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‘गुजरात आतंकवाद रोधी कानून आने के बाद संगठित अपराध न करने वालों पर इसके तहत मुकदमा नहीं’

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था दी है कि यदि कोई व्यक्ति 2019 में गुजरात आतंकवाद रोधी कानून लागू होने के बाद संगठित अपराध में संलिप्त नहीं रहा है, तो उसके खिलाफ इस तरह के पूर्व अपराधों के लिए संबंधित अधिनियम के तहत मुकदमा नहीं चलाया जा सकता। गुजरात आतंकवाद और संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम, 2015 एक दिसंबर, 2019 को लागू हुआ था।

जस्टिस एस अब्दुल नजीर और जस्टिस जेबी परदीवाला की बेंच ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के 2015 के शिवाजी रामाजी सोनवणे बनाम महाराष्ट्र राज्य मामले से संबंधित फैसले पर फिर से विचार करने की आवश्यकता नहीं है। इसमें महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम (मकोका) के लागू होने के बाद किसी व्यक्ति के कोई गैरकानूनी गतिविधि नहीं करने के मामले से निपटा गया था।

बेंच ने संदीप ओमप्रकाश गुप्ता को राज्य के हाईकोर्ट द्वारा जमानत दिए जाने को चुनौती देने वाली गुजरात सरकार की याचिका पर बड़े कानूनी सवाल का जवाब दिया, जिस पर पिछले अपराधों के लिए कठोर गुजरात आतंकवाद रोधी कानून के तहत मामला दर्ज किया गया था।

बेंच ने फैसले में कहा कि हमें कुछ महत्वपूर्ण चीजों को स्पष्ट करने की जरूरत है। शिवा उर्फ ​​शिवाजी रामाजी सोनवणे (2015 का फैसला) उस स्थिति से निपटता है जहां कोई व्यक्ति मकोका लागू होने के बाद कोई गैरकानूनी गतिविधि नहीं करता है। कोर्ट ने कहा कि ऐसी परिस्थितियों में, उक्त अधिनियम के लागू होने से पहले व्यक्ति द्वारा किए गए अपराधों के कारण उसे उक्त अधिनियम के तहत गिरफ्तार नहीं किया जा सकता, भले ही वह उसी के लिए दोषी पाया गया हो।

बेंच ने कहा कि हालांकि, अगर कोई व्यक्ति गैरकानूनी गतिविधियां जारी रखता है और 2015 के अधिनियम की घोषणा के बाद गिरफ्तार किया जाता है, तो कानून के तहत उस पर अपराध के लिए मुकदमा चलाया जा सकता है। बेंच ने कहा कि यदि कोई व्यक्ति उक्त अधिनियम के बाद किसी गैरकानूनी गतिविधि में शामिल होना बंद कर देता है, तो उसे इसके (संबंधित कानून) तहत अभियोजन से छूट दी जाती है।

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