अरुण जेटली ने न्यायपालिका के बढ़ते दायरे पर नाराज़गी जताई
एंजेंसी/नई दिल्ली: केन्द्रीय मंत्री नितिन गडकरी के बाद वित्तमंत्री अरुण जेटली ने भी न्यायपालिका के बढ़ते दायरे पर नाराज़गी जताई है। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र की इमारत धीरे धीरे गिराई जा रही है। इससे पहले गडकरी ने भी तंज भरे लहज़े में जजों को इस्तीफ़ा देकर चुनाव लड़ने की नसीहत दी थी। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कार्यपालिका और विधायिका में न्यायपालिका के बढ़ते दखल पर चिंता जताते हुए चेताया कि टैक्स और वित्तीय मामले भी अदालतों के हवाले नहीं किए जाने चाहिए। जेटली ने सूखे के लिए राहत कोष पर आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भी सवाल उठाए।
दरअसल बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने सूखे को लेकर राज्य सरकारों को फटकार लगाई और केंद्र को सूखे पर एसटीएफ बनाने का निर्देश दिया। अदालत के इस रवैये को सरकार अपने अधिकारों में दख़ल मान रही है। राज्य सभा में बजट पर चर्चा के दौरान वित्त मंत्री ने इसके दूरगामी परिणामों के बारे में आगाह किया। इस बहस के दौरान कांग्रेस की यह मांग थी कि जीएसटी मामले में अगर केंद्र और राज्य के बीच मामला फंसता है तो जज इस पर फैसला सुनाए। इस पर जेटली ने कड़ी आपत्ति जताते हुए कहा था कि यह लोकतंत्र पर एक तरह से हमला होगा।
विधायिका के अधिकार में हस्तक्षेप
हाल के दिनों में तमाम मुद्दों पर पीआईएल के ज़रिए अदालती दखल बढ़ा है। दिल्ली के पर्यावरण का सवाल, कारों की बिक्री और टैक्सियां चलाने का सवाल और राज्यों में राष्ट्रपति शासन तक का सवाल अदालती गलियारों में निपटाया जाता रहा है। जब कांग्रेस ने जीएसटी विवाद निपटाने के लिए सुप्रीम कोर्ट के जज के तहत ट्राइब्युनल बनाने की मांग की तो जेटली ने इस पर भी चेतावनी दी। उन्होंने कहा कि कार्यपालिका और विधायिका के अधिकारों में हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए।
जेटली ने कहा कि ‘जीएसटी मामले में विवाद को लेकर काउंसिल कह सकती है कि दो वरिष्ठ मुख्यमंत्री और वित्तमंत्री मिलकर राजनीतिक तौर तरीके से इस मुद्दे को सुलझा सकते हैं। यह कानूनी मसला नहीं है कि कितना फीसदी बंगाल को जाए और कितना फीसदी हमारे पास रहे।’ उधर कांग्रेस ने कहा कि अदालत के सामने विचाराधीन मामलों पर टिप्पणी करने से बचना चाहिए, हालांकि बाद में संसद में कांग्रेस के सदस्य मेजें थपथपाते देखे गए।