लोभ करने से हो सकती है मृत्यु
कालिंदी के महापंडित कौत्स यमुना नदी में स्नान करके ईश्वर की आराधना कर रहे थे। एक मगर (घड़ियाल) उन्हें काफी देर से देख रहा था। लेकिन कौत्स ऊंची शिला पर बैठे हुए थे। जहां तक मगर का जाना संभव नहीं था।
तब मगर ने यमुना की तलहटी से सोने-चांदी के रत्नों को लाकर यमुना किनारे पर बिखेर दिया। कौत्स जब नहाकर लौटे तो उन्होंने वह रत्न देखे। रत्न देखकर उनके मन में लोभ जाग गया। वह सभी रत्न एकत्रित करने लगे।
तब वह मगर महापंडित कौत्स के नजदीक आया और बोला, आप जैसे महान विचारशील पुरुष के दर्शन करके मैं धन्य हो गया। आपसे यह गुजारिश है कि यदि आपके पास समय हो तो मुझे त्रिवेणी तक का रास्ता बता सकते हैं। मैं यहां नया हूं और रास्ता भूल गया हूं।
लोभ में वशीभूत कौत्स उस मगर के साथ चल दिए। उस समय उन्होंने अपने विवेक का जरा भी उपयोग नहीं किया। रास्ते में जाते समय मगर जोर से हंसा और कौत्स से बोला, आप जीवन भर लोगों को उपदेश देते रहे कि विनाश सांसारिक आकर्षण के रूप में आता है, क्षणिक तुष्टि देकर नष्ट कर देता है।
लेकिन इसके बावजूद आप इस तथ्य को न समझ सके और आज एक लालच ने आपका सर्वनाश के कगार पर पहुंचा दिया। इतना कहकर मगर, महापंडित कौत्स के ऊपस उछाला और अगले ही पल उसने कौत्स को निगल लिया। इस तरह कौत्स की जीवन लीला का अंत हो गया।
संक्षेप में
जो व्यक्ति सांसरिक आकर्षण में विवेक का उपयोग नहीं करता। उसे वासनाएं पूरी तरह आसक्त कर देती हैं। और उसका अंत कौत्स की तरह होता है।