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Absolute रिवेंज ही इजरायल का मुख्य धर्म ओझा

विवेक ओझा

वर्तमान समय में दुनिया में कई देश आपस में टकराए हुए हैं, जहां एक ओर रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है, वहीं दूसरी ओर इजरायल और गाजा में हो रहा युद्ध लंबे समय से जारी है। ऐसे में कई लोग तीसरे विश्व युद्ध की संभावनाएं जताने लगे हैं। ईरान ने जब पहली दफा 13 अप्रैल 2024 की रात इजरायल पर अचानक ड्रोन्स और मिसाइलों के साथ आर्टिलरी फायरिंग से भी हमला किया। इसके बाद सोशल मीडिया पर यह चर्चा चलने लगी कि वल्र्ड वॉर 3 शुरू होने वाला है। क्या असल में ऐसा हो सकता है? आशंकाओं से भाग नहीं सकते लेकिन डिफेंस एक्सपट्र्स का मानना है कि तीसरा विश्व युद्ध दुनिया के दो ताकतवर देशों की जंग से शुरू होगा और ऐसे देश हैं रूस अमेरिका, चीन ब्रिटेन आदि। पिछले दो वर्षों में रूस-यूक्रेन, इजरायल-फिलिस्तीन, इजरायल-हिजबुल्ला, चीन-ताइवान, अजरबैजान-आर्मेनिया में जंग हुई। रूस-यूक्रेन का युद्ध अब भी जारी है। इजरायल के खिलाफ जिहादी कैंपेन चलाया जा रहा है। वैश्विक व्यापार को रोकने के लिए लाल सागर, अदन की खाड़ी और अरब सागर में व्यापारिक और सामरिक जहाजों को मिसाइलों और ड्रोन से निशाना बनाया जा रहा है। यमन के हूती विद्रोहियों ने सागरीय सुरक्षा को प्रभावित किया है, वहीं सोमालिया के डकैत भी हिन्द महासागर की ताकतों को प्रभावित करने से नहीं चूके। लेकिन यह सब जितनी भी घटनाएं हैं वो सब क्षेत्रीय राजनीति और क्षेत्रीय संघर्ष के दायरे में आते हैं और उसमें वैश्विक गठजोड़ के बजाए क्षेत्रीय गठजोड़ ही अधिक दिखाई देता है, जैसे फिलिस्तीन, ईरान, यमन, लेबनान का एक फ्रंट पर काम करना लेकिन इस मामले में चीन जैसी महाशक्ति का प्रत्यक्ष हस्तक्षेप इन देशों के संदर्भ में नहीं दिखता।

वहीं इजरायल और अमेरिका में गहरी दोस्ती होने के बावजूद अमेरिका इजरायल को तृतीय विश्व युद्ध को ट्रिगर कराने का दोषी बनने से भी बचता है क्योंकि उसे यूएन सहित तमाम अंतर्राष्ट्रीय संगठनों और समुदायों को अपने एक रिस्पॉन्सिबल देश होने का संदेश भी देना है। अमेरिका इजराइल-फिलिस्तीन संघर्ष में मध्यस्थ के रूप में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने का प्रयास भी कर चुका है। हालांकि एक मध्यस्थ के रूप में अमेरिका की भूमिका को फिलिस्तीन ने सदैव संदेह की दृष्टि से देखा है। इस संदर्भ में कई मौकों पर इस्लामिक सहयोग संगठन और अरब संगठनों द्वारा अमेरिका की आलोचना की गई है। अमेरिका में इजराइल की तुलना में अधिक यहूदी रहते हैं, जिसके कारण अमेरिका की राजनीति पर उनका काफी प्रभाव है। ओबामा प्रशासन के दूसरे कार्यकाल में अमेरिका-इज़राइल संबंधों में गिरावट देखी गई थी। वर्ष 2015 के परमाणु समझौते ने इजराइल को खासा चिंतित किया था और इसके लिए इजराइल ने अमेरिका की आलोचना भी की थी। हालांकि अमेरिका के मौजूदा प्रशासन के तहत अमेरिका-इजाइल संबंधों का काफी तेजी से विकास हुआ है। गौरतलब है कि कुछ वर्षों पूर्व ही अमेरिका ने येरुशलम को इजराइल की आधिकारिक राजधानी की मान्यता दे दी थी, जिसका अरब जगत के कई नेताओं ने विरोध किया था।

