जश्न मनाती बीजेपी के लिए ‘कांग्रेस-मुक्त भारत’ की राह में असली रोड़ा हैं क्षेत्रीय पार्टियां…
एजेंसी/ नई दिल्ली: भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के पास सितंबर, 2014 – जब वे हरियाणा, मध्य प्रदेश, झारखंड और महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव जीते थे – के बाद पहली बार खुश होने और जश्न मनाने का मौका गुरुवार को आया…
दिल्ली स्थित पार्टी कार्यालय में जश्न मना रहे कार्यकर्ताओं की खुशी उस समय चरम पर पहुंच गई, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वहां उन्हें बधाई देने आ गए, और कहा, “यह विकास के लिए मिला जनादेश है…”
जश्न का नेतृत्व पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह कर रहे थे, जिनके लिए बिहार और दिल्ली की हार के बाद असम की जीत बहुत बड़ी राहत लेकर आई… चुनाव मैनेजर के रूप में बनी उनकी साख का बहुत बड़ा इम्तिहान थे ये चुनाव, और हार की स्थिति में उन पर दबाव बहुत ज़्यादा बढ़ गया होता…
बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह
जश्न के पीछे दिख रही खुशी का एक और कारण भी था…
इस जश्न के पीछे दिख रही खुशी का एक और कारण भी था – कांग्रेस का सिमटते हुए दिखाई देना… कांग्रेस के हाथ से न सिर्फ केरल निकल गया, बल्कि तमिलनाडु में भी उनकी हालत डीएमके से तालमेल के बावजूद बेहद खस्ता रही, और बंगाल में लेफ्ट के साथ मिलकर लड़ने के बावजूद उनके हाथ खास कुछ नहीं आया…
कांग्रेस और यूपीए में सहयोगी उनकी पार्टियों के कब्ज़े में कुल सात राज्य हैं, जिनमें देश की कुल आबादी का सिर्फ 15.5 फीसदी हिस्सा बसा हुआ है, जबकि बीजेपी और उनके सहयोगियों के कब्ज़े में 13 राज्य हैं, जिनमें देश की 43 फीसदी आबादी रहती है…
गुरुवार के चुनावी नतीजों से एक और रोचक तथ्य सामने आया…
लेकिन गुरुवार के चुनावी नतीजों से एक और रोचक तथ्य सामने आया है… बीजेपी वहां जीत रही है, जहां उनका मुकाबला सीधे कांग्रेस से है, लेकिन वहां उनका प्रदर्शन खास नहीं रहा, जहां किसी क्षेत्रीय या गैर-कांग्रेस पार्टी से टक्कर हुई… तमिलनाडु में जयललिता की एडीएमके, पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस और केरल में वाममोर्चा एलडीएफ इसके उदाहरण हैं…
दिल्ली में अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी और बिहार में नीतीश कुमार के खिलाफ मिली हार का पैटर्न भी मिलता-जुलता था, और साबित करता है कि बीजेपी को क्षेत्रीय पार्टियों के खिलाफ जीत हासिल करने का फॉर्मूला ढूंढना होगा, जिनके कब्ज़े में इस वक्त 11 राज्य और 41 फीसदी आबादी है…
बीजेपी के लिए अगली लड़ाई दरअसल यही है…
क्षेत्रीय पार्टियां बीजेपी की मित्र नहीं हैं… गुरुवार को जीत के बाद ममता बनर्जी ने कहा, “हम विचारधारा के स्तर पर बीजेपी के खिलाफ हैं… वे बांटने की राजनीति करते हैं… हम केंद्र सरकार को सिर्फ उन मुद्दों पर समर्थन दे सकते हैं, जिनमें वोटरों का फायदा हो…”
बीजेपी और कांग्रेस – दोनों से दूरी रखने वाली धर्मनिरपेक्ष क्षेत्रीय पार्टियों का मोर्चा बनाने के लिए काफी सक्रिय रहे जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) के शरद यादव ने कहा, “एडीएमके तथा तृणमूल कांग्रेस की जीत साबित करती है कि बीजेपी को हराया जा सकता है… ऐसी पार्टियां विपक्ष की भूमिका निभाती रहेंगी, भले ही कांग्रेस गिरावट की ओर बढ़ रही है…”
वर्ष 2014 में बीजेपी ने राजस्थान, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का सूपड़ा साफ कर दिया था, लेकिन वह ओडिशा में बीजेडी, तमिलनाडु में एडीएमके और तेलंगाना में टीआरएस को कोई नुकसान नहीं पहुंचा सकी थी… सितंबर, 2014 में उन्होंने महाराष्ट्र जीत लिया, लेकिन उत्तर प्रदेश में हुए लगभग सभी उपचुनाव हार गए… जम्मू एवं कश्मीर में भी बीजेपी सत्ता में तभी पहुंच सकी, जब उन्होंने पीडीपी के साथ गठबंधन किया, और मुख्यमंत्री पद भी उन्हीं को (पीडीपी को) देना पड़ा…