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अजीत जोगी-बहुत कठिन है उन-सा होना

प्रो.संजय द्विवेदी

भोपाल : जिद, जिजीविषा, जीवटता और जीवंतता एक साथ किसी एक आदमी में देखनी हो तो आपको अजीत जोगी के बारे में जरूर जानना चाहिए, पढ़ना। छत्तीसगढ़ के पूर्व और प्रथम मुख्यमंत्री अजीत जोगी यानि एक ऐसा नायक जिसने बेहद खुरदरी जमीन से जिंदगी की शुरुआत की और आसमान की उन ऊंचाइयों तक पहुंचे, जहां पहुंचना किसी के लिए सपने से कम नहीं है।

अजीत जोगी किसी की कृपा से नहीं बनते। वे खुद बने और अनेक को बनाया। उनकी सबसे बड़ी देन यही है कि उन्होंने हर अभावग्रस्त व्यक्ति को यह पाठ पढ़ाया कि आपकी परिस्थितियां आपको बड़ा बनने से रोक नहीं सकतीं, अगर आपमें हौसला है।

वे बिलासपुर जिले के छोटे से कस्बे पेंड्रा के पास जनजातियों के एक गांव जोगीसार में पैदा हुए और लेकिन इस अध्यापक पुत्र के सपने बहुत बड़े थे। भोपाल से इंजीनियरिंग, आईपीएस, आईएएस बनने के बाद कलेक्टर और फिर बरास्ते राज्यसभा उनके मुख्यमंत्री बनने का सफर एक जादुई कहानी सरीखा है। साधारण परिस्थितियों को घता बताकर असाधारण सफलताएं प्राप्त करने की कहानी हैं अजीत जोगी । बावजूद इसके उनकी जिंदगी में चैन कहां है। इस पूरी जिंदगी में सिर्फ एक चीज है, जो लगातार उपस्थित है, वह है संघर्ष।

संघर्ष और उससे उपजी सफलताएं। मुख्यमंत्री रहते उनके तेज और ताप की कहानियां, उनकी दुर्घटना के बाद उनका ह्वील चेयर पर आ जाना और बिना थके, बिना रूके अहर्निश संघर्ष आपको कंपा देगा। किंतु अजीत जोगी शरीर से नहीं दिमाग से राजनीति करते थे। शरीर थका, लाचार हुआ पर उनका दिमाग चलता रहा।

वे चुनौती देते रहे। जूझते रहे। अपनी शर्तों पर जीते रहे। आखिरी सांस तक वे छत्तीसगढ़ के लोकप्रिय नेताओं में एक बने रहे। उन्हें सुनने के लिए व्यग्र लोगों को मैंने अपनी आंखों से देखा है। उनसे मिलने का दीवानापन देखा है। ठेठ छत्तीसगढ़ी में धाराप्रवाह और लालित्यपूर्ण भाषण से लोगों को बांध लेना उन्हें आता था। यह दीवानगी आखिरी दिन तक बनी रही।

छत्तीसगढ़ में होते हुए पत्रकारीय कर्म के नाते उनसे अनेक बार मिलना हुआ। वे मेरे आयोजनों में भी आए। कुछ किताबों के विमोचन में भी। अपनी असहमतियों को अलग रखकर दूसरे विचारों को सम्मान देना उन्हें आता था। राजनीति में वे कुछ छोड़ते नहीं थे किंतु साहित्य और संस्कृति की दुनिया में वे थोड़ा स्पेश दूसरों को भी देते थे।

उन्हें पसंद था कि उन्हें लोग लेखक, कवि और कहानीकार के रूप में जानें। वे दरअसल पढ़ने-लिखने वाले इंसान थे। बहुपठित और बहुविज्ञ। किंतु वे शक्ति चाहते थे जो साहित्य और संस्कृति की दुनिया उन्हें नहीं दे सकती थी। इसलिए शक्ति जिन-जिन रास्तों से आती थी, वह उन सब पर चले। वे आईपीएस बने, आईएएस बने, राजनीति में गए और सीएम बने।

पावर का यह चस्का अजीत जोगी को प्रारंभ से था। वे कलेक्टर थे तो जननेता की तरह व्यवहार करते थे, जब मुख्यमंत्री बने तो कलेक्टर सरीखे दिखे। उनकी एक छवि में अनेक छवियां थीं। एक जिंदगी में वे कई जिंदगियां जीना चाहते थे। उन्हें याद करना जरूरी है और उनसे सीखना भी जरूरी है। वे अपनी ही रची कहानी के एक ऐसे नायक थे जिसे चलना तो पता था, किंतु पड़ाव और विश्राम के सूत्र उन्होंने सीखे नहीं थे।

वे बहुतों के अनुभवों में बेहद उदार नायक हैं, तो कई के लिए खलनायक। ऐसी मिश्रित छवियों का यह नायक हमें सिखाता बहुत है। अपनी जिंदगी से उन्होंने हमें अनेक पाठ पढ़ाए हैं। एक तो किसी भी सामाजिक, आर्थिक स्थिति और परिवेश को चुनौती देकर आप पहली पंक्ति में अपनी जगह बना सकते हैं। दूसरा शारीरिक व्याधियों के बाद भी आप जो चाहे कर सकते हैं। अपने जीवन के आखिरी दिनों में एक पार्टी का गठन और उसे एक सशक्त विकल्प में पेश कर देना साधारण नहीं था जो उन्होंने कर दिखाया।

अजीत जोगी से बात करते हुए, उन्हें सुनते हुए आपको जो अनुभव हुए होगें वे विलक्षण थे। उनकी रेंज बहुत बड़ी थी। बहुत बड़ी। वे राजनीति में आकर उन्होंने खुद की दुनिया बहुत तंग कर ली। राजनीति उन्होंने जिस शैली में की उसने भी बहुत निराश किया। किंतु उन्हें जो करना होता था, उसे करते थे। उनके दोस्त हों, समर्थक हों या आलाकमान, जोगी के साथ जिसे चलना हो चले, वरना वे अपना रास्ता खुद तय करते थे।

जिंदगी के आखिरी दिनों में उनके लिए गए फैसलों को आत्मघाती जरूर कह सकते हैं, किंतु इस जिजीविषा का नाम अजीत जोगी है। आज जब वे इस दुनिया को छोड़कर जा चुके हैं तो यही कहना है कि उन-सा होना कठिन है। बहुत कठिन। मेरी भावभीनी श्रद्धांजलि।

(लेखक माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल के कुलपति हैं, आपने लगभग 15 वर्षों तक छत्तीसगढ़ में सक्रिय पत्रकारिता की है।)

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