एक ऐसा गांव, जहां 182 वर्षों से जारी है रामलीला का सांस्कृतिक सफर
कुशीनगर । देश की राजधानी दिल्ली से लेकर अयोध्या और देश के कोने- कोने में रामलीलाओं का मंचन हो रहा है। इनमें बड़े किरदार आते हैं। चर्चा होती है, लेकिन एक गांव ऐसा भी है जो तमाम ताम-झाम से दूर 182 साल से लगातार रामलीला का मंचन कर रहा है। इसके पात्र और दर्शक ग्रमीण ही होते हैं। इस गांव ने न केवल रामलीला की सांस्कृतिक मशाल को जलाए रखा है, बल्कि देश-विदेश के अलग-अलग क्षेत्रों में काम करने वाली अनेक प्रतिभाएं भी दी हैं।
ब्रिटिश शासन में शुरू हुई यह रामलीला आज भी जारी है। इतना ही नहीं, इस रामलीला ने समाज को जोड़े रखने की अलख जगाए रखी है। आधुनिकता की इस दौर में आज की वर्तमान पीढ़ी इसे आगे बढ़ा रही है। सांस्कृतिक एकता की लौ जलाने वाली कुशीनगर जिले के कसया विकासखंड के मठिया-माधोपुर की रामलीला में जाति-पाति और न ही संप्रदाय का कभी कोई भेदभाव देखने को मिला। आज भी यह सांस्कृतिक मशाल जल रहा है।
श्रीरामलीला एवं मेला न्यास के प्रबंधक और मेला समिति के अध्यक्ष रामानंद वर्मा बताते हैं कि हनुमान चबूतरा बनने के बाद इस स्थान पर कार्तिक मास की पंचमी को रामचरित मानस पाठ का आयोजन 1839 में शुरू हुआ था। 1840 में ग्रामीण कलाकारों ने भोजपुरी में रामलीला का मंचन शुरू किया। शायद लोगों को खड़ी बोली और हिन्दी में न बोल पाना इसकी मुख्य वजह थी।
रामलीला में पात्र निभाने वाले सरोजकान्त मिश्र बताते हैं कि यह रामलीला आजादी के पहले से होती रही है। इसके जरिए संस्कृतिक एकता को बढ़ाने का काम हुआ। इस आयोजन से आस-पास के लोगों को जोड़ा गया। लोगों में देश प्रेम की भावना को जगाए रखने में इस रामलीला की बहुत बड़ी भूमिका रही।
75 वर्ष के डा. इंद्रजीत मिश्र ने बताया कि अयोध्या में रामलीला देख गांव लौटे पंडित अयोध्या मिश्र की अगुवाई में माधोपुर की रामलीला की शुरूआत हुई। वर्ष 1908 के आस-पास खिचड़ी बाबा ने इसे हिन्दी में कराने का प्रयास शुरू किया। पहली बार खड़ी बोली का प्रयोग गांव के अनपढ़ कलाकार ताड़का बनने वाले ठगई राय ने ‘मार डालेगी, काट डालेगीं’ के डायलॉग से किया था। अब हिंदी में हो रहा है। पढ़ने वाले ग्रामीण कलाकार ही रामलीला के पात्र हैं।
माधोपुर की श्रीरामलीला एवं मेला न्यास के मंत्री पयोद कांत कहते हैं कि यहां की रामलीला में वर्ष 80 के दशक तक श्रीराम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न के अलावा माता सीता और हनुमान की भूमिका निभाने वाले कलाकार केवल ब्राह्मण ही होते थे, लेकिन श्रीरामलीला समिति के तत्कालीन अध्यक्ष मनोज कांत मिश्र, मंत्री नंदलाल शर्मा, कोषाध्यक्ष श्रवण कुमार वर्मा और यहां के हनुमान कहे जाने वाले अवध नारायण दूबे आदि के प्रयासों से य़ह मिथक टूटा। अब मंचन में हर जाति व वर्ग के युवा, बुजुर्ग और महिलाओं की भागीदारी रहती है। राम-सीता विवाह में गांव की महिलाओं की भागीदारी मंगलगीत गायन के रूप में आज भी ²ष्टव्य है।
श्रीरामलीला एवं मेला न्यास के अध्यक्ष आमोद कांत बताते हैं कि यहां की रामलीला के कलाकार केवल मंच तक ही सीमित नहीं रहे, बल्कि यहां से मिली सीख ने उनका आत्मविश्वास बढ़ाया। उससे मिली प्रेरणा के बल पर कभी हार नहीं मानी। उनकी प्रतिभा को निखारा और उन्होंने अपना परचम विदेशों में भी लहराया।
कोषाध्यक्ष नंदलाल शर्मा का कहना है कि यहां की रामलीला में अग्रणी भूमिका निभाने वाले इस व़क्त देश-दुनिया के प्रतिष्ठित पदों पर हैं। कोई रक्षा अनुसंधानसंगठन (डीआरडीओ) में डायरेक्टर (पर्सनल) है तो कोई भारतीय उद्यमिता संस्थान जैसे प्रतिष्ठित संस्थान में प्रोग्राम डायरेक्टर है।
डॉ संजय द्विवेदी, श्रीरामलीला का निर्देशन करते थे। अब वह डीआरडीओ में निदेशक पर्सनल के पद पर कार्यरत हैं। राम की भूमिका निभाने वाले डॉ. अमित द्विवेदी भारतीय उद्यमिता संस्थान (ईडीआई) अहमदाबाद में प्रोग्राम डायरेक्टर हैं। अफगानिस्तान के वित्त मंत्रालय से आए अधिकारियों को देश की अर्थव्यवस्था संभालने का गुर सिखा चुके हैं। अभी हाल ही में इन्होंने देश की सबसे बड़ी प्रतियोगिता पास कर आईएएस बन चुके होनहारों को उद्यमिता का पाठ पढ़ाया है। स्टार्टअप प्रोग्राम को भी इन्होंने ही तैयार किया था, जिसे भारत सरकार ने लागू किया है। रामलीला में राम की भूमिका निभाने वाले शिवकुमार सिंह भौतिकी से वैज्ञानिक हैं और ब्राजील में कार्यरत हैं। इससे पहले जापान में थे। लक्ष्मण का किरदार निभाने वाले डॉ. पुनीत द्विवेदी ने 2016 मे जेनेरिक मानव कैप्सूल का रिकार्ड बनाया था। इनके नाम दर्ज भर से अधिक विश्व रिकार्ड गिनिज बुक में दर्ज हैं। यह इंदौर में स्वच्छता के ब्रांड एम्बेसडर भी हैं। फिलहाल अभी ये 40 लाख सालाना के पैकेज पर एक प्राइवेट कंपनी के ग्रुप डायरेक्टर हैं।
बाद की पीढ़ियों में राम की अलावा अन्य भूमिकाओं को निभा चुके आदित्य शर्मा भी 28 लाख के सालाना पैकेज पर एक प्राइवेट कंपनी में साफ्टवेयर इंजीनियर हैं। राजा दशरथ की जीवंत भूमिका निभा चुके मनोज कांत को तो ऐसी प्रेरणा मिली कि वे आरएएस के प्रचारक निकल गए और अभी वह राष्ट्रधर्म पत्रिका के निदेशक हैं। इस पत्रिका का संपादन कभी कभी पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी किया करते थे।