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…और जिंदगी जीत गई

सबसे बड़ा सिलक्यारा रेस्क्यू पूरा कर उत्तराखंड ने रचा इतिहास

गौरव ममगाईं, देहरादून

12 नवंबर की सुबह उत्तरकाशी के यमुनोत्री मार्ग पर सिलक्यारा टनल में भूस्खलन के चलते मलबा आ गिरा, जिसमें 41 श्रमिक फंस गये थे। राज्य सरकार ने तुरंत रेस्क्यू शुरू कराया। सीएम धामी ने सबसे पहले श्रमिकों को छोटे पाइप की मदद से जीवित रहने के लिए आवश्यक आक्सीजन व खाद्य सामग्री पहुंचवायी। रेस्क्यू के दौरान टनल के भीतर ऊपर से लगातार मलबा गिरने के कारण कई दिन तक बाधा आती रही। रेस्क्यू में लग रही देरी की गंभीरता को समझते हुए मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को फोन लगाया और बड़े विशेषज्ञ को बुलाने का आग्रह किय। फिर क्या था, पीएम मोदी ने विश्व के सबसे सफल रेस्क्यू एक्सपर्ट माने जाने वाले अर्नाल्ड डिक्स को रेस्क्यू की जिम्मेदारी सौंपने का निर्णय लिया। अर्नाल्ड डिक्स को 24 घंटे के भीतर भारत बुलाया और 19 नवंबर को उत्तराखंड के उत्तरकाशी रेस्क्यू स्थल पर पहुंचाया गया। इसके बाद रेस्क्यू टीम ने युध्दस्तर पर कार्य आरंभ किया। अगले ही दिन सुबह टनल में फंसे श्रमिकों की तस्वीरें मिलने लगती हैं और सभी 41 श्रमिकों के सुरक्षित होने की सूचना मिली तो सबने राहत की सांस ली।

यह शुरुआती सफलता थी, लेकिन असल चुनौती तो सभी श्रमिकों को सुरक्षित बाहर निकालने की थी। रेस्क्यू में बड़े पाइप को डालने में आ रही अड़चनों को देखते हुए सरकार ने आस्ट्रेलिया की बड़ी आगर मशीनें लाने का फैसला किया। इन्हें दिल्ली से सिलक्यारा के पर्वतीय क्षेत्र में जल्द से जल्द पहुंचाना बड़ी चुनौती था। सीएम धामी को जरा भी देर बर्दाश्त नहीं थी। इसलिए सीएम धामी ने फिर पीएम मोदी से मदद मांगी तो वायुसेना के सबसे बड़े मालवाहक विमान सुपर हरक्यूलिस समेत तीन विमानों को मोर्चे पर उतारा गया। कुछ घंटे के भीतर मशीनें सिलक्यारा टनल के पास पहुंचनी शुरू हो गईं। इसके बाद अर्नाल्ड डिक्स के नेतृत्व में रेस्क्यू टीम ने बड़े पाइप डालने शुरू किये, जिसमें सफलता मिलती रही, लेकिन श्रमिकों से 10 से 12 मीटर के फांसले के बाद ड्रिलिंग में फिर अड़चनें आने लगी। रेस्क्यू के अंतिम चरण में जब बड़ी मशीनें जवाब दे गई थीं, तब झांसी से आये रैट माइनर्स ने बड़े ही कौशल से हाथों से खुदाई पूरी कर डाली। आपको जानकर हैरानी होगी कि रैट माइनर्स ने महज 21 घंटे में करीब 15 मीटर खुदाई पूरी कर डाली। रैट माइनर्स ही सबसे पहले श्रमिकों के पास पंहुचे थे। उनके हुनर को देख हर कोई उन्हें सलाम किये बगैर न रह सका। हौसले बुलंद हों तो मुश्किलों को भी झुकना ही पड़ता है।

