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भगवान परशुराम को लेकर सियासत शुरू अखिलेश के बाद आज दिनेश शर्मा करेंगे प्रतिमा का अनावरण

उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव नजदीक आते ही जातिगत और धार्मिक आधार पर राजनीतिक समीकरणों के लिए बिसात बिछनी तेज हो गई है। इस बार यूपी की राजनीति के केंद्र में ब्राह्मण आ गए हैं। भगवान परशुराम को लेकर सियासत शुरू हो गई है। ओबीसी वर्ग की राजनीति करने वाले अखिलेश यादव ने इस बार परशुराम के मंदिर का अनावरण किया तो अब भाजपा भी आज लखनऊ में भगवान परशुराम की प्रतिमा का अनावरण कर रही है।

भाजपा लखनऊ के सहसोवीर मंदिर में भगवान परशुराम की 11 फीट ऊंची प्रतिमा लगवा रही है। 6 फीट ऊची प्रतिमा को 5 फीट ऊंचे चबूतरे पर स्थापित किया गया है। यह प्रतिमा भाजपा सांसद रीता बहुगुणा जोशी के बेटे मयंक जोशी ने बनवाई है। इस प्रतिमा का अनावरण डिप्टी सीएम डॉ. दिनेश शर्मा करेंगे। जबकि कैबिनेट मंत्री बृजेश पाठक और राज्यसभा सांसद शिव प्रताप शुक्ल समेत BJP के कई ब्राह्मण चेहरे मौजूद रहेंगे। सुबह 11 बजे भगवान परशुराम की प्रतिमा का अनावरण का कार्यक्रम है।

रविवार को लखनऊ के गोसाईंगंज में समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भी भगवान परशुराम के मंदिर और उनके फरसे का अनावरण किया। उन्होंने वैदिक मंत्रोच्चार के साथ भगवान परशुराम की पूजा की और आशीर्वाद लेकर चुनावी बिगुल फूंका। इस दौरान अखिलेश यादव एक हाथ में परशुराम का फरसा लिए दिखे तो दूसरे हाथ में भगवान कृष्ण का सुदर्शन चक्र भी लिया। यूपी की राजनीति को समझने वालों का कहना है कि अखिलेश यादव ने फरसा और चक्र के जरिए जातिगत राजनीति को साधने का प्रयास किया है।

ओबीसी और मुस्लिम समाज की राजनीति करने वाले अखिलेश यादव ने परशुराम मंदिर और फरसे के जरिए ब्राह्मण बिरादरी को संदेश देने का प्रयास किया है। दरअसल उत्तर प्रदेश में एक नैरेटिव यह भी चलाया जा रहा है कि ब्राह्मण समुदाय के लोग भाजपा की वर्तमान सरकार से नाराज हैं। ऐसे में अखिलेश यादव इस वर्ग को लुभाने की कोशिश करते हुए दिख रहे हैं। इसके जवाब में भाजपा भी मैदान में आ गई है। ब्राह्मणों को लुभाने के लिए भाजपा भी अब पार्टी के ब्राह्मण चेहरों को आगे कर समाज को जोड़ने की कवायद शुरू कर दी है। इसी के तहत सपा के बाद भाजपा भी भगवान परशुराम की प्रतिमा लगवा रही है।

पिछले हफ्ते दिल्ली में केंद्रीय शिक्षा मंत्री और यूपी के चुनाव प्रभारी धर्मेंद्र प्रधान के घर पर यूपी के ब्राह्मण नेताओं की एक बड़ी बैठक हुई।
पिछले हफ्ते दिल्ली में केंद्रीय शिक्षा मंत्री और यूपी के चुनाव प्रभारी धर्मेंद्र प्रधान के घर पर यूपी के ब्राह्मण नेताओं की एक बड़ी बैठक हुई।
भाजपा ने ब्राह्मणों को साधने के लिए बनाई है कमेटी

पिछले हफ्ते दिल्ली में केंद्रीय शिक्षा मंत्री और यूपी के चुनाव प्रभारी धर्मेंद्र प्रधान के घर पर यूपी के ब्राह्मण नेताओं की एक बड़ी बैठक हुई। बैठक में ब्राह्मणों की नाराजगी को लेकर मंथन हुआ। बैठक के आखिर में तय हुआ कि ब्राह्मणों को मनाया जाए और पूर्व केंद्रीय मंत्री शिव प्रताप शुक्ला की अगुवाई में एक कमिटी बना दी गई। कमिटी को उत्तर प्रदेश में ब्राह्मणों को मनाने की जिम्मेदारी दी गई है। अब यह कमिटी हर विधानसभा में टीम बनाकर ब्राह्मणों के घर-घर जाकर उन्हें मनाएगी। योगी सरकार में 10 ब्राह्मण मंत्री और विधानसभा में पार्टी के 46 ब्राह्मण विधायक है।

अलग-अलग आंकड़ों में ब्राह्मण समाज की आबादी 12 फीसदी तक बताई जाती रही है, जो सवर्णों में सबसे ज्यादा संख्या है। ऐसे में सपा और भाजपा दोनों इस अहम वर्ग को साधने की कोशिश में है। दरअसल, 2007 में मायावती की सोशल इंजीनियरिंग, 2012 में अखिलेश यादव को मिली सफलता और फिर 2017 में भाजपा के पूर्ण बहुमत में आने के पीछे ब्राह्मण समुदाय की अहम भूमिका बताई जाती रही है। सभी राजनीतिक दल ब्राह्मणों की ताकत को समझते हैं। आजादी के बाद से 1989 तक यूपी को छह ब्राह्मण मुख्यमंत्री मिले। नेताओं का मानना है कि ब्राह्मण वोकल होता है और अपने आसपास के दस वोटरों को प्रभावित कर सकता है। भले ही ब्राह्मणों की संख्या यूपी में 11-12 प्रतिशत हो, पर दमदारी से अपनी बात रखने की वजह से वह जहां भी रहे हैं, प्रभावशाली रहते हैं।

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