साईं पूजा के कारण पड़ा अकाल!
महाराष्ट्र के बारे में शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का बयान
प्राकृतिक आपदा के कारण एक नहीं होते हैं, पर शायद ही कोई ऐसा वक्तव्य देगा कि किसी भगवान की पूजा करने से अकाल पड़ता है, लेकिन द्वारका-शारदा पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने महाराष्ट्र में पड़े सूखे को लेकर बड़ी अजीबो-गरीब बात कही है। उनका दावा है कि महाराष्ट्र में सूखा शिर्डी के साईंबाबा की पूजा तथा शनि शिंगणापुर में महिलाओं द्वारा पूजा किए जाने के कारण पड़ा है। साईं आराधना के विरोध में स्वर मुखर करने वाले स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का कहना है कि साईं बाबा कोई भगवान नहीं थे, इसलिए उनकी पूजा नहीं की जानी चाहिए। ज्ञात हो कि स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने पिछले साल से ही शिर्डी के साईंबाबा की पूजा का विरोध करना शुरू किया था। इस मामले में जहां एक ओर साईं भक्तों ने शंकराचार्य के इस बयान का तीव्र विरोध किया था, वहीं दूसरी ओर शंकराचार्य के समर्थकों ने साईं बाबा की पूजा न करने का समर्थन किया था। किस भगवान की पूजा करनी है, किसकी नहीं, यह तो पूजा करने वालों पर निर्भर करता है। किसी पर इस बात का जोर नहीं डाला जा सकता कि वह अमुक देवता, देवी की पूजा ही करे। शंकाराचार्य पद पर काबिज व्यक्ति यदि इस तरह के बयान देने लगे तो इससे सामाजिक ताना-बाना बिगड़ जाता है। जिस तरह से शंकराचार्य हर किसी को साईं बाबा की पूजा न करने पर जोर दे रहे हैं, लेकिन अगर कोई शंकराचार्य से कहे कि वे अब तक जिस भगवान की पूजा करते रहे हैं, वे अब उस भगवान की पूजा नहीं कर सकते तो क्या वे इसे स्वीकार करेंगे, शायद नहीं। किसी भगवान की पूजा करने से अकाल आता है, किसी भगवान की पूजा करने से भूकंप आता है, ये सब कोरी बकवास है, ऐसी बातों पर विश्वास करना ही गलत है।
स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का यह बयान भी बेहद अफसोसजनक है, जिसमें उन्होंने कहा था कि मंदिरों में महिलाओं के आने से बलात्कार की घटनाएं बढे़ंगी। बड़ा दु:ख होता है, जब शंकराचार्य पदवीधारी व्यक्ति इस तरह के बयान देता है। ऐसी कुंठित सोच वाले शंकराचार्य समाज में टकराव के अलावा कुछ और नहीं देते। शंकराचार्य ने शिर्डी के साईं बाबा के बारे में जो उद्गार व्यक्त किए, वे भले ही व्यक्तिगत हों, पर उनके इस बयान से सामाजिक विखराव ही होगा। शंकराचार्य का संबंध भी धर्म, आस्था से जुड़ा हुआ है, ऐसे में शंकराचार्य का यह कहना कि साईं बाबा की पूजा करने से राज्य में सूख आया है, सर्वथा अनुचित है। अनेकता में एकता के वाहक कहे जाने वाले भारत के अधिकांश राज्य इन दिनों भयंकर सूखे से जूझ रहे हैं, ऐसे में अकाल प्रभावित क्षेत्रों का दौरा करके वहां के लोगों का हौसला बढ़ाने की बात कहकर स्वामी स्वरुपानंद सरस्वती को लोगों का मन जीतना चाहिए था, पर वैसा न करके शंकराचार्य ने शिर्डी से साईं बाबा की पूजा तथा शनि शिंगणापुर के शनि भगवान के मंदिर में महिलाएं को पूजा करने की अनुमति मिलने से महाराष्ट्र में सूखा पड़ा है, ऐसा बयान देकर शंकराचार्य ने यह साबित कर दिया है कि वे अकाल जैसे विषयों को भी गंभीरता से नहीं लेते। जिस देश में 33 करोड़ देवताओं के होने की बात की जाती हो, वहां किसी पर इस बात को लेकर अंकुश कैसे लगाया जा सकता है कि वह उसी की पूजा करे, जिसकी पूजा करने का आदेश शंकराचार्य स्वामी स्वरुपानंद सरस्वती दें। जिस तरह से लोगों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार प्राप्त है, उसी तरह उसे अपने मनपसंद देवता-देवी की आराधना करने का अधिकार प्राप्त है। रसखान जैसे कवि मुसलमान थे, पर वे भगवान श्री कृष्ण की आराधना करते थे। रसखान जैसे एक नहीं अनेक ऐसे साहित्यकार इस देश में पहले भी थे, आज भी हैं और भविष्य में भी रहेंगे तो क्या उन्हें अपने आराध्य की आराधना करने से रोकना उचित है। शिर्डी स्थित साईं बाबा संस्थान में स्थित महाराष्ट्र के लोगों का मुख्य आराधना केंद्र है। यहां पर किसी एक धर्म के लोगों को ही पूजा करने का अधिकार नहीं है, साईं का दरबार सभी के लिए खुला है। ऐसी मान्यता है कि जो कोई भी साईं दरबार में अपना दुखड़ा लेकर जाता है तो बाबा उसका दुखड़ा हर लेते हैं। साईं बाबा के गानों को अपने स्वर से अमर करने वाले भजन सम्राट अनूप जलोटा का कहना है कि हर किसी को अपनी इच्छा के अनुसार भगवान की पूजा करने का अधिकार है, इस पर किसी की जोर-जबर्दस्ती नहीं चल सकती।
आस्था के जुड़े एक शीर्ष पद पर आसीन होने के बावजूद अगर कोई साईंबाबा की पूजा द्वेष के चलते न करने की सलाह दे और जब उसकी यह बात न मानी जाए तो उसे यह कहना पड़े कि साईं की पूजा के कारण ही राज्य में अकाल पड़ा है, इसे शायद ही कोई स्वीकार्य करेगा। आस्था तथा सम्मान ये दोनों ऐसे शब्द हैं, जिन पर किसी का जोर नहीं चलता है, जब तक किसी भगवान, फकीर, बाबा पर किसी का विश्वास पक्का बना हुआ है, तब तक उसको उसकी भक्ति से कोई रोक नहीं पाएगा। किसी के प्रति किसी की आस्था को यूं ही खत्म नहीं किया जा सकता। ’