मिडिल ईस्ट एक ऐसा क्षेत्र है जहां तमाम बड़ी शक्तियों के स्टेक लगे हुए हैं। साथ ही मिडिल ईस्ट बड़ी ताकतों के निशाने पर भी रहता है। करीब एक साल से इजराइल ने पूरे मिडिल ईस्ट की नाक में दम कर रखा है। दुनिया के बड़े-बड़े ताकतवर मुल्क इजराइल से युद्ध रोकने की मांग रहे हैं, बावजूद इसके वो अपने एजेंडे को अंजाम देने में जुटा है और हर गुजरते दिन के साथ अपने दुश्मनों का खात्मा कर रहा है। इसके पीछे इजराइल की अपनी ताकत तो है ही, साथ ही उसके सबसे बड़े सहयोगी अमेरिका का बिछाया वो जाल भी है, जिसे भेद पाना ईरान या उसके समर्थक देशों के लिए कभी आसान नहीं होगा। दुनिया की सुपर पावर कहे जाने वाले अमेरिका की सेना दुनिया के हर महाद्वीप में मौजूद है। अमेरिका हर तरफ फैले अपने सैन्य ठिकानों का इस्तेमाल दुनिया में कहीं भी बैठे दुश्मनों से निपटने और सहयोगियों की मदद करने के लिए करता है। हाल के वर्षों में अमेरिका ने मिडिल ईस्ट के साथ-साथ साउथ एशिया में भी अपनी सैन्य मौजूदगी बढ़ाई है। इस समय अमेरिका के 80 देशों में करीब 750 सैन्य अड्डे हैं, इन देशों में सबसे ज्यादा 120 मिलिट्री बेस जपान में हैं। मिडिल ईस्ट में बढ़े तनाव में अमेरिका के ये मिलिट्री बेस अहम भूमिका निभा रहे हैं और इजराइल की सुरक्षा के लिए कवच बने हुए हैं। अमेरिका ने पूरे मिडिल ईस्ट में मिलिट्री बेस का ऐसा जाल बिछा लिया है कि चाहकर भी अरब देश इस जाल को नहीं तोड़ पा रहे हैं। हाल ही में संयुक्त राष्ट्र की अपनी स्पीच में इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू भी कह चुके हैं कि ईरान का कोना-कोना, यहां तक कि पूरा मिडिल ईस्ट हमारी रीच में है। मिडिल ईस्ट के लगभग 19 देशों में अमेरिका के मिलिट्री बेस हैं, जिनमें से प्रमुख कतर, बहरीन, जॉर्डन, और सउदी अरब में हैं।हाल के दिनों की घटनाओं को देखें तो इजरायल न सिर्फ हमास और हिज्बुल्ला के खिलाफ जंग लड़ रहा है, बल्कि उसकी 7 मोर्चों पर भी लड़ाई चल रही है। एक्सिस ऑफ रेजिस्टेंस’ जो कि एक इनफॉर्मल गठबंधन है और ईरान की मदद से खड़ा हुआ है, इजरायल को घेरने की नीति पर काम कर रहा है। एक्सिस ऑफ रेजिस्टेंस ग्रुप में फिलिस्तीन का हमास, लेबनान का हिज्बुल्ला, यमन के हूती विद्रोही, इराक और सीरिया के विद्रोही संगठन आते हैं। चूंकि, ईरान की इजरायल और अमेरिका से कट्टर दुश्मनी है। लिहाजा एक्सिस ऑफ रेजिस्टेंस इजरायल और अमेरिका के खिलाफ काम करता है। 80 के दशक में ईरान ने मिडिल ईस्ट में अपना वर्चस्व कायम करने के लिए कुछ प्रॉक्सी संगठनों को तैयार किया था। इसमें ईरानी की रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉप्र्स की अहम भूमिका है। यह गठबंधन मिडल ईस्ट में अमेरिका और इजरायल के बढ़ते प्रभाव को चुनौती देता है। इसमें शामिल हमास, हूती और हिज्बुल्ला मिलिशिया ग्रुप लाल सागर में स्वतंत्र आवाजाही में दिक्कतें पैदा करते हैं।

