एनकाउंटर पर जातीय राजनीति करके फंस गये अखिलेश
संजय सक्सेना, लखनऊ
समाजवादी पार्टी मुस्लिम वोटरों को लुभाने के लिए कभी कोई मौका नहीं छोड़ती है। तुष्टिकरण की सियासत सपा की रग-रग में व्याप्त है। संभवत: समाजवादी पार्टी के अलावा देश में कोई ऐसा राजनैतिक दल नहीं होगा जिसने इतनी बढ़ी संख्या में मुस्लिम नेताओं को अपनी पार्टी में पदाधिकारी बनाया हो। सपा कहने को तो अपने आप को दलितों-पिछड़ों और मुस्लिमों की पार्टी बताती है, लेकिन पार्टी में दलितों को तो कोई तवज्जो मिलती ही नहीं है। वहीं पिछड़ा समाज के नाम पर यहां पार्टी के तमाम बड़े पदों पर अपवाद को छोड़कर अखिलेश के परिवार सहित अन्य यादव नेताओं का दबदबा है। आश्चर्य होता है कि अखिलेश यादव योगीराज में तो पुलिस फोर्स, एसटीएफ और शासन-प्रशासन में यह तलाश लेते हैं कि इसमें दलित और पिछड़े समाज के अधिकारियों की अनदेखी करके ऊंची जाति के कितने अधिकारी कहां तैनात किये गये हैं, लेकिन अपने गिरेबान में नहीं झांकते हैं। अखिलेश तो पत्रकारों तक की जाति पूछने से नहीं चूकते हैं। अखिलेश आरोप लगाते हैं कि यूपीएसटीएफ बदमाशों की जाति देखकर सीने या पैर में गोली मारती है। वैसे तो आतंकवादियों, गुंडे-बदमाशों का कोई धर्म या जाति नहीं होती है, फिर भी जब योगीराज में मुठभेड़ में मारे गये बदमाशों की जाति के आधार पर पहचान की जाती है तो यह साफ हो जाता है कि पुलिस या एसटीएफ किसी बदमाश की जाति और धर्म देखकर कार्रवाई नहीं करती है।
दरअसल, बीते दिनों सुल्तानपुर की शहर कोतवाली में दिनदहाड़े एक ज्वेलरी शोरूम में घुसकर बदमाशों ने करोड़ों की डकैती को अंजाम दिया तो समाजवादी पार्टी द्वारा कानून-व्यवस्था पर सवाल खड़ा करके योगी सरकार को घेरा जाने लगा। इसके बाद पुलिस प्रशासन ऐक्टिव मोड में आ गया। आनन-फानन में अपराधियों की धर-पकड़ शुरू हुई। घटना के छह दिन बाद यानी 3 सितंबर को सुल्तानपुर पुलिस ने तीन बदमाशों को मुठभेड़ में घायल कर गिरफ्तार कर लिया। इन बदमाशों के नाम सचिन सिंह, पुष्पेंद्र सिंह और त्रिभुवन था। इसके अगले दिन (4 सितंबर) को इस वारदात को अंजाम देने वाले गैंग के एक अन्य आरोपी विपिन सिंह ने रायबरेली कोर्ट में सरेंडर कर दिया। फिर 6 सितंबर को यूपी एसटीएफ ने एक लाख के इनामी मंगेश यादव को एनकाउंटर में ढेर कर दिया। इसी के बाद अखिलेश यादव ने बदमाशों के मारे जाने को जातीय चासनी में लपेटना शुरू कर दिया। समाजवादी पार्टी के नेता सुनील सिंह साजन, मंगेश यादव के एनकाउंटर पर सवाल खड़े करते हुए कहने लगे कि यह एनकाउंटर नहीं, हत्या है। पुलिस 6 सितंबर को मंगेश को लेकर जाती है और 9 सितंबर को उसको सटाकर गोली मार देती है। साजन ने कहा हम किसी अपराधी के साथ नहीं खड़े हैं, लेकिन जब अपराधी की जाति देखकर गोली चलेगी तो सवाल उठना लाजिमी है। जब अपराधी सीएम की जाति का होगा तो पुलिस की गोली कमर के नीचे चलती है और जब अपराधी मुस्लिम, यादव, ब्राह्मण, गुर्जर होगा तो पुलिस की गोली कमर के ऊपर चलती है।
