आखिर क्यों छात्रों को जबरदस्ती घर भेजना चाहता है बीएचयू प्रशासन
वाराणसी : कोरोना महामारी के कारण लॉकडाउन ने हमारे समय की धारा को एक दूसरी तरफ़ मोड़ दिया है। जीवन जीने से आज ज़्यादा महत्वपूर्ण अपने जीवन को सुरक्षित बचाये रखने की कोशिश है। अपने दायरे, अपने घर में रहते हुए भी हम एक असुरक्षाबोध के घेरे फंसे हुए हैं।
बात है देश के प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थान बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय की, यहां के छात्रों का कहना है कि विश्वविद्यालय प्रशासन परिसर में सुरक्षित रह रहे 30 छात्रों को जबरदस्ती घर भेजने पर उतारू है। हालांकि न तो जिला प्रशासन ने ऐसा कोई आदेश जारी किया है और न ही 300 छात्रों के हॉस्टल में बचे हुए मात्र 30 छात्रों के रहने से कोई भीड़ की स्थति है। इनमे कई छात्र प्रदेश के बाहर के हैं। कोई छात्र हरियाणा का, कोई राजस्थान का, कोई गुजरात का है। कई छात्र हॉस्टल में सुरक्षित रहकर अपनी शोधपरक शिक्षा में संलग्न हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर वो कौन से कारण हैं जिनके चलते विश्वविद्यालय छात्रों को घर जाने के लिए दबाव बना रहा है।
300 छात्रों के हॉस्टल में बचे हैं मात्र 30 छात्र
छात्रों का कहना है कि जब कोरोना पॉजीटिव मरीजों की संख्या कम थी और गाँव तक कॅरोना ने दस्तक नहीं दिया था तो सरकार से लेकर बीएचयू प्रशासन ने छात्रों को सुरक्षित उनके घर तक भेजने की कोई कोशिश नहीं की। जो छात्र अपने स्तर से घर जाना चाहते थे वे निकल गए और जो रहना चाहते थे वे अब तक हैं।
आज जबकि कोरोना के मरीज़ तेज़ी से बढ़ रहे हैं और हर आदमी खुद को सुरक्षित रखने की एक लड़ाई अपने-अपने स्तर से लड़ रहा है, तो बीएचयू प्रशासन ने परिसर के सुरक्षित घेरे से निकालकर अपने छात्रों को असुरक्षित ज़ोन में भेजने का फ़रमान जारी कर दिया। 300 छात्रों के हॉस्टल में सिर्फ़ 30 बचे हुए हैं और बेहद सुरक्षा के साथ पठन पाठन भी कर रहे हैं। वे अपने घर इसलिए नहीं जाना चाहते कि क्योंकि जाने के अपने ख़तरे हैं।
छात्रों का आरोप, निर्मम और क्रूर है विश्वविद्यालय का फैसला
संस्थान के इस फरमान पर बिड़ला हॉस्टल बी के छात्र दिवाकर तिवारी ने बताया हम छात्र अपने राज्य और जिला के कॅरोंटाईन सेंटर की स्थितियों, वास्तविकताओं से परिचित हैं। एक एक कमरे में 20 लोग, कौन कहाँ से, किस स्थिति से निकलकर आया है, किससे मिलते जुलते आया है इसका कोई विश्वसनीय प्रमाण नहीं है। 21 दिनों तक उस सेंटर में रहने के बाद मालूम होगा कि जिस आदमी के साथ हमें रखा गया उसमें से कोई एक कोरोना पॉजीटिव है, तो हमारी सुरक्षा कहाँ रही?
जो छात्र जाना चाहते हैं उन्हें ज़रूर भेजा जाना चाहिए लेकिन जो यहां सुरक्षित महसूस कर रहे हैं उन्हें किस बुनियाद पर भेजा जा रहा है? हमें इस सुरक्षित परिसर से भेजकर उसी असुरक्षित घेरे में भेजने का फ़ैसला विश्वविद्यालय का न सिर्फ़ हमारी सुरक्षा को ख़तरे में डालने का है बल्कि सरकार के गाइडलाइंस के ख़िलाफ़ भी है। क्या विश्वविद्यालय प्रशासन इतना निर्मम और क्रूर फ़ैसला लेने में यह तनिक भी विचार नहीं किया कि संकट के समय छात्रों से उनकी ख़ैरियत पूछनी चाहिए, उनकी मदद करनी चाहिए। न कि उन्हें असुरक्षित ज़ोन में भेजा जाना चाहिए।
जिला प्रशासन की ओर से नहीं जारी हैं कोई निर्देश
जानकारी के अनुसार इस मामले पर विश्विद्यालय ने चीफ प्राक्टर के माध्यम से छात्रों को एक पत्र जारी किया गया है। जिसके जवाब में सभी छात्रों ने लिखित रूप से अपने हॉस्टल के वार्डेन के साथ विश्वविद्यालय के चीफ़ प्रॉक्टर प्रो. ओ. पी. राय को अपनी शंकाओं और स्थितियों से परिचित कराया।
चीफ़ प्राक्टर से जब यह पूछा कि यूजीसी का कौन सा नियम, कौन सा पत्र, छात्रों को उनके हॉस्टल से निकालकर भेजने के लिए आपको निर्देशित करता है तो वह ऐसा कुछ भी नहीं दिखा सके। इस मामले पर छात्रों ने ज़िला प्रशासन से भी बात की, जिसके जवाब में बनारस के डीएम ने कहा कि उनकी ओर से ऐसे कोई निर्देश या गाइडलाइन नहीं जारी की गयी है।
धरने पर बैठे छात्र, बड़ा बखेड़ा खड़ा होने की शंका
परिसर के रुइया हॉस्टल के छात्र इस मामले को लेकर धरने पर बैठ गए हैं। छात्रों का कहना है कि, उनके परिसर में सुरक्षित रह जाने से विश्वविद्यालय को क्या दिक़्क़त है, यह भी चीफ प्रॉक्टर ने नहीं बताया?
छात्रों का यह भी कहना है कि खुद बीएचयू के वीसी महोदय दिल्ली से 20 दिन बाद लौट के आये, लेकिन बिना 14 दिन के कोरोंटाइन हुए परिसर में रह रहे हैं। फिर समझ में नहीं आ रहा कि वह कौन सी ऐसी दिक़्क़त है जो विश्वविद्यालय ने अपने छात्रों को ख़तरे में डालने का निर्णय ले लिया है? फिलहाल इस मामले को लेकर हॉस्टल में रह रहे छात्र आंदोलनरत हैं और धरने पर बैठ गए हैं। मामले पर जल्द ही अगर विश्वविद्यालय प्रशासन और छात्रों के बीच कोई सहमति नहीं बनी तो बड़ा बखेड़ा खड़ा होने की आशंका है।