इजरायल इस समय गाजा, लेबनान, बेरूत में आर-पार की जंग में लगा है। एक ऐसी जंग जिसमें वह सब कुछ खत्म कर देने पर आमादा है और ऐसा वह केवर्ल हिंसक हमलों के जरिए ही नहीं बल्कि कूटनीति और तकनीकी का इस्तेमाल करके कर रहा है। इजरायल इस मामले में पश्चिमी देशों तक की कोई दलील अपील सुनने को तैयार नहीं है। इस समय एब्सोल्यूट रिवेंज ही उसका मुख्य धर्म बन चुका है और जिस तरह से उसने लेबनान में पेजर ब्लास्ट की घटना को अंजाम दिया है, उससे विश्व समुदाय में टेक्नोलॉजिकल वॉर, इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर और साइबर वारफेयर को लेकर्र चिंता बढ़ गई है। लेबनान और सीरिया के कुछ इलाकों में पेजर ब्लास्ट हुए। लगभग एक घंटे तक पेजर में ब्लास्ट होते रहे, किसी की जेब में पेजर फटा तो किसी के हाथ में ही पेजर में विस्फोट हो गया। हर तरफ चीख-पुकार सुनाई देने लगी। लेबनान के चरमपंथी संगठन हिजबुल्लाह ने इस हमले के लिए इजरायल को जिम्मेदार ठहराया। दावा किया जा गया है कि इजरायल की खुफिया एजेंसी मोसाद ने पांच महीने पहले ही पेजर में विस्फोटक फिट कर दिया था। ऐसे में इस पूरे मामले में ताइवान की कंपनी की भूमिका पर सवाल उठने लगे हैं। इसके साथ ही यह भी सवाल उठने शुरू हुए कि इस जियो पॉलिटिकल रायवैलरी (भू राजनीतिक शत्रुता) के युग में क्या अब एक देश अपने शत्रु देश को इस तरह से भी निशाना बनाएगा कि वहां पेजर, मोबाइल, एसी, टीवी में ब्लास्ट कराकर लोगों को हताहत किया जाएगा? कम्प्यूटर्स को तो पहले ही निशाना बनाया जा चुका है जिसे हम साइबर हमलों के नाम से जानते हैं लेकिन मोबाइल, एसी, टीवी में ब्लास्ट होने की संभावना एक बेहद सेंसेटिव इश्यू बनकर सामने आ रहा है। आज विभिन्न देश प्रौद्योगिकी के स्तर पर इतने एडवांस्ड हो चुके हैं कि वह पेजर या वाकी-टाकी ब्लास्ट जैसे अन्य विस्फोटों को अंजाम दे सकते हैं और इजरायल ने इसकी पटकथा लिख दी है। चीन, पाकिस्तान, उत्तर कोरिया, वेनेजुएला, ईरान और मिडिल ईस्ट के कुछ अन्य देश जिस तरह से दूसरे देशों के साथ शत्रुता का भाव रखते हैं, उससे इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि भविष्य में वे इस तरीके की कोई कार्यवाही न करें। कहने वाले तो यह भी कह रहे हैं कि भारत भी अपने रिसर्च एंड एनालिसिर्स ंवग के साथ किसी टेक्नोलॉजी में कम नहीं है और उसको किसी भी प्रौद्योगिकी के स्तर पर मदद देने वाले मजबूत डिफेंस पार्टनर्स भी हैं और भारत भी चाहे तो वो जम्मू कश्मीर की अस्मिता से खिलवाड़ करने वाले पाकिस्तानी आतंकियों के साथ वैसा ही कार्य कर सकता है, जैसा इजरायल ने हिजबुल्ला के आतंकियों को निपटाने में किया है। यह अलग बात है कि भारत के इस राह पर जाने की संभावना कम है लेकिन और कई ऐसे देश हैं जो अपने प्रतिद्वंदी के खिलाफ हर कट्टर कार्यवाही के बारे में सोचते हैं।

