुरा के दिन तीन धमाके किए गये थे जिनमें एक किशोर की मौत हुई थी और 100 से ज्यादा लोग घायल हुए थे। इससे पहले ढाका में इटली के एक सहायताकर्मी की हत्या हुई थी और उत्तरी बांग्लादेश के रंगपुर में एक जापानी नागरिक की हत्या। इस्लामिक स्टेट ने धमाकों और विदेशी नागरिकों की हत्या की जिम्मेदारी ली थी।
अनंत बिजॉय दास एवं अविजीत रॉय की हत्या : बिजॉय दास नियमित रूप से बांग्लादेशी ब्लॉग ‘मुक्तो मन’ के लिए लिखते थे जिसकी शुरुआत अविजीत रॉय ने की थी। अविजीत रॉय की पिछले वर्ष फरवरी में ढाका में हत्या कर दी गयी थी। अल कायदा इन द इंडियन सब कॉन्टिनेंट (एक्यूआईएस) ने रॉय पर हमले की जिम्मेदारी ली थी।
अब्दुर रज्जाक की हत्या: मार्च महीने में शिया इमाम और होम्योपैथिक डॉक्टर की दक्षिण पश्चिमी बांग्लादेश में हत्या भी हमलों वाले सिलसिले की एक कड़ी है जिसकी जिम्मेदारी इस्लामी स्टेट ने ली थी। इसी सिलसिले में उदारवादी सूफी संत खिजिर खान, प्रोग्रेसिव प्रकाशक फैसल अरेफिन और सूफी स्त्राइन कर्मचारियों की हत्या तथा हिंदू पुजारी के सिर कलम करने को शामिल किया जा सकता है जिसकी जिम्मेदारी इस्लामी स्टेट ने ली थी।