सुलतानपुर डकैती कांड में शामिल बदमाश मंगेश यादव के एनकांउटर पर जो समाजवादी पार्टी सवाल खड़ा कर रही थी, उसको तब बड़ा झटका लगा जब 23 सितंबर को इसी डकैती में वांछित एक लाख के इनामी अमेठी के मोहनगंज थाने के जनापुर निवासी बदमाश अनुज प्रताप सिंह को लखनऊ एसटीएफ व उन्नाव पुलिस की संयुक्त टीम ने अचलगंज के कोलुहागाड़ा के पास मुठभेड़ में मार गिराया। तड़के चार बजे हुई मुठभेड़ में गोली लगने से मौके पर ही अनुज की मौत हो गई जबकि उसका साथी बाइक से कूदकर भाग निकला। अनुज ठाकुर बिरादरी से आता था। ऐसे में सपा ने यूटर्न लेकर कहना शुरू कर दिया कि एनकाउंटर जैसा कृत्य कमजोर सरकारें करती हैं। इस एनकाउंटर के बाद सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने प्रतिक्रिया व्यक्त की है। उन्होंने एक्स पर लिखा कि सबसे कमजोर लोग एनकाउंटर को अपनी शक्ति मानते हैं। किसी का भी फर्जी एनकाउंटर नाइंसाफी है। वही अनुज के पिता ने अखिलेश यादव पर तंज कसते हुए कहा कि ठाकुर के एनकाउंटर से अखिलेश यादव की इच्छा पूरी हो गई। बात समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव की बदमाशों की जाति तलाश करने वाली सियासत की हकीकत की कि जाये तो उत्तर प्रदेश में 2017 से अगस्त 2024 तक 207 अपराधी पुलिस एनकाउंटर में मारे गए हैं। उत्तर प्रदेश में अब तक 208 एनकाउंटर हुए हैं,जिसमें बिकरू कांड के विकास दुबे से लेकर से सुलतानपुर डकैती कांड में शामिल मंगेश यादव और अनुज प्रताप सिंह का एनकांउटर शामिल है।
अतीक अहमद के बेटे असद और मोहम्मद गुलाम के एनकाउंटर को लेकर तो लड़ाई सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गई लेकिन अब तक यूपी पुलिस के किसी भी एनकाउंटर पर प्रदेश या देश के किसी भी एजेंसी ने सवाल नहीं खड़े किए हैं। यही वजह है कि इस बार वीरता के लिए दिए गए राष्ट्रपति गैलंट्री मेडल में यूपी पुलिस के 17 पुलिसकर्मी शामिल हैं, जिसमें असद और मोहम्मद गुलाम को एनकाउंटर में ढेर करने वाली टीम भी है। वहीं, जिस यूपी एसटीएफ पर मंगेश यादव को एनकाउंटर में मार गिराने पर सवाल खड़े हो रहे हैं। उसी एसटीएफ ने मई 2023 से 23 सितंबर 2024 तक मुठभेड़ में कुल 10 अपराधियों को ढेर किया है। इन 16 महीनों में मारे गए अपराधियों की लिस्ट में शामिल बदमाशों में जाट बिरादरी का अनिल नागर उर्फ अनिल दुजाना। मुस्लिम बदमाशों में गुफरान, राशिद कालिया, शाहनूर उर्फ शानू का नाम शामिल है। वही ब्राह्मण में विनोद उपाध्याय, ठाकुरों में सुमित कुमार सिंह उर्फ मोनू चवन्नी, निलेश कुमार और अनुज प्रताप सिंह का नाम शामिल है। वही यादवों में दो नाम पंकज यादव और मंगेश यादव के हैं। बात अगर उत्तर प्रदेश में मारे गए अपराधियों के जातीय आंकड़ों की करें तो मार्च 2017 से अप्रैल 2023 तक उत्तर प्रदेश में कुल 183 अपराधी मारे गए। मारे गए इन 183 अपराधियों में 61 मुस्लिम, 18 ब्राह्मण, 16 ठाकुर, 15 जाट और गुर्जर, 14 यादव, 13 दलित, 3 ट्राइब्स, 2 सिख, 7 ओबीसी, 34 अन्य शामिल हैं। यह आकड़े बताते हैं कि योगीराज में बदमाशों की जाति देखकर नहीं, उनके अपराध को देखकर गोली चलाई जाती है।