हिज्बुल्ला, हूती दे रहे इजरायल को चुनौती
लेबनान में हिज्बुल्ला शिया इस्लामिस्ट पॉलिटिकल विंग है। लेबनान के गृहयुद्ध के बाद बाकी समूहों ने हथियार डाल दिए थे, लेकिन हिज्बुल्ला ने जंग जारी रखी थी। 2000 में इजरायल गृहयुद्ध से पीछे हट गया, लेकिन हिज्बुल्ला को मौके की तलाश थी। 2006 में वो मौका आया। हिज्बुल्ला और इजरायल के बीच 5 हफ्ते तक जंग चली थी। उस समय हिज्बुल्ला ने अपनी पूरी ताकत दिखाई थी। हिज्बुल्ला ने इजरायल पर हजारों रॉकेट छोड़े, फिर गाजा की लड़ाई के दौरान हिज्बुल्ला ने इजरायल के खिलाफ सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइलों का इस्तेमाल किया। अब एक बार फिर से इजरायल और हिज्बुल्ला आमने-सामने आ गए हैं। इजरायल लगातार हिज्बुल्ला के ठिकानों को निशाना बना रहा है। हिज्बुल्ला भी इन हमलों का जवाब दे रहा है। वहीं इजरायल विरोधी एक्सिस ऑफ रेजिस्टेंस का एक फोर्स हूती विद्रोही संगठन भी है। यमन के इस विद्रोही गुट ने लाल सागर में आतंक मचा रखा है। वैसे तो हूती की स्थापना 90 के दशक में हुई थी, लेकिन 2014 में यह मजबूती से उभरा। यमन के एक बड़े हिस्से में हूती विद्रोही गुट का कब्जा है। गाजा पर जारी इजरायली हमलों के खिलाफ हूती विद्रोहियों ने लाल सागर में इजरायली जहाजों को टारगेट किया था। अमेरिका कई प्लेटफॉर्म पर आरोप लगा चुका है कि हूती ग्रुप को ईरान ने फंडिंग और हथियार मिलते हैं। हालांकि, ईरान इससे इनकार करता रहा है।

इजरायल ने लेबनान में पेजर ब्लास्ट को कैसे दिया अंजाम
इजरायल द्वारा लेबनान के 1000 से अधिक हिजबुल्ला आतंकियों को निशाना बनाने की तकनीक के आयामों पर अलग-अलग स्तरों पर चर्चा हो रही है। न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, इजरायल ने हिजबुल्लाह के खिलाफ मोसाद के खुफिया ऑपरेशन के तहत इन पेजर में विस्फोटक फिट कर दिए थे। हिजबुल्लाह ने ताइवान की गोल्ड अपोलो नाम की कंपनी को लगभग 3000 पेजर का ऑर्डर दिया था लेकिन इन पेजर के लेबनान पहुंचने से पहले ही इनसे छेड़छाड़ कर दी गई। इन पेजर्स को इस साल अप्रैल-मई के बीच ताइवान से लेबनान भेजा गया था। इससे लगता है कि इस हमले की साजिश को कई महीने पहले अंजाम दिया गया था। अमेरिकी अधिकारियों के मुताबिक, यह पेजर ताइवान की कंपनी के एपी924 मॉडल के थे। पेजर की जो खेप ताइवान से लेबनान भेजी गई थी, उनमें हर पेजर पर एक से दो औंस का विस्फोटक लगा हुआ था। इस विस्फोटक को पेजर में लगी बैटरी के बगल में लगाया गया था। लेबनान में दोपहर 3.30 बजे इन पेजर्स पर एक मैसेज आया था और इस मैसेज ने पेजर में लगे विस्फोटक को ऐक्टिवेट कर दिया था। तब यह दावा किया गया था कि पेजर डिवाइसों में विस्फोट से पहले कई सेकेंड तक बीप की आवाज सुनाई दी थी। सूत्रों के मुताबिक मोसाद ने दरअसल पेजर के अंदर एक छोटा बोर्ड इंजेक्ट किया था जिसमें विस्फोटक था। इस विस्फोटक को किसी डिवाइस या स्कैनर से डिकेक्ट करना बहुत मुश्किल है।

