नई दिल्ली : एक्यूट पायलोनेफ्राइटिस (Acute Pyelonephritis) एक बैक्टीरियल संक्रमण है, जिससे किडनी में सूजन आ जाती है। यह किडनी का एक अप्रत्याशित और गंभीर संक्रमण है, जिसमें मूत्रनली का संक्रमण ब्लैडर से होते हुए किडनी तक पहुंच जाता है। यह स्थिति जानलेवा हो सकती है क्योंकि इसमें किडनी में सूजन आ जाती है और स्थायी नुकसान हो सकता है।
यूं तो संक्रमण के फैलने की दर अलग-अलग हो सकती है, लेकिन आम तौर से एक्यूट पायलोनेफ्राइटिस धीरे-धीरे बढ़ता है। जिन लोगों को मूत्रनली में ब्लॉकेज होता है, उनमें संक्रमण लंबे समय तक बने रहने की संभावना ज्यादा होती है। यह शारीरिक विकृतियों, वेसिकूरेटरल रिफ्लक्स, या यूटीआई (UTI) के कारण हो सकता है।
सामान्य रूप से संक्रमण निचली मूत्रनली (यूटीआई) के संक्रमण के रूप में शुरू होता है। बैक्टीरिया यूरेथ्रा से होते हुए शरीर में प्रवेश करता है, जहां यह विकसित होकर ब्लैडर की ओर बढ़ जाता है और सीधे किडनी को नुकसान पहुंचता है। यह संक्रमण अक्सर ई. कोलाई जैसे बैक्टीरिया की वजह से होता है। खून के गंभीर संक्रमण से भी किडनी को नुकसान और एक्यूट पायलोनेफ्राइटिस हो सकता है। यह रिफ्लक्स नेफ्रोपैथी के कारण भी हो सकता है, जिसमें मूत्र के वापस किडनी के अंदर की ओर बहने के कारण किडनी को क्षति पहुंचती है।
एक्यूट पायलोनेफ्राइटिस के लक्षण संक्रमण के एक सप्ताह के अंदर दिखने लगते हैं। दुर्लभ मामलों में इस संक्रमण का कोई लक्षण नहीं दिखाई देता। बच्चों और वृद्धों को अन्य लोगों से अलग लक्षण होते हैं। मरीजों को महसूस होने वाले आम
लक्षण हैं-
बार-बार मूत्र लगना और मूत्र में मवाद या खून आना
मूत्र करने पर दर्द या जलन महसूस होना
मूत्रस्थल, पीठ, पेट या किनारों की ओर दर्द
टखनों में सूजन, खुजली, और थकान
थकान और उल्टी करने की बार-बार इच्छा होना
मूत्र में मछली की बदबू
102 डिग्री फॉरेनहाईट से ज्यादा बुखार
मतिभ्रम होना (अक्सर वृद्धों में होता है)
यदि व्यक्ति को उपरोक्त में से कोई भी लक्षण लंबे समय तक बना रहे, तो उसे डॉक्टर से परामर्श लेना चाहिए। एक्यूट पायलोनफ्राईटिस का निदान कुछ परीक्षणों द्वारा किया जा सकता है।
यदि व्यक्ति को ये लक्षण महसूस हो रहे हों, तो सटीक परिणाम प्राप्त करने का एक तरीका मूत्र की जांच है। इस जांच में मूत्र में बैक्टीरिया, घनत्व, खून और मवाद का परीक्षण किया जाता है। मूत्र की जांच में संक्रमण और कम से मध्यम स्तर के प्रोटीन दिख सकते हैं।
इसमें कॉन्ट्रैस्ट के साथ पेट और पेल्विस की कंप्यूटेड टोमोग्राफी (सीटी) स्कैन किया जाता है। संक्रमण की मात्रा सीटी द्वारा निर्धारित की जा सकती है, जिससे फोकल पैरेन्काईमल विकृतियों, एम्फाईसेमेटस परिवर्तनों, और शारीरिक विसंगतियों की पहचान होती है।
डिमरकैप्टोसक्सिनिक एसिड टेस्ट (डीएमएसए) एक इमेजिंग की विधि है, जिसमें रेडियोएक्टिव सामग्री को इंजेक्ट करके मॉनिटर किया जाता है। इस प्रक्रिया में कलाई में नसों के माध्यम से सामग्री को इंजेक्ट किया जाता है। जब रेडियोएक्टिव पदार्थ किडनी से गुजरता है, तो इमेज ली जाती हैं, जिनसे संक्रमित और धब्बेदार क्षेत्र प्रदर्शित होते हैं।
जो पायलोनेफ्राइटिस जटिल नहीं होते, उनका इलाज डॉक्टर द्वारा बताई गई दवाईयों द्वारा किया जा सकता है। एक्यूट पायलोनेफ्राइटिस का इलाज सबसे पहले एंटीबायोटिक दवाई से किया जाता है। दवाई निर्धारित समय की पूरी अवधि में ली जानी चाहिए, फिर चाहे बीमारी के ठीक होने में दो या तीन हफ्तों का समय ही क्यों न लगे।
हालांकि कुछ मामलों में किडनी के अंदर की संरचनात्मक विकृति को ठीक करने या फिर किसी रुकावट को हटाने के लिए सर्जरी जरूरी हो सकती है। यदि सूजन पर एंटीबायोटिक दवाईयों का असर नहीं होता है, तो सर्जरी की जरूरत पड़ सकती है। नेफ्रेक्टोमी की जरूरत गंभीर संक्रमण के मामले में पड़ती है। इसमें सर्जन इलाज के दौरान किडनी के एक हिस्से को निकाल देता है। इसलिए इस बीमारी के शुरुआती संकेतों और लक्षणों को समझना एवं जल्द से जल्द मेडिकल परामर्श प्राप्त करना बहुत जरूरी होता है।