क्या अतृप्त रह जाएगी प्यास!
क्या यह मात्र संयोग ही है कि साथ लगते राजगढ़ तहसील में धरने पर बैठे किसान जेली रैली की बात करते हैं, तो तारा नगर तहसील के किसान प्रशासनिक कार्यालयों का घेराव कर रहे हैं? क्या पानी की आस को लेकर राजस्थान के संघर्षरत किसान पंजाब के किसी भी कीमत पर पानी न देने के दो टूक फैसले के बाद भी आंदोलनों के सहारे पंजाब से पानी ले पाएंगे? क्या 11 मार्च, 2016 को बीकानेर के रजियासर थाना क्षेत्र में सिंगरासर एटा माइनर से नहर निकालने की मांग कर रहे किसानों पर लाठीचार्ज व आँसू गैस का प्रयोग करना आंदोलनकारी किसानों की आवाज़ दबा पाएगा? यहाँ प्रश्न उठता है कि क्या तारा नगर के किसानों का यह अनवरत आंदोलन पंजाब से पानी ले पाएगा? क्या यह किसान आंदोलन राजस्थान की सरदार शहर, तारा नगर व राजगढ़ तहसीलों के सूखे धौरों की प्यास बुझा पाएगा? किसानों के हौंसलों को देखें तो करो या मरो की नीति का अनुसरण करते ये किसान काफी उद्वेलित दिखाई दे रहे हैं, वहीं अधिकारी इसे दबी जुबान में असम्भव बता रहे हैं। राजनेताओं की चुप्पी व अनदेखी किसानों को चिढ़ाती नजर आ रही है।
क्या है कुंभा राम नहर का मामला?
चौधरी कुंभा राम आर्य सर्वदलीय नहर संघर्ष समिति के बैनर तले तारा नगर के किसानों की मांग है कि कुंभा राम आर्य नहर के 1991 के मूल स्वरूप को बहाल कर वर्ष 2005 में काटे गए रकबे को पुन: जोड़ा जाए, सिंचाई से वंचित गांवों को नहर से जोड़ने का काम तथा अधूरे पड़े निर्माण कार्य को शीघ्र पूरा किया जाए। धरने पर बैठे युवा किसान नेता सुनील स्वामी ने बताया कि नहर के मूल स्वरूप के तहत तारा नगर के 67 गाँव, राजगढ़ के 37 गाँव तथा सरदार शहर के 49 गाँवों के धौरों को सिंचाई की सुविधा इस परियोजना से प्रस्तावित थी। इस नहर से 2.40 लाख हेक्टेयर बारानी क्षेत्र को सिंचाई का पानी मिलना तय हुआ था, परंतु 2005 में तत्कालीन भाजपा सरकार के कार्यकाल में 28 अक्टूबर 2005 के एक आदेश के तहत सिंचित क्षेत्र का रकबा 2.40 लाख हेक्टेयर से घटा कर 1.02 लाख हेक्टेयर कर दिया गया था। धरनारत किसानों को मलाल है कि गत 2013 के विधान सभा चुनावों में वर्तमान भाजपा सरकार की मुखिया वसुंधरा राजे ने तारा नगर की एक चुनावी सभा में नहर के घटाए गए रकबे को पुन: बहाल करने का वादा किया था, परंतु अब क्षेत्र के किसान अपने को ठगा सा महसूस कर रहे हैं और सरकार के खिलाफ आंदोलन का रास्ता अपना कर अपना आक्रोश व्यक्त कर रहे हैं। किसान चाहते हैं कि प्रारम्भ में स्वीकृत 850 क्यूसेक पानी पूरा दिया जाए और सिंचाई के साथ-साथ पेय जल की कमी वाले गांवों में पीने के पानी की भी पर्याप्त आपूर्ति सुनिश्चित की जाए। वर्तमान में मिल रहे 120 क्यूसेक पानी को किसान ऊंट के मुंह में जीरा बता रहे हैं।
क्या एक्सट्रा पानी पंजाब से मिल पाएगा?
हाल में मार्च 2016 में ही पंजाब सरकार द्वारा हरियाणा की एसवाईएल नहर के लिए पानी देने का रास्ता एकदम बंद कर दिया गया है। पंजाब विधान सभा में भी इस आशय का एक प्रस्ताव पारित कर कहा गया है कि क्योंकि पंजाब के पास उपलब्ध पानी की पहले ही कमी है और पंजाब अपने ही किसानों को जरूरत के मुताबिक पानी मुहैया करने में दिक्कत महसूस कर रहा है, इसलिए हरियाणा को पानी नहीं दिया जा सकता। पंजाब सरकार ने तो एसवाईएल के लिए अधिगृहित की गई कृषि भूमि किसानों को लौटाने की राह भी खोल दी है। अब पंजाब सरकार के दो टूक व्यवहार को देखते हुए यह बिलकुल भी नहीं लगता कि राजस्थान की इस कुंभा राम आर्य नहर परियोजना को कोई एक्सट्रा पानी मिल पाएगा। तो क्या तारा नगर के धौरों की प्यास सदा के लिए अतृप्त ही रह जाएगी? क्या तारा नगर के किसानों का यह आन्दोलन बेनतीजा ही रह जाएगा? अभी के हालात में तो कोई आस की किरण दृष्टिगोचर नहीं हो रही है, भविष्य में कब, क्या करिश्मा हो जाए, इसका तो कौन आंकलन कर सकता है? हाँ भू विज्ञानियों की यह भविष्यवाणी कि आगामी युद्ध जल युद्ध ही होगा, काफी हद तक ठीक लगने लगी है। ’