मोसाद ने पेजर में लगाया था पीईटीएन विस्फोटक
स्काई न्यूज अरबिया की रिपोर्ट के मुताबिक, इजरायल की खुफिया एजेंसी मोसाद ने हिजबुल्लाह के पेजर के भीतर पीईटीएन फिट किया था। यह दरअसल एक तरह का विस्फोटक है, जिसे पेजर की बैटरीज पर लगाया गया था। इन पेजर्स में बैटरी के तापमान को बढ़ाकर विस्फोट किया गया। इस विस्फोटक का वजन 20 ग्राम से भी कम था। पेजर ब्लास्ट की गुत्थी सुलझी नहीं थी कि वॉकी-टॉकी में विस्फोट हुआ। फिर घर, कारें, मोटरसाइकिल और सौलर सिस्टम भी फटने लगे। इस सब के बाद सवाल यही है कि लेबनान में आखिर हो क्या रहा है? कैसे अचानक से ये सब होने लगा? 17 सितंबर को एक के बाद एक सैकड़ों पेजरों में धमाके कैसे हुए? पेजर धमाकों से ही लेबनान डरा-सहमा हुआ था। इन घटनाओं में मारे गए लोगों के जनाजे उठाए जा रहे थे, अचानक कुछ ऐसा हुआ जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी। जनाजे में ही लोगों के जेब में रखे ‘वॉकी-टॉकी’ फटने लगे और 32 लोगों की मौत हो गई। वहीं 3250 लोग बुरी तरह से घायल हो गए। न्यूज एजेंसी एएफपी की रिपोर्ट के मुताबिक, पेजर धमाकों के एक दिन बाद वॉकी टॉकी में विस्फोट की घटना हुई । एक दुकान, जिसमें वॉकी टॉकी रखे थे, उसमें भी आग लग गई। जब जेब में रखे पेजर एक के बाद एक फटने लगे तो कुछ ही समय बाद हिजबुल्लाह लड़ाकों की खून से लथपथ तस्वीरें और धमाके के वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होने लगीं।

गौरतलब है कि इजरायल ने पहले भी इसी तरह का हमला किया था। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा खुफिया विश्लेषक डेविड कैनेडी के मुताबिक, इजरायल ने 1996 में हमास नेता याहया अयाश की हत्या के लिए उनके फोन में 15 ग्राम आरडीएक्स विस्फोटक प्लांट किया था। इस डिवाइस में उस समय विस्फोट हुआ, जब उन्होंने अपने पिता को फोन किया था। लेबनान में पेजर धमाके को लेकर कहा गया कि हो सकता है कि पेजर सिस्टम को हैक कर विस्फोट किया गया। इसका सीधा शक इजरायल और इसकी खुफिया एजेंसी मोसाद पर जताया जा रहा है। माना जा रहा है कि र्हैंकग के जरिए पेजरों की लिथियम बैटरी को इतना गर्म कर दिया गया कि उनमें धमाका हो गया। दूसरी बात यह भी कही जा रही है कि पेजर बनाते समय या फिर उसकी आपूर्ति के समय सप्लाई चेन में गड़बड़ी पैदा करके हजारों पेजर में विस्फोटक प्लांट किए गए।

अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में उथल-पुथल
इजरायल पर ईरान के हमले का असर पश्चिम एशिया क्षेत्र की जियो पॉलिटिक्स तक ही सीमित नहीं है बल्कि अंतरराष्ट्रीय तेल बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में उथल-पुथल फिर तेज हो गई है। एक अक्टूबर को इजरायल पर ईरान के हमले से पहले अंतरराष्ट्रीय तेल बाजार में ब्रेंट क्रूड ऑयल फ्यूचर्स की कीमत 70.78 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल थी। हमले के बाद सिर्फ 24 घंटे के अंदर यह कीमत बढ़कर 75 डॉलर के आसपास पहुंच गई। गौरतलब है कि भारत अपनी जरूरत का 80 से 85 प्रतिशत तक कच्चे तेल का आयात करता है। ऐसे में महंगे होते कच्चे तेल की वजह से भारत का इम्पोर्ट बिल काफी ज्यादा बढ़ने की आशंका है। जाने माने तेल अर्थशास्त्री किरीट पारीख का कहना है कि, इजरायल पर ईरान के हमले के बाद अंतरराष्ट्रीय तेल अर्थव्यवस्था में उथल-पुथल तेज हो गई है और कच्चा तेल फिर महंगा हो गया है। अंतरराष्ट्रीय तेल बाजार में अगर कच्चा तेल 5 डॉलर प्रति बैरल महंगा होता है तो भारत का ऑयल इम्पोर्ट बिल 8 से 9 बिलियन डॉलर तक बढ़ जाएगा। भारत 80 से 85 प्रतिशत तक अपनी जरूरत का कच्चा तेल अंतरराष्ट्रीय तेल बाजार से आयात करता है। अगर इजरायल ईरान पर जवाबी हमला करता है तो अंतरराष्ट्रीय तेल बाजार में कच्चे तेल की कीमत और बढ़ने की आशंका है। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में स्कूल आफ इंटरनेशनल स्टडीज के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ राजन कुमार का कहना है कि ईरान-इजरायल के बीच टकराव की वजह से भारत की विदेश नीति के सामने चुनौतियां और बढ़ सकती हैं। डॉ राजन कुमार के अनुसार, पश्चिम एशिया पर युद्ध के बादल गहराते जा रहे हैं। इसकी वजह से भारत की विदेश नीति के सामने चुनौतियां बढ़ेंगी। मेरी राय में रूस-यूक्रेन युद्ध के मुकाबले ईरान- इजरायल युद्ध का भारत की विदेश नीति और अर्थव्यवस्था पर पर ज्यादा असर पड़ेगा। अभी तक इजरायल का एक प्रॉक्सी वार हिजबुल्लाह, हमास और दूसरे संगठनों के साथ चल रहा था। अब ईरान के इसमें कूदने की वजह से दो देशों के बीच जंग जैसे हालात बन गए हैं।

