क्यों मायावती डायरेक्ट हैं
उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री के तौर पर तब मायावती का चौथा कार्यकाल चल रहा था। बसपा के एक मंत्री चार अधिकारियों के ट्रांसफर की दरख्वास्त लेकर मायावती के ‘राइट हैंड’ कहे जाने वाले सज्जन के पास पहुंचे। उन्होंने पर्चा हाथ में लेते हुए कहा, “ठीक है, मंत्री जी, मैं इस लिस्ट को बहनजी को दिखा दूंगा और ट्रांसफर हो जाएगा।”
सुनते ही मंत्री जी के चेहरे का रंग उतर गया। वे पर्चा वापस छीनने लगे। मायावती के सहयोगी ने भी पर्चा नहीं छोड़ा और कहा, “अरे, चिंता मत कीजिए। तबादले हो जाएंगे। लेकिन बिना बहनजी को दिखाए तो मुमकिन नहीं है न। बस रजामंदी लेनी है।”
मंत्री महोदय ने किसी तरह पर्चा वापस छीना और मायावती के दफ्तर से वापस लौट आए। काम करने का ऐसा ही तरीका रहा है बहुजन समाज पार्टी की मुखिया और चार बार यूपी की मुख्यमंत्री रहीं मायावती का।
प्रदेश के एक वरिष्ठ पत्रकार को उन्होंने 2012 में बताया भी कि वे मीडिया से थोड़ी दूरी बना कर क्यों रखती हैं। उन्होंने कहा था, “मैं इंटरव्यू तो दे दूँ, लेकिन फिर जब कुछ लोग सिफारिशें ले कर पहुँचने लगते हैं तब मुझे ठीक नहीं लगता। इसीलिए मैं इस चक्कर में ही नहीं पड़ती हूँ।”
मीडिया को लेकर मायवती की सजगता का ये मतलब बिल्कुल नहीं है कि उन्हें पता नहीं रहता कहाँ क्या हो रहा है और मीडिया में किसके बारे में क्या छप रहा है।
अपनी पार्टी के नेताओं को खास हिदायत देने में भी मायावती कभी कतराई नहीं हैं। हालांकि सूत्र बताते हैं कि अब वो इस बात का ध्यान रखती हैं कि सबके सामने फटकारने के बजाय कोई गलती करने वाले नेता को अलग बुलाकर समझा दिया जाए।
क्योंकि कुछ साल पहले तक मायावती का अंदाज निराला ही था। 2013 की बात है जब वे लखनऊ हवाई अड्डे पर दिल्ली से पहुंचीं। उनके स्वागत में कई बसपा ने नेता पहुंचे।इनमें एक नेता वो भी थे जिनके किसी महिला जिला पंचायत अध्यक्ष के साथ कथित घनिष्ठता पर एक स्थानीय अखबार में खबर छपी थी।
मायावती ने हवाई अड्डे से निकलते ही उस नेता से पूछा, “आजकल कर क्या रहा है तू? मुझे ये सब पसंद नहीं और दोबारा ऐसी खबर नहीं सुनना चाहती मैं।”इस ‘फटकार’ के दो साल बाद तक ये नेता मायावती से बचते रहे।
लेकिन अभी भी मीडिया से सीधे तौर पर मुखातिब होने से कतराती हैं मायावती। उनके करीबी बताते हैं कि उनके मन में मीडिया को लेकर दो धारणाएं हमेशा से रही हैं।
पहली ये जिसे बसपा संस्थापक कांशीराम ने भी लिखा था कि ‘ये पूरी सोसाइटी सवर्ण बहुल है और मीडिया भी इसी का हिस्सा है।’ दूसरा यह कि मायावती को इस बात पर यकीन है कि मीडिया जो बात फैलाती है उसका समाज पर असर होता है। स्वामी प्रसाद मौर्य जैसे बसपा के वरिष्ठ नेता तो मीडिया को लेकर मायावती की हिचकिचाहट से इनकार करते हैं। लेकिन वरिष्ठ पत्रकार नवीन जोशी की राय अलग है।
जोशी कहते हैं, “मायावती को लगता है कि मीडिया कभी भी बसपा की नीतियों को या खुद उनके फैसलों को सकारात्मक नहीं समझती और दलितों से संबंधित जितनी भी ख़बरें आती हैं वे उनकी पीड़ा को नहीं दर्शाती हैं।’ बसपा के लोग बताते हैं कि पार्टी का बड़ा से बड़ा नेता भी मीडिया से तभी बात कर सकता है जब बहनजी की तरफ़ से हरी झंडी मिल जाए।
वरिष्ठ पत्रकार वीएन दास बताते हैं, “मुझे बसपा के बड़े से बड़े मंत्री ने बताया है कि क्योंकि मायावती के ज़हन में हर चीज़ को लेकर एक विशेष एजेंडा या पॉलिसी रहती है। इसलिए वे ज़्यादातर चीजें खुद ही जनता के सामने रखता चाहती हैं। मायावती को इस बात का एहसास भी है कि बसपा में मीडिया-सेवी या फ्रेंडली लोग कम हैं और मायावती को डर भी रहता है कि कहीं कोई गलत-सलत न बोल दे और सार प्लान चौपट हो जाए।”
मायवती का कई बार इंटरव्यू कर चुकीं रचना सरन को अब लगता है कि मायावती में समय के साथ बदलाव आ रहे हैं और मीडिया के प्रति उनकी ‘कठोरता’ थोड़ी घटी है। उन्होंने कहा, “मायावती की बड़ी रैलियों में पहले जहाँ पत्रकारों के खड़े होने तक का स्थान तय नहीं होता था वहीं अब मीडिया गैलरी बनी मिलती है।” कोई अजीब बात नहीं है कि पिछले दो चुनाव में मिली शिकस्त का भी हाथ हो इस बदलाव के पीछे।