नई दिल्ली : लंग कैंसर यानी फेफड़ों के कैंसर के ज्यादातर मरीज धूम्रपान करने वाले होते हैं। लेकिन, लंदन के फ्रांसिस क्रिक इंस्टीट्यूट की एक नई स्टडी के मुताबिक वायु प्रदूषण की वजह से भी यह कैंसर हो सकता है। इसमें स्मोकिंग का कोई रोल नहीं है। पर्यावरण में मौजूद दूषित हवा केवल लंग कैंसर नहीं, बल्कि कई प्रकार के कैंसर से मृत्यु दर के खतरे को बढ़ा सकती है। हवा में मौजूद पार्टिकुलेट मैटर (PM) इंसान के फेफड़ों के लिए जहर से कम नहीं हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार PM 2.5 पार्टिकल कैंसर की वजह बन सकते हैं। ये हवा में मौजूद ऐसे कण होते हैं, जिनका आकार 2.5 माइक्रोमीटर या उससे कम होता है। इनकी वजह से समय से पहले ही मौत भी हो सकती है। WHO के मुताबिक- PM 2.5 कण फेफड़ों के अंदर घुसकर आपके खून में बह सकते हैं। इससे दिल और दिमाग दोनों को ही खतरा होता है। ये ब्रेन स्ट्रोक और हार्ट अटैक की वजह भी बन सकते हैं। समय के साथ-साथ हमारा ऊठअ डैमेज होता जाता है। PM 2.5 पार्टिकल शरीर के बूढ़े और खराब हो चुके सेल्स को फिर से जिंदा करने में सक्षम है। इन सेल्स में सूजन आ जाती है, जिसके कारण फेफड़े इन्हें ठीक करने की कोशिश करते हैं। लेकिन, 50 साल के व्यक्ति में हर 6 लाख में से एक सेल में कैंसर होने की आशंका होती है। प्रदूषण से ये भी एक्टिवेट हो जाता है, जो आगे जाकर लंग कैंसर का रूप ले सकता है।
यह रिसर्च इसलिए बड़ी है क्योंकि वैज्ञानिकों ने न सिर्फ वायु प्रदूषण से कैंसर को जोड़ा है, बल्कि इसे रोकने के लिए एक ड्रग का प्रयोग भी किया है। उन्होंने चूहों पर इस ड्रग का इस्तेमाल किया और उनके शरीर में कैंसर सेल्स को एक्टिवेट होने से रोका। रिसर्चर डॉ. एमिलिया लिम का कहना है कि जो लोग बिल्कुल स्मोकिंग नहीं करते पर फिर भी लंग कैंसर का शिकार बनते हैं, उन्हें समझ ही नहीं आता कि ऐसा क्यों हुआ है।
डॉ. लिम ने बताया कि दुनिया की 99% आबादी ऐसी जगहों पर रहती है, जहां एयर पॉल्यूशन को लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन (हऌड) की गाइडलाइंस फॉलो नहीं की जातीं। इसका मतलब धरती पर मौजूद 797 करोड़ लोग जहरीली हवा में सांस ले रहे हैं। इन आंकड़ों के लिए हऌड की टीम ने 117 देशों के 6 हजार से ज्यादा शहरों की एयर क्वॉलिटी को मॉनिटर किया। ये परेशानी सबसे ज्यादा लो और मिडिल इनकम देशों में हो रही है।