भारत के इजरायल और ईरान दोनों के साथ अच्छे संबंध हैं। ऐसे में आने वाले दिनों में दोनों देशों का भारत का समर्थन हासिल करने के लिए सरकार पर दबाव बढ़ेगा और भारत के लिए पश्चिम एशिया की जियो पॉलिटिक्स में बैलेंस बनाकर अपनी विदेश नीति की प्राथमिकताओं और भारत के हितों को आगे बढ़ाना चुनौतीपूर्ण हो सकता है। जाहिर है, अगर ऐसा हुआ तो भारत का आइल इम्पोर्ट बिल और ज्यादा बढ़ जाएगा। कच्चे तेल के महंगा होने का असर अंतरराष्ट्रीय बाजार में नेचुरल गैस की कीमत पर भी पढ़ने की आशंका है। भारत अभी करीब 50 फीसदी अपनी जरूरत की नेचुरल गैस विदेश से आयात करता है।

ब्लास्ट मामले का वैश्विक क्षेत्रीय प्रभाव
अब इस बात का विश्लेषण शुरू हो चुका है कि लेबनान में पेजर ब्लास्ट मामले का वैश्विक क्षेत्रीय प्रभाव क्या होगा। इजरायल ने अभी तक इस हमले की जिम्मेदारी नहीं ली है लेकिन जिस तरीके से ये हमले हुए हैं, इजरायली खुफिया एजेंसी मोसाद इसमें माहिर है। लेबनान में पेजर ब्लास्ट से जो कहानी शुरू हुई थी, वह हिजबुल्लाह चीफ के खात्मे तक पहुंच गई और इजराइली सेना ने हिजबुल्ला चीफ नसरल्लाह को मारने के लिए जो ऑपरेशन चलाया था, उसे ऑपरेशन न्यू ऑर्डर नाम दिया गया। इजराइली सेना ने 27 सितंबर की रात साढ़े 9 बजे बेरूत के दाहिया में हिजबुल्लाह के हेडक्वार्टर पर हवाई हमला किया। हमला इतना भीषण था कि आसपास की 6 इमारतें मलबे के ढेर में बदल गईं थीं। इलाके में धुएं का गुबार छा गया और हर तरफ केवल धुआं ही धुआं नजर आया। बताया जा रहा है कि आईडीएफ ने इस हमले में 80 टन विस्फोटक इस्तेमाल किया था। इसमें बंकर को भेदने वाले बम भी शामिल थे। हमले के वक्त नसरल्लाह अपनी बेटी के साथ वहीं मौजूद था। हमले के बाद आईडीएफ ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर लिखा, ‘अब दुनिया को नसरल्लाह से डरने की जरूरत नहीं है। वह आतंक नहीं फैला पाएगा’। इसके बाद मिडल ईस्ट में तनाव गहरा गया है।

