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अखिलेश ने चला सामाजिक न्याय का दांव, भाजपा मोदी के चेहरे, जनकल्याणकारी योजनाओं और हिंदुत्व के सहारे

नई दिल्ली| महज एक सप्ताह पहले उत्तर प्रदेश विधान चुनाव की तैयारियों के मामले में मुख्य विपक्षी दल सपा के मुकाबले आगे दिखाई देनी वाली भाजपा के लिए यह सप्ताह काफी मुश्किल भरा रहा । चुनावी जीत को लेकर आश्वस्त नजर आ रहे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ चुनावी लड़ाई को 80 बनाम 20 की लड़ाई बताते नजर आ रहे थे। हालांकि, 11 जनवरी को प्रदेश सरकार के कद्दावर मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य से इस्तीफा दिलवाकर अखिलेश यादव ने भाजपा को जो झटका देना शुरू किया वो अभी तक जारी नजर आ रहा है। पिछले कुछ दिनों में एक-एक करके योगी सरकार के 3 मंत्री समेत 14 विधायक इस्तीफा दे चुके हैं। ऐसे में भाजपा के लिए अखिलेश यादव की नई चाल का तोड़ ढूंढना बहुत जरूरी हो गया है।

भाजपा के लिए सबसे चिंताजनक बात यह है कि जिस लड़ाई को वो 80 बनाम 20 की लड़ाई साबित करना चाहते थे, उसे अखिलेश यादव अपनी नई रणनीति से अगड़ा बनाम पिछड़ा की लड़ाई साबित करने में जुट गए हैं। दरअसल, 2017 विधान सभा चुनाव में भाजपा ने अगड़ी जातियों के परंपरागत वोट बैंक के साथ-साथ गैर यादव ओबीसी और गैर जाटव दलित मतदाताओं को साध कर गठबंधन के सहयोगियों के साथ मिलकर 325 सीटों पर जीत हासिल की थी। 2017 के विधानसभा चुनाव में एनडीए को 41.35 प्रतिशत मतदाताओं का समर्थन हासिल हुआ था । 2019 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में एनडीए गठबंधन को 51.18 प्रतिशत वोट के साथ 64 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। भाजपा की इस जीत को इसलिए भी शानदार जीत कहा जाता है क्योंकि उसने अकेले लगभग 50 प्रतिशत मत के साथ 80 में से 62 लोक सभा सीटों को जीता था।

अखिलेश यादव की इस नई राजनीतिक चाल ने भाजपा के लिए नई समस्या खड़ी कर दी है। इस्तीफा देने वाले ज्यादातर विधायक ओबीसी समुदाय से आते हैं , वही ओबीसी समुदाय जिसके बल पर भाजपा राज्य में लगातार चुनाव जीत रही है। भाजपा को भी इस बात का बखूबी अहसास है कि अगर यादव, जाट और मुस्लिम वोटरों के साथ-साथ ओबीसी और दलित मतदाताओं ने भी सपा गठबंधन का साथ दिया तो लड़ाई पूरी तरह से सपा के पक्ष में पलट जाएगी। यही वजह है कि भाजपा ने सपा की हर चाल पर पलटवार करने की रणनीति नए सिरे से बना ली है।

अलग-अलग दिन इस्तीफा दिलवा कर अखिलेश यादव यह नैरेटिव सेट करने की कोशिश कर रहे हैं कि भाजपा चुनाव हार रही है और इसलिए वहां भगदड़ मची हुई है । भाजपा ने मुलायम सिंह यादव के समधी और सपा विधायक हरिओम यादव को भाजपा में शामिल करवा कर पलटवार करने की कोशिश की है। भाजपा के एक बड़े नेता ने यह भी दावा किया कि आने वाले दिनों में अखिलेश यादव के परिवार का एक महत्वपूर्ण सदस्य भी भाजपा में शामिल होने जा रहा है। सपा के अलावा बसपा और कांग्रेस के दिग्गज नेताओं को भी पार्टी में शामिल करवा कर भाजपा यह संदेश देने की कोशिश करेगी कि वह जीत रही है।

