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वायु प्रदूषण भी बढ़ा रहा टीबी का जोखिम : डॉ.सूर्य कान्त

विश्व में टीबी के कुल मामलों में एक चौथाई भारत के
विश्व क्षय रोग दिवस (24 मार्च) पर विशेष

लखनऊ : भारत में हर साल 26 लाख से अधिक टीबी के मामले दर्ज किए जाते हैं, जिससे यह बीमारी एक बड़ी चुनौती बनी हुई है। माइक्रोबैक्टीरियम ट्यूबरक्युलोसिस बैक्टीरिया के कारण होने वाली यह बीमारी हवा में मौजूद सूक्ष्म कणों के माध्यम से फैलती है, जिससे घनी आबादी वाले क्षेत्र अधिक संवेदनशील हो जाते हैं। हालांकि टीबी का इलाज मौजूद है, लेकिन कुपोषण, गरीबी और कमजोर प्रतिरक्षा जैसी स्थितियाँ इसे बढ़ावा देती हैं। इन स्थितियों को वायु प्रदूषण और भी गंभीर बना देता है, क्योंकि हमारा देश पहले से ही बड़े पैमाने पर वायु प्रदूषण की गिरफ्त में है। इसलिए देश के सामने दोहरी चुनौतियाँ है पहली तो बीमारी दूसरा उसको हवा दे रहा वायु प्रदूषण। इसलिए बीमारी को ख़त्म करना है तो वायु प्रदूषण पर नियन्त्रण पाना भी जरूरी हो गया है। यह कहना है केजीएमयू के रेस्परेटरी मेडिसिन विभाग के अध्यक्ष डॉ. सूर्यकान्त का।

नार्थ जोन टीबी टास्क फ़ोर्स के चेयरमैन की बड़ी जिम्मेदारी संभाल रहे डॉ. सूर्यकान्त का कहना है कि समाज में व्यापक स्तर पर टीबी के खिलाफ जनांदोलन शुरू करने को लेकर ही हर साल 24 मार्च को विश्व क्षय रोग (टीबी) दिवस मनाया जाता है। इस दिवस पर यह जानना जरूरी है कि वायु प्रदूषण कई तरह की असुविधा ही नहीं पैदा करता बल्कि सीधे फेफड़ों के स्वास्थ्य और प्रतिरक्षा प्रणाली को भी प्रभावित करता है। वाहनों, उद्योगों और जीवाश्म ईंधन जलाने से निकलने वाले पीएम 2.5 और नाइट्रोजन डाइऑक्साइड जैसे प्रदूषण गहराई से फेफड़ों में प्रवेश कर सूजन और संक्रमण से लड़ने की शरीर की क्षमता को कमजोर कर देते हैं। ऐसे में संक्रामक बीमारियाँ शरीर को निशाना बनाती हैं, जिसमें टीबी का जोखिम सबसे अधिक बढ़ जाता है।

संक्रमण की संभावना अधिक : लंबे समय तक प्रदूषण के संपर्क में रहने से प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर हो जाती है, जिससे टीबी संक्रमण की संभावना बढ़ जाती है। क्योंकि प्रदूषित हवा फेफड़ों की स्थिति को खराब करती है, ठीक होने में देरी करती है और निष्क्रिय टीबी मामलों में पुनः सक्रिय होने की संभावना बढ़ाती है।

संक्रमण का बढ़ता जोखिम : भीड़भाड़ वाले और प्रदूषित क्षेत्रों में प्रदूषण और टीबी बैक्टीरिया दोनों लंबे समय तक बने रहते हैं, जिससे संक्रमण फैलने का खतरा बढ़ जाता है। प्रदूषित क्षेत्रों में मास्क पहनना, टीबी स्क्रीनिंग कार्यक्रमों में भाग लेना और स्वच्छ वायु नीतियों की वकालत करना स्वास्थ्यकर पर्यावरण में योगदान कर सकता है। डॉ. सूर्यकान्त का कहना है कि भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) की वर्ष 2023 की एक रिपोर्ट में यह स्पष्ट किया गया है कि उच्च वायु प्रदूषण और टीबी मामलों की बढ़ती संख्या के बीच सीधा संबंध है। उत्तर प्रदेश में आमतौर पर झुग्गी व मलिन बस्तियाँ और भीड़भाड़ वाले इलाके प्रदूषण और टीबी बैक्टीरिया दोनों की गिरफ्त में आसानी से आ जाते हैं, जिससे स्थिति और भी गंभीर हो जाती है। इस साल विश्व टीबी दिवस की थीम “हां! हम टीबी समाप्त कर सकते हैं” तय की गयी है, जो हमें कार्रवाई करने के लिए प्रेरित करती है। वायु प्रदूषण से निपटना इस मिशन का एक अनिवार्य हिस्सा होना चाहिए। स्वच्छ हवा का मतलब है स्वस्थ फेफड़े, कम टीबी के मामले और बेहतर जीवन गुणवत्ता।

सामुदायिक प्रयास जरूरी : आज के दिन हर किसी को संकल्प लेने की जरूरत है कि बायोमास चूल्हों से होने वाले इनडोर प्रदूषण के बारे में जागरूकता बढ़ाएंगे और सुरक्षित विकल्पों को बढ़ावा देंगे ताकि ग्रामीण परिवारों की सुरक्षा सुनिश्चित हो सके। स्वास्थ्य पेशेवर वायु गुणवत्ता जागरूकता को टीबी रोकथाम और उपचार रणनीतियों में शामिल कर सकते हैं जिससे बेहतर परिणाम प्राप्त किए जा सकते हैं।

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