देहरादून के पास चकराता का गांव पोखरी कुछ दिन पहले अचानक सुर्खियों में आया.
वहां दलितों की एक ग्रुप के साथ बीजेपी के राज्यसभा सांसद तरुण विजय शिलगुर मंदिर में दर्शन के लिए गए थे.
लौटते हुए उन पर स्थानीय लोगों के एक गुट ने पथराव कर दिया और वाहनों में तोड़फोड़ की. इस हमले में घायल तरुण विजय और दलित नेता दौलत कुंवर का इलाज चल रहा है.
शिलगुर मंदिर देहरादून से क़रीब 150 किलोमीटर दूर जौनसार बावर इलाक़े की चकराता तहसील में है. यहां क़रीब 340 मंदिर हैं, जिनमें ज़्यादातर में दलितों के घुसने पर रोक है जबकि राज्य की कुल आबादी का 18 प्रतिशत दलित हैं.
यहां की जौनसारी और बावरिया जनजातियां खुद को पांडवों और कौरवों का वंशज मानती हैं. इलाक़े में 400 गांव हैं. चकराता के पूर्व में यमुना और पश्चिम में टौंस नदी है. उत्तर में उत्तराखंड का उत्तरकाशी ज़िला तो दक्षिण में देहरादून तहसील है.
चकराता की आबादी क़रीब 72 हज़ार है, जिसमें क़रीब 24 हज़ार दलित समुदाय से आते हैं. हालांकि सबसे ज़्यादा तादाद राजपूतों और ब्राह्मणों की है. दलितों में लुहार, बाजीगर, ढाकी जैसे समुदाय हैं.
चर्चा है कि ये मामला जितना सामाजिक बराबरी या दलित बनाम सवर्ण का है, उतना ही राजनीतिक नफ़ा-नुकसान का भी है. स्थानीय सूत्रों का दावा है कि जौनसार बावर परिवर्तन यात्रा चला रहे दौलत कुंवर ख़ुद बीएसपी कार्यकर्ता हैं, इसलिए उनकी अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं हैं.
कुछ लोगों का आरोप है कि हिंसा दलितों के मंदिर में जाने को लेकर नहीं हुई, बल्कि तब भड़की जब वहां भंडारा चला रहे अगड़ी जातियों के एक समूह ने तरुण विजय और उनकी टोली के स्वागत में ढोल दमाऊं बजाने से मना कर दिया. ढोल बजाने का ज़िम्मा दलितों के पास रहता है.
बताया जा रहा है कि ढोल बजाने का विरोध करने वालों का कहना था कि वो ढोल सिर्फ देवता के लिए बजा सकते है, किसी नेता के लिए नहीं. इस पर विवाद भड़का.
हालांकि दलितों का आरोप है कि ये मनगढ़ंत बातें हैं, जो उनकी आवाज़ दबाने के लिए फैलाई जा रही हैं.
देहरादून प्रशासन ने सभी पक्षों की बैठक बुलाई जिसमें दलितों ने सवर्णों पर मंदिर प्रवेश को लेकर जमकर आरोप लगाए.
देहरादून के ज़िलाधिकारी रविनाथ रमन का कहना था, “दलितों को वहां मंदिरों में आने-जाने पर रोकटोक नहीं है लेकिन कुछ रीतिरिवाज़ और सोच के चलते ये लोग शायद ख़ुद वहां जाने से कतराते हैं.”
मगर दलित कार्यकर्ता दौलत कुंवर की पत्नी सरस्वती कुंवर का आरोप था, “हमें बिल्कुल मंदिर में जाने नहीं दिया जाता. वहां उस दिन हमें बहुत मारा. मेरी पीठ और गर्दन में निशान हैं. हम क्या झूठ बोल रहे हैं. तरुण विजय और बाकी जितने भी लोग थे, हम लोग चप्पल भी नहीं पहन पाए. हमें बहुत मारा. जैसी हालत में थे वैसे भागे. मैं जंगल में भागी. ये लोग सब मिले हुए हैं. ये बैठक झूठी है.”
मगर चकराता इलाक़े के एसएस राय ने कहा, “ऐसा नहीं है. मैं बचपन से अब तक देखता रहा हूं. ऐसा कहीं नहीं है कि मंदिर में जाने से रोका जाता है. अगर ऐसा होता तो हनोल मंदिर, जो जौनसार बावर के राजा का मंदिर है, उसकी कमेटी में तीन हरिजन कैसे हैं. तो ही आप बताइए. और भी मंदिर हैं, वहां भी जाते हैं. कोई रोकता नहीं है. जो जहां जाना चाहता है जाता है. कोई जर्बदस्ती तो ले जाएगा नहीं.”
मगर दलितों ने इन दलीलों को ख़ारिज कर दिया.
चकराता के ही एक गांव के रहने वाले केशर सिंह का कहना है, “अगर मंदिर में भेदभाव न होता तो वहां मार-पिटाई की नौबत क्यों आती. आप खुद बताओ, इनसे पूछो. हमें बोलने नहीं देते. दलितों की मीटिंग में दलितों से पूछते नहीं. हनोल मंदिर की बात करते हैं. हनोल की हिस्ट्री खोलकर देखो. उस मंदिर को खोलते समय कितनों को मारा गया है. तब खुला है वो मंदिर. अब भी हम लोग मंदिर में जाते हैं, बहुत मार खानी पड़ती है. बहिष्कार अलग किया जाता है. कौन नहीं जानता.”
ऐसी ख़बरें भी मीडिया में हैं कि शिलगुर मंदिर का कथित रूप से शुद्धिकरण हो रहा है. ज़िलाधिकारी इसे ग़लत बताते हैं.
उनका कहना था, “ऐसा कुछ नहीं हुआ है, इंटेलीजेंस रिपोर्ट भी मंगाई है. उसमें साफ़ है कि ऐसा कुछ नहीं है. प्रशासन की रिपोर्टों के मुताबिक़ वहां शुद्धिकरण जैसी कोई चीज़ नहीं की गई है.”
हालांकि केशर सिंह ने दावा किया, “उस मंदिर को धोया गया है क्योंकि दलित आ गया है तो देवता रुष्ट हो गया है. इसलिए मंदिर की शुद्धि हुई है.”
ज़िला प्रशासन ने फ़िलहाल चकराता के मंदिरों में धरना या समूह के प्रवेश पर पाबंदी लगा दी है. एक स्टैंडिग कमेटी भी बनाई गई है.