श्रीराम आराधना: प्राचीन कश्मीर से बंगाल तक एक अनकहा इतिहास
- भारत में है कश्मीरी रामायण की उन्नत परंपरा
- चौतन्य युग के बाद के वैष्णव पंथ की तर्ज पर बंगाल में राम को एक परिवार के सदस्य के रूप में पूजा जाता है
लखनऊ (अमरेन्द्र प्रताप सिंह) : रामायण प्रोजेक्ट के ग्लोबल इनसाइक्लोपीडिया के तहत अयोध्या रिसर्च इंस्टीट्यूट और बंगाल रामायण रिसर्च ग्रुप की ओर से शनिवार 18 जुलाई को गूगल मीट के माध्यम से श्रीराम आराधना- प्राचीन कश्मीर से बंगाल तक एक अनकहा इतिहास, शीर्षक से ऑनलाइन वेबिनार आयोजित किया गया। जगमोहन रावत के तकनीकी सहयोग से आयोजित इस वेबिनार में अयोध्या शोध संस्थान के निदेशक योगेंद्र प्रताप सिंह की देखरेख में वक्ताओं ने कहा कि रामचंद्र, देश, जाति और धार्मिक सीमाओं से परे हैं।
राम और रामायण दोनों असीम हैं
रामायण प्रोजेक्ट की ग्लोबल इनसाइक्लोपीडिया की संयोजिका अनीता बोस ने कहा कि राम और रामायण दोनों असीम हैं। राम को देश की सीमाओं में नहीं बांधा जा सकता है। वास्तव में वह वैश्विक नायक हैं। यह अवधारणा विभिन्न प्रदर्शन कला, साहित्य, सांस्कृतिक सहयोग, विभिन्न कला सामग्री, संग्रहालय कलाकृतियों, पुरातात्विक साक्ष्यों में परिलक्षित होती है।
वेबिनार के मुख्य अतिथि ए.एस.आई. के पूर्व क्षेत्रीय निदेशक, डॉ.के.के.मोहम्मद ने कहा कि अयोध्या के उत्खनन से प्राप्त सबूतों के आधार पर कहा जा सकता है कि वहां एक भव्य मंदिर था। यह तथ्य हमारे देश की संस्कृति को और अधिक समृद्ध करता है। विशेष अतिथि अमेरिका के ओक्लाहोमा राज्य विश्वविद्यालय में इलेक्ट्रिकल और कंप्यूटर इंजीनियरिंग के प्रोफेसर, एमिरेट्स पद्मश्री डॉ.सुभाष काक ने जम्मू-कश्मीर में राम पूजा के अज्ञात इतिहास पर सभी का ध्यान आकर्षित किया। उनके अनुसार, कश्मीरियों ने रामायण को हिमालय से परे उत्तरा कुरु में पहुंचाया, जिसे अब झिंजियांग और तिब्बत के नाम से भी जाना जाता है।
खडग़पुर स्थित आई.आई.टी. के ऑर्किटेक्चर एंड प्लानिंग विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर डॉ.जॉय सेन ने कहा कि रामायण भौगोलिक रूप से उत्तर-पूर्वी, पूर्वी और दक्षिणपद का साझा करता है जो हिमालय, कश्मीर, कालीघाट तक को आपस में मजबूती से जोड़ता है। रामायण काल में ऋग्वेद के महान ऋषियों का भी उन्होंने उल्लेख किया।
श्रीलंका में रामायण यात्रा के शोधार्थी बाला वेंकटेश्वर संकतुरी ने बताया कि कोडंडा राम का उल्लेख करते हुए बताया कि श्रीलंका और बंगाल के राम पूजन में गहरे संबंध हैं। लकड़ी की प्रतिमाओं की विद्वान डॉ.सोमा मुखर्जी ने लकड़ी के राम दरबार सहित राम के विभिन्न देवताओं का अद्भुत संग्रह दिखाया। यह संग्रह लगभग 350 वर्ष पुराना था। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि बंगाल में राजा राम परिवार के सदस्य हैं। बंगाल की कहावतों में, लक्ष्मण जैसा भाई और राम जैसा पुत्र की कामना की जाती है।
फिजिशियन डॉ.तलक पुरकायस्थ ने कहा कि पश्चिम बंगाल के स्थानीय मेलों से लेकर विभिन्न लोक संस्कृति तक में रामायण की छाप है। उन्होंने कहा कि बंगाल में बहुतायत में अज्ञात मंदिर हैं, जिन पर शोध किया जाए तो चौंकाने वाले तथ्य सामने आएंगे। आज भी श्रीरामपुर, रामराजा ताल, रामपुरहाट जैसी जगहें हैं। उन्होंने कीर्तिवासी रामायण के संदर्भ में रोचक जानकारियां दी।