नई दिल्ली: अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (एआईसीटीई) के अध्यक्ष डॉ. अनिल सहस्त्रबुद्धे ने मंगलवार को कहा, ‘इंडिया मैपाथॉन’ भारत को रिसोर्स मैपिंग में आत्मनिर्भर बनाने में मददगार साबित होगा। उन्होंने कहा ये कार्यक्रम भारतीय उपग्रहों से प्राप्त चित्रों और देश में संसाधन मानचित्र विकसित करने के लिए भारतीय उपग्रह इमेजरी के उपयोग के प्रयोग को बढ़ावा देगा।
डॉ. सहस्त्रबुद्धे अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (एआईसीटीई), इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी-मुंबई (आईआईटी-बी), भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) और फ्री ओपन सोर्स सॉफ्टवेयर इन एजुकेशन (एफओएसएसई) द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित “ऑनलाइन मैपाथॉन” कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे।
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कार्यक्रम का उद्घाटन एआईसीटीई के अध्यक्ष डॉ. अनिल सहस्त्रबुद्धे, आईआईटी-बी के निदेशक प्रोफेसर शुभाशीष चौधरी और एफओएसएसई के प्रमुख अन्वेषक प्रोफेसर कन्नन मौद्गल्या ने किया।
इसरो के मुफ्त कॉन्टेंट का प्रयोग कर रिसोर्स मैपिंग को सुधारने के लिए पब्लिक को आमंत्रित किया गया है। इस कार्यक्रम के माध्यम से कवरेज का दायरा बढ़ने और महत्वपूर्ण संसाधनों की परत विकसित होने की संभावना है, जो आपदा जोखिम के मूल्यांकन, ऊर्जा के प्रबंधन, फसल की उपज के आकलन, संकट के नियंत्रण और अन्य कार्यों में मदद कर सकती है।
इस कार्यक्रम में अलग-अलग पृष्ठभूमि में कई लोगों की भागीदारी की उम्मीद है, जिसमें छात्र और ग्रामीण युवक शामिल हैं। इसके अलावा इसमें सरकारी कर्मचारी और जीआईएस की फील्ड से जुड़े प्रोफेशनल्स के भी शामिल होने की उम्मीद है। इसमें दिलचस्पी रखने वाले लोग 18 दिसम्बर तक https://iitb-isro-aicte-mapathon.fossee.in पर रजिस्ट्रेशन करा सकते हैं।
इसके लिए एंट्रीज 14 से 31 दिसम्बर तक जमा की जाएगी। नतीजों की घोषणा 4 से 10 जनवरी 2021 तक होगी। इस कार्यक्रम में शामिल होने वाले सभी भागीदारों को एआईसीटीई, आईआईटी-बी, एफओएसएसई और इसरो की ओर से प्रमाण पत्र भी दिए जाएंगे।
इस मौके पर सहस्त्रबुद्धे ने कहा, विदेशी सेटेलाइट इमेज की तुलना में भारतीयों की क्राउड सोर्सिंग से प्राप्त सेटेलाइट इमेज या रिसोर्स मैपिंग ज्यादा सटीक हो सकती है। इसका क्रेडिट भारतीयों को क्षेत्र की अच्छी जानकारी को दिया जाता है। यह उन भारतीय शोधकर्ताओं को भी हतोत्साहित करेगा, जो विदेशी डेटाबेस का प्रयोग करते हैं। भारतीय सैटेलाइट से प्राप्त आंकड़ों का प्रयोग करने से उनकी रिसर्च और अधिक प्रासंगिक बन जाएगी। .
उन्होंने कहा, इसरो ने पृथ्वी के संसाधनों की निगरानी, सैटेलाइट की मैपिंग और बादलों के पार रडार से उपग्रह के चित्र लेने के लिए सेटेलाइट्स की लॉन्चिंग में सैकड़ों करोड़ रुपये खर्च किए हैं। ये सेटेलाइट अलग-अलग स्थानीय और अस्थायी रिजोल्यूशन की उच्च गुणवत्ता की तस्वीरें भेजते हैं। इससे सभी मौसम में पूरे भारत का परिदृश्य कवर होता है। नए मैपाथॉन से भारतीय शोधकर्ताओं को भारतीय उपग्रहों से हासिल किए गए आंकड़ों का प्रयोग करने की इजाजत मिलेगी। उन्हें विदेशी उपग्रह से प्राप्त चित्रों पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा।
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आईआईटीबी के निदेशक प्रोफेसर सुभासिस चौधरी ने कहा, भले ही भारत सरकार की एजेंसियां इसरो के नक्शे को संसाधन विश्लेषण के लिए एक महत्वपूर्ण उपकरण के रूप में उपयोग कर रही हैं, लेकिन इनमें से अधिकांश नक्शे स्थानीय लोगों द्वारा नहीं बनाए गए हैं, इस प्रकार उनके व्यापक उपयोग में कमी है।
उन्होंने कहा, इसका समाधान खोजने के लिए, क्राउडसोर्सिंग और नागरिक विज्ञान गतिविधियां, भारतीय मैपाथॉन के माध्यम से सैटेलाइट से प्राप्त चित्रों को स्थानीय तौर पर प्रोसेस करने में तेजी से मदद कर सकते हैं। मैपाथॉन आसानी से उपलब्ध इसरो की सैटेलाइट इमेज का ओपन सोर्स क्यूजीआईएस सॉफ्टवेयर की मदद से इस्तेमाल कर पूरे देश के लिए बुनियादी तौर पैर एक सामान रूप से जानकारी प्रदान करेगा।
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