बहरहाल, आज भले ही अखिलेश यादव मौजूदा सरकार पर जाति देखकर बदमाशों को गोली मारे जाने की बात कर रहे हों, लेकिन अखिलेश राज में क्या होता था, किसी से छिपा नहीं हैं। यहां तक की आतंकवादियों तक के मुकदमे वापस करने की साजिश रची जाती थी। इसी के तहत 2012 में उत्तर प्रदेश की सपा सरकार अपने शासनकाल में वर्ष 2007 में हुए कचहरी सीरियल ब्लास्ट मामले में आरोपियों पर से मुकदमे वापस लेने की तैयारी में जुट गई थी। मगर अदालत के आदेश ने सरकार की मंशा पर पानी फेर दिया था। इस पर अखिलेश सरकार में संसदीय कार्यमंत्री आजम खां ने कहा था कि सरकार ने हमेशा अदालतों के आदेशों का पूरा सम्मान किया है। सरकार को कोई बेगुनाह लगता है तो पुलिस जांच कराने के बाद मुकदमा वापस लेती है। बता दें कि अखिलेश सरकार ने 2012 में शपथ ग्रहण करने के कुछ माह बाद अक्टूबर 2012 में कचहरी सीरियल ब्लास्ट के आरोपियों के मुकदमे की वापसी के लिए प्रमुख सचिव न्याय की ओर से जिलाधिकारी को पत्र भेजा था। इसी आधार पर सुनवाई के दौरान विशेष अदालत में विशेष लोक अभियोजक अपर जिला शासकीय अधिवक्ता ने कहा था कि व्यापक जनमानस व सांप्रदायिक सौहार्द के मद्देनजर आरोपियों पर से मुकदमा वापस लिया जाना न्यायोचित होगा।
दरअसल, 2007 में लखनऊ, फैजाबाद और वाराणसी कचहरी में हुए सीरियल ब्लास्ट के आरोप में एटीएस व एसटीएफ ने खालिद मुजाहिद व तारिक कासमी को गिरफ्तार कर दोनों के कब्जे से जिलेटिन की नौ रॉड, तीन स्टील बजर और डेटोनेटर बरामद किए थे। बाराबंकी कोतवाली में मुकदमा दर्ज हुआ था। पुलिस ने तीन माह में ही कोर्ट में आरोपपत्र दाखिल कर दिया था। जांच में तारिक कासमी को यूपी का हूजी चीफ और खालिद मुजाहिद को यूपी के खोजी दस्ते का कमांडर बताया गया। इन पर मुकदमे की वापसी के लिए अक्तूबर 2012 में शासन ने जिला प्रशासन से रिपोर्ट मांगी थी। इसी के तहत मुकदमा वापसी की कार्यवाही अदालत की चौखट तक पहुंची लेकिन यहां कोर्ट ने अखिलेश सरकार के मंसूबों पर पानी फेर दिया था। इसी को लेकर बीजेपी हमेशा समाजवादी पार्टी के पर हमलावर भी रहती है।
कहने का तात्पर्य यह है कि मुस्लिम तुष्टिकरण की सियासत के चलते समाजवादी पार्टी अपनी और कानून की हद पार करने से भी परहेज नहीं करती है। उसके दरवाजे हर उस मुस्लिम शख्स के लिए खुले रहते हैं जिससे सहारे उन्हें अपना मुस्लिम वोट बैंक मजबूत होता नजर आता है। इसी के चलते अक्सर कई दागी और अपराधी मुस्लिम भी समाजवादी चोला ओढ़कर अपराध के सम्राज्य को खड़ा करने और बड़ा करने में लग जाते हैं क्योंकि वह जानते हैं कि उनके लिए अन्य किसी पार्टी के अलावा समाजवादी पार्टी में इंट्री पाना और सुरक्षित रहना ज्यादा आसान है। इसी वोट बैंक की सियासत का परिणाम यह होता है कि अखिलेश को ऐसे मुस्लिम चेहरों की वजह से अक्सर शर्मसार होना पड़ जाता है। कभी अयोध्या में उनका नेता मोईद खान दलित बेटी से बलात्कार के आरोप में पकड़ा जाता है तो कभी उसके नेता जाली नोटों और बम-बारूद का गैंग चलाते मिल जाते हैं, जिनका बचाव करने के लिए अखिलेश को उलटे-सीधे तर्क देना पड़ते हैं। योगी सरकार में पर्यटन मंत्री जयवीर सिंह कहते हैं कि समाजवादी पार्टी में तो जितना बड़ा अपराधी वो उतना बड़ा समाजवादी होता है। वहीं, यूपी के परिवहन मंत्री दयाशंकर सिंह कहते हैं कि जब समाजवादी पार्टी की सरकार थी तो एक-एक अपराधी ने एक-एक जिला बांट लिया था। लखनऊ में तो सपाई कार्यकर्ता पुलिस के सीओ को कार से घसीटते हुए एसएसपी आवास के सामने से गुजरते थे। आज योगीराज में एक सिपाही का कॉलर पकड़ ले तो कलेजा निकाल दिया जाएगा। अब कानून का राज्य स्थापित हुआ है, इसलिए सपा को दिक्कत हो रही है।