रिपोर्ट में खुलासा, काला धन छिपाने के मामले में स्विटजरलैंड से आगे निकला अमेरिका
नई दिल्ली। दुनिया भर में काला धन को छिपाने के मामले में बदनाम रहे स्विट्जरलैंड का दाग अब धुलने जा रहा है। ताजा रिपोर्ट में सामने आया है। अब स्विट्जरलैंड नहीं, बल्कि अमेरिका दुनियाभर में काला धन छिपाने वालों के लिए सबसे सुरक्षित स्थान बन गया है। बीते कुछ सालों में मोदी सरकार(Modi government) के अलावा अन्य देशों की सक्रियता की वजह से स्विट्जरलैंड(Switzerland) जैसे देश ब्लैकमनी को लेकर जानकारियां साझा करने पर राजी हो गए। ऐसे में काला धन कमाने वाले धन कुबेर तेजी से अमेरिका की ओर मुड़ रहे हैं।
एडवाजरी ग्रुप टैक्स जस्टिस नेटवर्क (TJN) की रिपोर्ट के अनुसार कोरोना संकट के बाद अमेरिका में 2020 के बाद से दुनिया को फाइनेंशियल सिक्रेसी में लगभग एक तिहाई की बढ़ोतरी हुई है। इसके मुताबिक संपत्ति का मालिकान हक छिपाने में वित्तीय और कानूनी मदद अमेरिका (America) से बेहतर कहीं नहीं मिलती है। बता दें कि TJN 2009 से ही काला धन छिपाने को लेकर अलग-अलग देशों की रैंकिंग जारी कर रहा है। ताजा रैंकिंग में इसने अमेरिका को टॉप पोजिशन पर रखा है। कुछ लोग तो इसे (अमेरिका को) नया स्विट्जरलैंड कहने लगे हैं।’
‘मुंह में राम बगल में छुरी’
अमेरिका के नेतृत्व में दुनिया के पांच सबसे अमीर देश ब्रिटेन, जापान, जर्मनी और इटली फाइनेंशियल सिक्रेसी का विरोध करते रहे हैं। लेकिन यही देश आधे से अधिक ग्लोबल प्रोग्रेस रोकने के लिए जिम्मेदार हैं। कई सालों से अमेरिका खुद ही दूसरे देशों को यह कहकर लताड़ लगाता रहा है कि वे देश अमेरिकियों को काला धन छिपाने में मदद कर रहे हैं। लेकिन अब खुद अमेरिका ही धनी विदेशियों के लिए लीडिंग टैक्स और सीक्रसी हेवन के रूप में उभर रहा है।
अमेरिका खुद को ब्लैक मनी के न्यू हॉट मार्केट के रूप में तब्दील कर रहा है। लंदन के वकीलों से लेकर स्विस ट्रस्ट कंपनियों तक, सभी इस करतूत में शामिल हैं और दुनियाभर के धनाढ्यों को बहामास तथा ब्रिटिश वरजिन आयलैंड्स से नेवैडा, वायोमिंग एवं साउथ जकोटा जैसी जगहों में उनके अकाउंट्स ट्रांसफर कराने में मदद कर रहे हैं। स्विट्जरलैंड का स्थान अब इस रैंकिंग में फिसलकर दूसरी पायदान पर आ गया है। यहां अमेरिका की तुलना में फाइनेंशियल सीक्रेसी की सुविधा आधी है। केमैन आईलैंड जो कभी पहले स्थान पर हुआ करता था, अब वह 14वीं पायदान पर आ गया है। इसका कारण फाइनेंशियल सर्विसेज के स्तर में आई गिरावट है।