राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के पोते व उनकी पत्नी ने वृद्धाश्रम में ली शरण
कोई संतान न होने के कारण इस वयोवृद्ध दंपति की देखभाल के लिए कोई नहीं है। जीवन की परिस्थितियां कहां से कहां ले जाएं इसका अंदाजा इस दंपति की जीवन यात्रा को सुनकर लगाया जा सकता है। अपने जीवन के आखिरी पड़ाव पर 87 वर्षीय कनुभाई व उनकी पत्नी शिवालक्ष्मी (85 वर्षीय) इस वृद्धाश्रम पहुंचे।
गर्मी से परेशान हो रहे इन खास मेहमानों के लिए आश्रम प्रबंधन ने न केवल अलग से कमरा खाली कराया बल्कि उसमें एसी भी लगाया। बदरपुर स्थित गुरु विश्राम वृद्ध आश्रम को जे.पी भगत चलाते हैं। आश्रम की प्रशासक श्वेता ने बताया कि यहां आने के लिए दंपति ने स्वयं ही संपर्क साधा था।
बीती आठ मई को कुछ लोगों के साथ गुजरात से यह लोग यहां आएं। हमारे पास स्थान की समस्या है और पहले से 123 बुजुर्ग रहते हैं। लिहाजा आश्रम के एकमात्र आईसीयू को उनके लिए खाली कर दिया गया। इस आश्रम में यह इकलौता कमरा है, जहां बिस्तर लगाया गया। उनकी मांग पर एसी की व्यवस्था भी की गई। इससे पहले दोनों गुजरात के साबरमती आश्रम में रह रहे थे। पासपोर्ट देखने के बाद इनकी पहचान होने पर इन्हें दिल्ली के वृद्धाश्रम में शरण दी गई।
कनुभाई रामदास गांधी व उनकी पत्नी शिवा लक्ष्मी ने नासा में काम करने के दौरान अपने जीवन के चालीस साल अमेरिका में भी गुजारे हैं। शिवालक्ष्मी ने बायोकेमस्ट्री में पीएचडी की है और बोस्टन में पढ़ाया भी है।
वे बोस्टन यूनिवर्सिटी में भी काम कर चुके हैं। वर्ष 2014 में वह हिंदुस्तान आए और तब से वह अपनी पत्नी के साथ आश्रमों में ही जीवन व्यतीत कर रहे हैं। वह भारत कैसे आए इस पर वह ज्यादा बात नहीं करते।
रोटी की जगह दही-चावल की करते हैं मांग
दंपति अपने खाने को लेकर काफी सचेत है। वह रोटी की जगह दही-चावल खाना ज्यादा पंसद करते हैं। श्वेता बताती हैं कि दोनों स्वस्थ हैं। दही-चावल खाने के साथ-साथ वह फल व फलों के जूस की मांग करते हैं। आश्रम की ओर से उनकी इस मांग को भी पूरा किया जा रहा है।
बापू की हत्या के समय कनुभाई 17 वर्ष के थे
जब महात्मा गांधी की हत्या हुई उस समय कनुभाई रामदास गांधी 17 वर्ष के थे। बापू के निधन के बाद जवाहरलाल नेहरू व यूएस राजदूत जॉन केनेथ गेलबरेथ ने उन्हें एप्लाइड मैथमेटिक्स की पढ़ाई के लिए मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी भेज दिया था।