ब्रिटिश अखबार द गार्डियन के डिफेंस एंड सिक्योरिटी एडिटर डैन सब्बाग ने एक लेख लिखा है जिसमें वो कहते हैं कि हिज्बुल्लाह पर असाधारण, समन्वित हमला, जिसमें लेबनानी समूह के लोगों के द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले हजारों पेजर उड़ा दिए गए, निश्चित रूप से मोसाद का ऑपरेशन है। इजरायली खुफिया एजेंसी दशकों से हमास और हिज्बुल्लाह नेताओं को निशाना बनाती रही है। इजरायल-हमास युद्ध शुरू होने के बाद से हिज्बुल्लाह और इजरायल दोनों के बीच महीनों र्से ंहसक झड़प चल रही है। अगर हालिया हमले में इजरायल की संलिप्तता की पुष्टि हो जाती है तो मध्य-पूर्व में तनाव और बढ़ सकता है। स्पाइज अगेंस्ट आर्मागेडन और इजरायली खुफिया जानकारी पर किताबें लिख चुके योसी मेलमैन का कहना है कि मोसाद हिजबुल्लाह के अंदर बार-बार घुसपैठ करने में सक्षम है। उन्होंने कहा कि इससे एक-दूसरे पर कभी-कभार हमले कर रहे इजरायल और हिज्बुल्लाह के बीच युद्ध छिड़ सकता है। हालांकि, मेलमैन का यह भी कहना है कि हिज्बुल्लाह जवाब में छोटे-मोटे हमले भी कर सकता है। रूस ने भी पेजर हमले को लेकर कहा है कि यह बड़े क्षेत्रीय संघर्ष का कारण बन सकता है। रूसी राष्ट्रपति भवन क्रेमलिन की तरफ से चेतावनी दी गई कि लेबनानी समूह हिजबुल्लाह और दूसरे लोगों पर विस्फोटक पेजर से किया गया हमला बड़े क्षेत्रीय संघर्ष का कारण बन सकता है।

पश्चिम एशिया में बढ़ता तनाव भारत के लिए चिंताजनक
ईरान-इजरायल जंग से भारत के सामने कई सवाल खड़े हुए हैं। इस संघर्ष से क्या तेल के दाम बढ़ेंगे? क्या आर्थिक कारोबार पर असर पड़ेगा? क्या कूटनीतिक मुश्किलें बढ़ेंगी? युद्ध का चाबहार पोर्ट और ट्रेड कॉरिडोर पर क्या असर पड़ेगा? क्या पश्चिम एशिया की आग दूसरे इलाकों तक पहुंचेगी? क्या अमेरिका का दबाव बढ़ेगा? फिलहाल भारतीय विदेश मंत्रालय ने देश के नागरिकों को ईरान की सभी गैर-जरूरी यात्राओं से बचने की सलाह दी है। विदेश मंत्रालय ने ईरान में रहने वाले भारतीयों से सतर्क रहने और तेहरान में भारतीय दूतावास के संपर्क में रहने को कहा है। विदेश मंत्रालय ने कहा है कि हम पश्चिम एशिया में सुरक्षा के हालात बिगड़ने से बहुत चिंतित हैं और सभी संबंधित पक्षों से संयम बरतने और नागरिकों की सुरक्षा का आह्वान दोहराते हैं। हम आग्रह करते हैं कि सभी मुद्दों का समाधान बातचीत और कूटनीति के माध्यम से किया जाना चाहिए। इस बीच, भारत की एक बड़ी फुटबॉल टीम मोहन बागान सुपर जायंट ने ईरान न जाने का फैसला लिया है। टीम को वहां एक मैच के लिए ईरान की यात्रा पर जाना था।

