गुजरात: गुजरात के भरूच जिले के पिरामण तहसील क्षेत्र के निवासी मोहम्मद इशकजी पटेल और हवाबेन मोहम्मद भाई के घर जन्मे अहमद पटेल के पिता कांग्रेस में थे। पिता की सीख और राजनीतिक परविश में अहमद पटेल राजनीति की सीढ़यों पर चढ़ने लगे और बहुत तेजी के साथ बुलंदियों पर पहुंच गए।
पिता के अनुभवों, नसीहतों ने अहमद पटेल की जिंदगी कितनी बदल दी थी यह उनके राजनीतिक कद को देखकर सहज समझा जा सकता है। वह कांग्रेस के ऐसे नेता थे जो राजीव और सोनिया गांधी परिवार के बहुत ही करीबी और विश्वसनीय थे। राजनीतिक धुरंधर के रूप में जाने जाने वाले कद्दावर नेता अहमद पटेल कांग्रेस के ‘चाणक्य’ कहे जाते थे।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अहमद पटेल का बुधवार तड़के निधन हो गया। उन्होंने बुधवार सुबह करीब 3.30 बजे अंतिम सांस ली। वे 71 वर्ष के थे। कोरोना रिपोर्ट पॉजिटिव आने के बाद से वो पिछले एक महीने से गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में भर्ती थे। उनके बेटे फैजल ने आज ट्विटर के जरिए पिता के मौत की जानकारी दी।
नगरपालिका चुनाव से की सियासत की शुरूआत, 26 वर्ष में बन गए थे सांसद-
अहमद पटेल ने अपनी राजनीतिक सफर की शुरुआत नगरपालिका के चुनाव से की थी। वे पंचायत के सभापति भी बन गए थे। इसके बाद वह कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए और फिर राज्य कांग्रेस के अध्यक्ष बन गए। इन्दिरा गांधी के आपातकाल के बाद 1977 में आम चुनाव हुए थे, जिसमें इन्दिरा गांधी की हार हुई थी। इसी चुनाव में अहमद की जीत हुई और वे पहली बार पहली बार वर्ष 1977 में सांसद के रूप में लोकसभा में आए थे।
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21 अगस्त 1949 को गुजरात के भरूच जिले की अंकलेश्वर तहसील के पिरामण गांव में जन्मे अहमद पटेल को सियासी बिसात का होनहार माना जाता था। अहमद पटेल तीन बार लोकसभा सांसद और चार बार राज्यसभा सांसद रहे। उन्होंने अपना पहला चुनाव वर्ष 1977 में भरूच लोकसभा सीट से लड़ा था। इस चुनावी मुकाबले में अहमद पटेल 62 हजार 879 मतों से जीते थे। अहमद 1977, 1980,1984 में तीन बार लोकसभा सभा सांसद और 1993,1999, 2005, 2011, 2017 वर्तमान तक पांच बार राज्यसभा सांसद रहे हैं।
राजनीति से दूर है अहमद का परिवार-
कद्दावर कांग्रेस नेता अहमद पटेल का परिवार राजनीति से दूर है। अहमद ने वर्ष 1976 में मेमूना अहमद से शादी की थी लेकिन पटेल का परिवार का राजनीति से कोई नाता नहीं है। अहमद पटेल के दो बच्चे हैं। एक बेटा और एक बेटी।
राजीव-सोनिया गांधीके रहे भरोसेमंद
अहमद पटेल की राजनीतिक जिंदगी की लकीर इंदिरा गांधी से होते हुए राहुल गांधी-प्रियंका गांधी के दौर तक रही। हां, इस बीच कई बार लकीर मजबूत हुई तो कभी कमजोर भी दिखी। लेकिन बदलते हालातों के बीच अहमद पटेल ने गांधी परिवार का कभी साथ नहीं छोड़ा। अहमद पटेल ने कांग्रेस के महत्वपूर्ण पदों की जिम्मेदारी निभाई। वह वर्ष 2001 से सोनिया गांधी के राजनीतिक सलाहकार भी रहे। इसके अलावा पटेल 1977 से वर्ष 1982 तक यूथ कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रहे। सितम्बर 1983 से दिसम्बर 1984 तक अहमद पटेल ने ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी के ज्वाइंट सेक्रटरी की जिम्मेदारी भी संभाली थी। अहमद पटेल ने 1985 में जनवरी से सितम्बर तक तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के संसदीय सचिव के पद को भी संभाला।
कार्यकर्ताओं और संगठन की नब्ज जानते थे अहमद
अहमद पटेल ने कांग्रेस के संगठन में बहुत गहरी पैठ बनाई हुई थी। वह कार्यकर्ताओं को नाम से जानते थे और उनकी बातों को अच्छी तरह से समझते थे। इंदिरा गांधी 1980 में कांग्रेस की जबरदस्त वापसी के बाद पटेल को कैबिनेट में शामिल करना चाहती थीं लेकिन अहमद पटेल ने संगठन से अपना मोह जाहिर किया था। यही तस्वीर राजीव गांधी के समय में भी देखने को मिली। 1984 के चुनाव के बाद अहमद पटेल को फिर से मंत्री पद ऑफर किया गया लेकिन उन्होंने इस बार भी संगठन को ही चुना था। इसी कारण उनकी संगठन के साथ सियासत की बारिकीयों को जबरदस्त पकड़ थी।
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