राजनीति

हिमाचल-कर्नाटक हार के बाद बीजेपी ने बदली थी रणनीति, जानें क्या था खास ?

देहरादून ब्यूरो। बीजेपी के लिए हिमाचल प्रदेश व कर्नाटक को हारना बहुत बड़ा झटका था, इससे सबक लेते हुए भाजपा ने चुनावी रणनीति को पूरी तरह से बदल दिया और मोदी प्लान को अपनाया। नतीजा, यह हुआ कि भाजपा ने मध्य प्रदेश में दोबारा सरकार तो बनाई ही, साथ ही राजस्थान व छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को सत्ता से बेदखल कर दिया। अब भाजपा को तीन बड़े राज्यों में बड़ी जीत मिलने के बाद मोदी प्लान की खूब चर्चाएं होने लगी हैं।

हिमाचल प्रदेश व कर्नाटक की हार के मायने 

हिमाचल व कर्नाटक भाजपा के लिए सिर्फ सामान्य राज्य नहीं थे, बल्कि राजनीतिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण किले थे। हिमाचल प्रदेश सबसे उत्तरी राज्य था, जहां भाजपा की सरकार थी। यहां हारने के बाद कांग्रेस ने हिमाचल प्रदेश में सरकार बनाई और उत्तर भारत में अपनी उपस्थिति बनाने में सफल रही। हिमाचल के बाद अब भाजपा का सबसे उत्तरी राज्य उत्तराखंड है, जहां भाजपा सरकार में है। अगर हिमाचल भाजपा के पास होता तो कांग्रेस का उत्तर भारत से सूपड़ा साफ हो गया होता। इसके बाद कांग्रेस के पास सिर्फ दक्षिणी राज्य तेलंगाना व कर्नाटक शेष रहते।

 वहीं, कर्नाटक के रूप में भाजपा के पास एकमात्र दक्षिण राज्य था, जहां उसकी सरकार थी। कर्नाटक के जरिये भाजपा को उम्मीद थी कि शायद किसी दूसरे दक्षिणी राज्य में भी कभी भाजपा का सूरज निकल जाये। लेकिन, कर्नाटक हारने के बाद भाजपा दक्षिण भारत से पूरी तरह साफ हो गई। इसलिए इन दोनों राज्यों को हारना भाजपा के लिए राजनीतिक दृष्टि से बड़ा रणनीतिक नुकसान है।

  खास बात यह है कि भाजपा ने हिमाचल व कर्नाटक की हार से बड़ा सबक लिया है, जैसा कि भाजपा संगठन हमेशा से करता भी आय़ा है। भाजपा नेतृत्व ने न सिर्फ हार के कारणों का पता लगाया, इसकी काट के रूप में खास प्लान भी तैयार किया। राजनीतिक जानकार कहते हैं कि हिमाचल प्रदेश व कर्नाटक के चुनाव में भाजपा ने स्थानीय चेहरों पर चुनाव लड़ा, जो कि बड़ी भूल थी। कर्नाटक में तत्कालीन सीएम बसवराज बोम्मई व हिमाचल में जयराम ठाकुर के चेहरे पर चुनाव लड़ा गया था। स्थानीय चेहरों पर जनता ने ज्यादा विश्वास नहीं किया, जिसका खामियाजा भाजपा को हार के रूप में उठाना पड़ा। इस भूल को स्वीकारते हुए भाजपा संगठन ने अगले चुनावों के लिए मोदी प्लान तैयार किया, जिसके तहत चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर चुनाव लड़ना तय हुआ।

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भाजपा ने सर्वे में पाया कि जनता में पीएम नरेंद्र मोदी के प्रति खासा उत्साह है। यदि चुनाव पीएम मोदी के चेहरे पर लड़ा गया तो जनता स्थानीय नेताओं की कमियों को नजरंदाज करते हुए पीएम मोदी के नाम पर भाजपा को वोट दे सकती है। इसलिए पांचों राज्यों में विधानसभा चुनावों को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में लड़ा गया। किसी भी राज्य में मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित नहीं किया गया था। राजस्थान में पूर्व सीएम वसुंधरा राजे के भारी दबाव के बावजूद भाजपा सीएम घोषित न करने की रणनीति पर अड़ी रही। इसी का नतीजा रहा कि राजस्थान में भी भाजपा ने बड़ी जीत दर्ज की।

   राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि भाजपा व आरएसएस संगठन की यही विशेषता है कि उनका आंतरिक विश्लेषण बेहद गंभीरता एवं ईमानदारी से होता है। इसमें कितनी भी गंभीर कमियां क्यों न दिखाई दे, उसे दूर करने में संकोच नहीं किया जाता है। भाजपा हार से तो सबक लेती ही है, बल्कि जीत मिलने पर भी कई कमियों को दूर करने का प्रयास करती है।

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 वहीं, कांग्रेस की बात करें तो कांग्रेस पार्टी में हार के कारणों की समीक्षा महज औपचारिकता साबित होती है। राजस्थान, मध्य प्रदेश में कांग्रेस की अप्रत्याशित हार होने के बाद भी जिम्मेदारी न स्वीकारना इसी सोच का प्रमाण है। कांग्रेस में वरिष्ठ नेताओं की वजह से पार्टी डूब ही क्यों न रही हो, लेकिन किसी के खिलाफ पार्टी सख्त रूख अपनाने की हिम्मत नहीं जुटा पाती है। वरिष्ठ नेताओं के वर्चस्व के कारण युवा एवं योग्य नेता हाशिये पर हैं। कांग्रेस नेतृत्व भी प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता को ना समझने की भूल लगातार दोहरा रहा है। कांग्रेस में ऐसा कोई सिस्टम नहीं है जिसमें हर जीत-हार का विश्लेषण हो, मानदंडों में स्पष्टता दिखे।

  जाहिर है कि हाल ही में हुए 5 राज्यों के विधानसभा चुनावों में भाजपा को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता का लाभ खूब मिला। आने वाले चुनावों में भाजपा की कोशिश भी यही होगी कि पीएम मोदी के सहारे राजनीति की वैतरणी पार की जाए।

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