अंतर्राष्ट्रीय रक्षा विशेषज्ञ ब्रह्मा चेलानी का कहना है कि ईरान और इजरायल आपस में सीधा युद्ध नहीं चाहते। ऑपरेशन ट्रू प्रॉमिस के जरिए ईरान का इजरायल के खिलाफ दूसरा हमला है। अप्रैल में भी ईरान ने हमले किए थे। इस बार ईरान ने बैलिस्टिक मिसाइलों से हमले किए जिससे इजरायल को कुछ नुकसान हुआ है। हालांकि न तो ईरान और न ही इजरायल चाहता है कि उनके बीच सीधा युद्ध हो। अप्रैल में जब ईरान ने हमला किया था तो उसने अमेरिका को तीन-चार दिन पहले बता दिया था। इस पर अमेरिका ने इजरायल की हवाई सुरक्षा मजबूत कर दी थी। इस बार ईरान ने अमेरिका को सिर्फ दो-तीन घंटे का नोटिस दिया। इससे इजरायल और अमेरिका को बचाव के लिए कम समय मिला। दोनों देश आपस में युद्ध नहीं चाहते। इजरायल का पहले से ही हमास, हिज्बुल्लाह, हूती, फिलिस्तीनी के साथ संघर्ष चल रहा है। ईरान अपेक्षाकृत कमजोर देश है यही कारण है कि वे दोनों नहीं चाहते कि एक सीधा युद्ध शुरू हो।’ इजरायल और ईरान आपस में भिड़ेंगे तो इसका असर भारत और यहां की अर्थव्यवस्था पर भी पड़ सकता है। ईरान-इजरायल जंग से समुद्री मार्ग से व्यापार पर असर पड़ सकता है। भारत और यूरोप के बीच बनने वाले इकानॉमिक कॉरिडोर का एजेंडा भी अटक सकता है। भारत की र्शिंपग कॉस्ट बढ़ सकती है। भारत करीब 85 प्रतिशत कच्चा तेल आयात करता है, जंग से ईरान से तेल आयात पर असर पड़ सकता है।लंबी जंग चलती है तो सोना-चांदी महंगा होगा और शेयर बाजार में भी गिरावट दिख सकती है।

इजराइल-फिलिस्तीन संघर्ष की पृष्ठभूमि
इजराइल और फिलिस्तीन के मध्य संघर्ष का इतिहास 100 साल से अधिक पुराना है और इसकी शुरुआत साल 1917 में उस समय हुई थी जब तत्कालीन ब्रिटिश विदेश सचिव आर्थर जेम्स बालफोर ने बालफोर घोषणा के तहत फिलिस्तीन में एक यहूदी ‘राष्ट्रीय गृह (नेशनल होम) के निर्माण के लिए ब्रिटेन का आधिकारिक समर्थन व्यक्त किया। अरब और यहूदियों के बीच संघर्ष को समाप्त करने में असफल रहे ब्रिटेन ने वर्ष 1948 में फिलिस्तीन से अपने सुरक्षा बलों को हटा लिया और अरब तथा यहूदियों के दावों का समाधान करने के लिए इस मुद्दे को नवनिर्मित संगठन संयुक्त राष्ट्र के विचारार्थ प्रस्तुत किया था। संयुक्त राष्ट्र ने फिलिस्तीन में स्वतंत्र यहूदी और अरब राज्यों की स्थापना करने के लिए एक विभाजन योजना प्रस्तुत की जिसे फिलिस्तीन में रह रहे अधिकांश यहूदियों ने स्वीकार कर लिर्या किंतु अरबों ने इस पर अपनी सहमति प्रकट नहीं की। वर्ष 1948 में यहूदियों ने स्वतंत्र इजराइल की घोषणा कर दी और इजराइल एक देश बन गया। इसके परिणामस्वरूप आस-पास के अरब राज्यों (इजिप्ट, जॉर्डन, इराक और सीरिया) ने इजराइल पर आक्रमण कर दिया। युद्ध के अंत में इजराइल ने संयुक्त राष्ट्र की विभाजन योजना के आदेशानुसार प्राप्त भूमि से भी अधिक भूमि पर अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया। इसके पश्चात दोनों देशों के मध्य संघर्ष तेज होने लगा और वर्ष 1967 में प्रसिद्ध ‘सिक्स डे वॉर’ हुआ, जिसमें इजराइली सेना ने गोलन हाइट्स, वेस्ट बैंक तथा पूर्वी येरुशलम को भी अपने अधिकार क्षेत्र में कर लिया। वर्ष 1987 में मुस्लिम भाईचारे की मांग हेतु फिलिस्तीन में ‘हमास’ नाम से एर्क हिंसक संगठन का गठन किया गया। इसका गठर्न ंहसक जिहाद के माध्यम से फिलिस्तीन के प्रत्येक भाग पर मुस्लिम धर्म का विस्तार करने के उद्देश्य से किया गया था। समय के साथ वेस्ट बैंक और गाजा पट्टी के अधिगृहीत क्षेत्रों में तनाव व्याप्त हो गया जिसके परिणामस्वरूप वर्ष 1987 में प्रथम इंतिफिदा अथवा फिलिस्तीन विद्रोह हुआ, जो कि फिलिस्तीनी सैनिकों और इजराइली सेना के मध्य एक छोटे युद्ध में परिवर्तित हो गया।

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