पार्टी छोड़ कर जाने वाले नेताओं ने भाजपा पर ओबीसी और दलित विरोधी होने का आरोप लगाया है। भाजपा ने शनिवार को अपने उम्मीदवारों की पहली सूची जारी कर इस आरोप का जवाब दे दिया है। भाजपा ने शनिवार को जारी अपने 107 उम्मीदवारों की पहली सूची में सबसे ज्यादा 44 टिकट ओबीसी नेताओं को दी है। इसके साथ ही अनुसूचित जाति के 19 नेताओं को उम्मीदवार बनाया गया है। दलितों को लुभाने के लिए भाजपा ने सामान्य सीट पर भी दलित उम्मीदवार को उतारा है और आने वाली सूचियों में भी ऐसा करने का वादा किया है।

पार्टी छोड़ कर जाने वाले नेताओं की सच्चाई मतदाताओं को बताने के लिए भाजपा ने राज्य में 20 हजार से अधिक ओबीसी नेताओं की फौज तैयार की है। आने वाले दिनों में प्रदेश की सभी 403 विधानसभा सीटों में से प्रत्येक पर भाजपा के 50-50 ओबीसी नेता एवं कार्यकर्ता ओबीसी मतदाताओं के साथ संपर्क स्थापित कर उन्हें सच्चाई बताने की कोशिश करेंगे। एक अनुमान के तौर पर यह माना जाता है कि उत्तर प्रदेश में ओबीसी मतदाताओं की संख्या 40 से 50 प्रतिशत के लगभग, दलित वोटरों की आबादी 22 प्रतिशत और मुस्लिमों की तादाद 20 प्रतिशत के लगभग है। इसलिए ओबीसी के साथ-साथ भाजपा दलितों को भी अपने पाले में बनाए रखने की पुरजोर कोशिश कर रही है। सपा के सबसे बड़े समर्थक वोट बैंक मुस्लिम समुदाय में सेंघ लगाने के लिए भी भाजपा ने अपने अल्पसंख्यक मोर्चे को लगा रखा है । आरएसएस से जुड़ा मुस्लिम राष्ट्रीय मंच भी मुसलमानों को भाजपा के पक्ष में लाने के लिए उत्तर प्रदेश में लगातार अभियान चला रहा है।

ओबीसी नेताओं के लगातार पार्टी छोड़ कर जाने की वजह से भाजपा एक बार फिर अपने सबसे बड़े और लोकप्रिय ओबीसी चेहरे नरेंद्र मोदी को बार-बार और लगातार मतदाताओं के सामने रखेगी। ओबीसी वर्ग के लोगों के लिए सरकार द्वारा उठाए गए कदमों को गिनाते हुए बार-बार और लगातार मोदी के चेहरे को सामने रख कर भाजपा उनकी लोकप्रियता को भूनाने की कोशिश करेगी। इसके साथ ही भाजपा ने मोदी और योगी सरकार की योजनाओं से लाभ उठाने वाले प्रदेश के 3.5 करोड़ लाभार्थी परिवारों से भी संपर्क करने के लिए प्रदेश के सभी 1,74,351 बूथों पर घर-घर जाकर संपर्क करने के लिए 5-5 नेताओं और कार्यकतार्ओं की टोली बनाकर भी भेजना शुरू कर दिया है।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के अयोध्या की बजाय गोरखपुर शहर से विधानसभा चुनाव लड़ने के बावजूद भाजपा सपा के अगड़े बनाम पिछड़े की रणनीति को फेल करने के लिए हिंदुत्व के एजेंडे के अनुसार अयोध्या, काशी और मथुरा की बात लगातार करेगी। भाजपा की कोशिश होगी कि मतदाता जाति की बजाय बहुसंख्यक समुदाय के रूप में वोट करने के लिए बूथ पर जाए।

भाजपा की सबसे बड़ी कोशिश यह रहेगी कि उसके तमाम सदस्य अपने-अपने घरों से निकल कर भाजपा के पक्ष में मतदान करें। आपको बता दें कि , 2017 के विधानसभा चुनाव में 3 करोड़ 59 लाख के लगभग वोट पाकर एनडीए ने 325 सीट हासिल किए थे जबकि उस समय राज्य में भाजपा के सदस्यों की संख्या एक करोड़ 87 लाख के लगभग ही थी। पिछले 5 सालों में भाजपा ने राज्य में तेजी से विस्तार किया है और इस समय राज्य में भाजपा के सदस्यों की संख्या 3 करोड़ 80 लाख को पार कर गई है। इसलिए भाजपा इस बार राज्य में 4 करोड़ लोगों के वोट के साथ 300 से ज्यादा सीटों पर जीत हासिल करने के लक्ष्य को लेकर चुनाव लड़ रही है।

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