कहने का मतलब ये है कि भारत के एक हिस्से ने यह समझा कि पीएम मोदी जी चुटकी बजाएंगे और भारत अमरीका जैसा दिखने लगेगा। लेकिन एक और बड़ा ख्वाब आंखों में जग गया कि अब पाकिस्तान की खैर नहीं। अगर किसी भी तरह से सीज फायर या कोई भी हरकत हुई तो सीधा सीधा उसका जवाब परमाणु बम से दिया जाएगा।
हां कुछ को उम्मीद ये भी होगी कि चीनी 10 रूपये किलो मिलेगी, अरहर दाल 50 रूपये किलो। सोना, चांदी पांच से दस हजार के करीब आ जाएगा। हालांकि जब इस तरीके की सोच रखने वाले लोगों के जीवन में बदलाव नहीं हुए तो मोदी सरकार बाकी सरकारों जैसी नाकारा नजर आने लगी। पर, जो फेरबदल हुए हैं वे शायद ज्यादा बेहतर हैं। मंद पड़ गई भ्रष्टाचार की वो तेज चाल! भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी का एक कथन काफी चर्चित रहा। जी हां वो ये कि अगर केंद्र ऊपर से एक रूपया जनता के लिए भेजता है तो वह उन तक पहुंचते पहुंचते महज 10 पैसे ही शेष रह जाता है। जो कि आज भी जारी है।
विकास प्राधिकरण हो या फिर अन्य कोई भी विभाग, वहां चलने वाली धांधली या पुष्ट नाम लें कि भ्रष्टाचार से हम सभी परिचित हैं। आम तौर पर चाय की दुकानों पर बहस का मुद्दा भी बनता है कि योजनाएं हों या फिर संस्थान भ्रष्टाचार रूपी रोग से पूर्णतया ग्रसित हैं। पीएम नरेंद्र मोदी ने भ्रष्टाचार पर लगाम कसने के लिए कई कोशिशें की, और सफलता भी प्राप्त की। गैस सिलेंडर एवं सरकारी राशन पारदर्शी तरीके से आम जनता को मुहैया हो पा रहा है। ट्विटर पर कभी प्रॉब्लम सॉल्व होते देखा था क्या? अब बात की जाए रेलवे की तो उसमें हुए सुधारों को नजरंदाज नहीं किया जा सकता। समस्याओं से निजात देने के लिए ट्विटर का इस्तेमाल शायद इससे पहले किसी सरकार के द्वारा हुआ हो। हर दिन सबसे ज्यादा यात्रियों को इधर से उधर ले जाने वाली भारतीय रेल बीते दो साल से जवाबदेह दिख रही है। ट्रैवल एजेंटों के गैंग पर सरकार ने नकेल कसी है। महामना एक्सप्रेस जैसी ट्रेन चलाकर सरकार ने साफ कर दिया कि वह भविष्य में यात्री सुविधा को कैसे बढ़ाना चाहती है। हालांकि एक महीने बाद उस ट्रेन की बद्हाली को देखकर यह ठीकरा पीएम मोदी की बजाए हम सभी खुद पर, अपनी सोच पर यदि फोड़ें तो शायद ईमानदारी होगी। मोदी सरकार ने लालू की तर्ज पर सुपर 30 का हवाला देते हुए बिहार को अमरीका सरीखे ख्वाब जरूर नहीं दिखाए लेकिन बुनियादी स्तर पर बेहतर काम जरूर किए। वाकई बदला है भारत! लाल किले के प्राचीर से कई प्रधानमंत्रियों ने आह्वान किए। सुधार का, विकास का सुनहरा ख्वाब दिखाया। लेकिन प्रत्येक पांच साल के बाद जनता खुद को लुटा लुटा सा महसूस करती रही। जनता का मानना है कि योजना आयोग जैसे जर्जर हो चुके ढांचे को बंद कर नीति आयोग बनाना मोदी सरकार का एक नया और बेहतर अंदाज रहा। मोदी सरकार ने स्कूलों में बच्चों के लिए टॉयलेट, घरों में टॉयलेट बनाने की मुहिम चलाई। जो वाकई सफल रही। हालांकि इस पर राज्य सरकार अपनी पीठ थपथपा लेती हैं। स्वच्छ भारत अभियान की सफलता भले ही अभी दूर हो, लेकिन सफाई और सुरक्षा को लेकर जागरुकता दिख रही है। महज दिखावे के लिए ही सही पर लोग स्वच्छता के लिए प्रेरित हो रहे हैं। जो कि वाकई सराहनीय है। दुनिया में मोदी, इंडिया की गूंज जन धन योजना से लेकर फसल बीमा योजना, बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ एवं अन्य योजनाओं के जरिए मोदी सरकार महज कुछ दिनों के लिए नहीं बल्कि दूरगामी परिणामों को ध्यान में रखते हुए कार्य कर रही है। जिससे वास्तव में विकास हो सके। समाचार पत्र हो या फिर वेब पोर्टल, न्यूज चैनल्स हों या फिर रेडियो के जरिए बढ़े हुए निवेश, भारत की अंतर्राष्ट्रीय मंच पर बढ़ी हुई प्रतिष्ठा का जिक्र हुआ। मैडिसन स्क्वॉयर पर मोदी-मोदी के उन जोरदार नारों में भी भारत की बढ़ी हुई प्रतिष्ठा ही थी। आज दुनिया भर में भारत एक पहचान बना रहा है, हम नहीं कहते कि ये पीएम मोदी की देन है। लेकिन कभी आप अपने जहन से पूछकर देखिए कि वास्तव में ये किसकी वजह से है। किसकी कितनी नाकामी? बार-बार और हर बार आपराधिक रिकॉर्ड को ठोंकते हुए केंद्र की नाकामी गिनवाई जाती है। पुलिस सुधार और न्यायिक सुधार जैसे जरूरी बदलाव फैसलों का इंतजार कर रहे हैं। लेकिन ये काम सिर्फ केंद्र का नहीं है। पुलिस राज्य सरकारों के पास है, वे चाहें तो राजनीति कर लें, चाहे तो कानून व्यवस्था की नजीर पेश करें। आम तौर पर एक सवाल और मुंह फैलाता है कि पीएम मोदी ज्यादातर विदेश यात्राओं में ही रहते हैं। पर सवाल तब क्यों नहीं होता जब दूसरे देशों में भारत की जय-जयकार होती है। ये किसी राजनीतिक दल की वकालत नहीं, न ही किसी की मुखालिफत है। लेकिन कामों का आंकलन है। जनता को उम्मीद है कि पीएम मोदी शेष रह गए तीन सालों में और तेजी से कार्य करेंगे। हां अरहर की दाल की कीमत 50 रूपये प्रति किलो भले न कराएं लेकिन सख्त फैसलों के जरिए भारत को असल में विकास की राह में आगे लेकर जाएंगे।