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पर्यावरण मंत्रालय की आपत्ति के बाद अटल प्रोग्रेस वे चंबल के बीहड़ों से नहीं निकलेगा

मुरैना : भिंड जिले के पास इटावा उत्तर प्रदेश से कोटा राजस्थान तक 404 किलोमीटर लंबी सड़क “अटल प्रोग्रेस वे” चंबल के बीहड़ों से होकर बनाया जाना प्रस्तावित किया गया। इस परियोजना की घोषणा वर्ष 2013 में विधानसभा चुनाव से पूर्व की गई। तत्पश्चात 2018 के विधानसभा चुनाव और 2019 के लोकसभा चुनाव में भी इस परियोजना के नाम पर वोट बटोरे गए। अभी हाल ही में जमीन अधिग्रहण के नाम पर 10 हजार किसान परिवारों जिनके पास भूमि स्वामी स्वत्व है, को भिंड मुरैना श्योपुर कलां जिलों से विस्थापित किया जा रहा था। जिन्हें नाम के वास्ते जमीन या कुछ मुआवजा दिया जाना प्रस्तावित किया।

इनके अलावा पीढ़ियों से बीहड़ की जमीन को समतल बनाकर खेती कर रहे लगभग 30 हजार किसान परिवारों को भी उजाड़ने की योजना, प्रदेश सरकार द्वारा बनाई गई। इन किसान परिवारों को किसी तरह की कोई जमीन या मुआवजा भी नहीं दिया जा रहा था। कुल मिलाकर थोड़ा बहुत कम नगण्य मुआवजा देकर किसानों को विस्थापित कर हाईवे का निर्माण कराने के उपरांत, चंबल के बीहड़ की बेशकीमती लाखों एकड़ जमीन को कॉरपोरेट्स को सौंपने की योजना प्रदेश सरकार द्वारा बनाई गई। यह जमीन कारपोरेट्स को सड़क के दोनों ओर एक एक किलोमीटर के कॉरिडोर में दी जानी थी। जिसमें न तो किसानों का हित देखा गया और न हीं पर्यावरण व पारिस्थितिकी तंत्र के नुक़सान का मूल्यांकन किया गया।

जल्दबाजी में योजना स्वीकृत कर जमीन अधिग्रहण की प्रक्रिया की शुरुआत की गई। स्थानीय किसानों ने मध्य प्रदेश किसान सभा (अखिल भारतीय किसान सभा) के नेतृत्व में मार्च में भिंड, मुरैना और श्योपुर कलां में व्यापक आंदोलन किए। उसके बाद भी लगातार कार्यवाहियां जारी रही। अंततः कैन्दीय पर्यावरण मंत्रालय ने पर्यावरण और पारिस्थितिकी तंत्र के बिगाड को देखते हुए, किसान आंदोलन के दबाव के चलते परियोजना को रोकने का आदेश दिया है।

मध्य प्रदेश किसान सभा के प्रदेश उपाध्यक्ष अशोक तिवारी ने कहा है कि यह परियोजना चंबल के बीहड़ की जमीन को कॉरपोरेट को सौंपने के लिए बनाई गई थी। इसमें पर्यावरण और पारिस्थितिकी तंत्र की होने वाली भारी क्षति का मूल्यांकन नहीं किया गया।

यह योजना क्षेत्र के लिए तो नुक्सानदायक थी ही, पर्यावरण के लिए भी भारी अपूरणीय क्षति कारित करने वाली थी। किसान आंदोलन ने इन मुद्दों को व्यापक रूप से उठाया। जिसका नतीजा यह हुआ कि, अंततः पर्यावरण मंत्रालय को संज्ञान लेना पड़ा और योजना को निरस्त करने का आदेश जारी करना पड़ा। तिवारी ने इसे किसान आंदोलन की एतिहासिक जीत बताया है। साथ ही प्रदेश की भाजपा सरकार से मांग की है कि चंबल के बीहड़ की जमीन कॉरपोरेट्स (पूंजीपतियों) को देने के बजाय किसानों को दी जाए। जमीन के पट्टे स्थानीय किसानों को ही आवंटित किए जाए। साथ ही उन्होंने बीहड़ के गांवों के विकास के लिए सड़क, स्कूल, बिजली आदि की व्यवस्थाओं को दुरुस्त करने की मांग की है।

उन्होंने बताया कि चंबल बचाओ आंदोलन में चंबल के बीहड़ के 50 हजार से ज्यादा किसान परिवार जुड़े हुए हैं। उनके संघर्ष के चलते ही सरकार को पीछे हटना पड़ा है। उन्हें आगे भी इस आंदोलन को मजबूत करने और किसानों को जमीन का मालिकाना हक दिलाने तथा गरीब और भूमि किसानों को जमीन उपलब्ध कराने के संघर्ष को आगे बढ़ाना होगा। इसके लिए उन्होंने किसानों से आगे आने की अपील की है।

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