उत्तराखंड

दुनियां की एक नदी जो माँ भी है और बेटी भी

देहरादून (लोकेंद्र सिंह बिष्ट): दुनियां की अकेली नदी है जिसे लोग माँ कहकर पुकारते हैं, और यही अकेली नदी है जिसे बेटी कहकर भी बुलाते हैं और वह है “”माँ गंगा””। सच में अदभुत आलौकिक अकल्पनीय दृश्य होता है। जब मां गंगा जी के कपाट खुलते हैं। और छ महीने बाद जब कपाट बंद भी होते हैं। कपाट खुलते समय जब मां गंगा जी अपने शीतकालीन प्रवास के बाद छ महीने बाद अपने मायके मुखवा गांव से विदा होती हैं तो समूचे गांववासियों के आंखों में आंसू होते हैं अपनी लाडली के विदा होते समय।

गाजे बाजों , ढोल दमाऊ और भारतीय सेना के बैण्ड धुनों के साथ जब एक बेटी अपने मायके मुखवा मुखीमठ से अपने धाम को चलती हैं तो लोग समूचे रास्ते भर में फूल प्रसाद धूप बाती के साथ आंखों में आंसू लिए खड़े रहते हैं। अजब भी है और अविश्वसनीय भी है, समूची दुनियां की जो माँ है वह मुखवा गांववासियों की बेटी है। यही तो अटूट आस्था है मां गंगा जी में श्रद्धालुओं की। आज बेटी जब अपने मायके मुखवा के लिए गंगोत्री से चलीं तो हजारों श्रद्धालुओं के हुजूम ने अपनी माँ को विदा किया। सबके आंखों में फिर वही आंसू।

आंसू खुशी के
आंसू श्रद्धा के
आंसू भक्ति के
आंसू शक्ति के
आंसू आस्था के
आंसू विश्वास के
आंसू परम्परा के
आंसू धर्म के
आंसू कर्म के
आंसू उम्मीदों के
आंसू उल्लास के
आंसू जीवन के
आंसू मोक्ष के
आंसू पुण्य के
आंसू पाप के
आंसू सपनों के
आंसू भविष्य के
आंसू खुशहाली के
आंसू उमंग के
आंसू असफलता के
आंसू सफलता के
आंसू समृद्धि के
आंसू निरोगी काया के
आंसू बेहतरी के
आंसू पुनः मिलन के
आंसू पुनः दर्शन के,,,,,,


इन्हीं आसूंओं के साथ हजारों की संख्या में श्रद्धालुओं का हुजूम खुशी खुशी से अपनी आस्था विश्वास की नदी माँ गंगा जी की उत्सव डोली को विदा भी करते हैं और स्वागत भी करते हैं। एक तरफ विदा होने पर बिछड़ने के आसूं तो वहीं दूसरी तरफ मिलन के आसूं। और यह परंपरा आज से नहीं न जाने कब से चली आ रही है, ये ऐसी परंपरा है जिसका न कोई आदि न अंत है।

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