सुरंग निर्माण में कई कमियां आईं सामने, सीएम धामी रहे गंभीर
उत्तरकाशी के सिलक्यारा टनल में हुआ हादसा कोई प्राकृतिक घटना नहीं है, बल्कि यह मानवनिर्मित तबाही होने की बात कही जा रही है। 4.5 किमी. लंबी यह टनल एनएचआईडीसीएल की देखरेख में दो कंपनियां बना रही हैं। एंट्री प्वाइंट से नवयुगा कंपनी व टेल साइट से गजा कंपनी सुरंग बना रही है। पहला, निर्माणाधीन टनल में मानकों की अनदेखी की बात सामने आयी। वो यह है कि इसमें स्केप टनल नहीं बनाई गई। टनल के जिस 60 मीटर हिस्से में लूज फॉल हुआ, उस हिस्से में लाइनिंग का कार्य नहीं हुआ था। इस हिस्से में कई दिन से पानी की लीकेज और लूज गिर रहा था, लेकिन कंपनी ने ध्यान नहीं दिया। पूरी टनल में कहीं भी बायपास टनल नहीं बनाया गया था। दूसरा, कंपनी को मजदूरों की सही संख्या की भी जानकारी नहीं थी। यही वजह थी कि पहले कई दिनों तक कंपनी 40 श्रमिक होने का दावा करती रही, लेकिन बाद में पता चला कि टनल में 41 श्रमिक फंसे हैं।

तीसरा, यह कि दिवाली की सुबह जब यह घटना हुई, तब सब अफसर अवकाश पर थे। इतनी बड़ी परियोजना में एक भी अफसर का न होना लापरवाही को दर्शाता है। शुरुआती समय में जिला प्रशासन और कंपनी के बीच समन्वय में बड़ी कमी भी देखी गई। जिला प्रशासन को स्टेटस रिपोर्ट तक नहीं दी जा रही थी। नतीजा 15 नवंबर को एडीएम उत्तरकाशी तीरथ पाल सिंह को कंपनी के एक्सक्यूटिव डायरेक्टर को नोटिस भेजकर हर दो घंटे में जिला प्रशासन को स्टेटस रिपोर्ट देने को कहा था। वहीं, सीएम पुष्कर सिंह धामी ने स्पष्ट कहा है कि इस टनल हादसे की निष्पक्ष जांच कराई जाएगी। यह हादसा कैसे हुआ, निर्माण कार्यों में किन-किन मानकों का उल्लंघन हुआ, कौन-कौन जिम्मेदार हैं? इन सब पहलुओं की गहनता से निष्पक्ष रूप से जांच कराई जाएगी। दोषियों को बख्शा नहीं जायेगा। भविष्य में भी सरकार निर्माण कार्यों में मानकों का सख्ती से पालन कराएगी।

देशभर की 29 निर्माणाधीन सुरंगों का होगा सुरक्षा आडिट
सिलक्यारा टनल हादसे ने देश में निर्माणाधीन सुरंगों की सुरक्षा के प्रति आगाह किया है। इसके लिए सड़क एवं परिवहन मंत्रालय ने देशभर में निर्माणाधीन 29 सुरंगों का सुरक्षा आडिट कराने का फैसला किया है। राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) व दिल्ली मेट्रो के विशेषज्ञ संयुक्त रूप से सभी सुरंगों में सुरक्षा मानकों की जांच करेंगे और 7 दिन के भीतर अपनी रिपोर्ट सौंपेगे। देशभर में निर्माणाधीन इन 29 सुरंगों की कुल लंबाई 79 किलोमीटर है।

कौन होते हैं रैट माइनर्स
रेस्क्यू को मुश्किल समय में पूरा करने वाले रैट माइनर्स को आज पूरा देश असली हीरो मान रहा है। आइये अब जानते हैं कौन हैं रैट माइनर्स? रैट माइनर्स वे श्रमिक हैं, जिन्हें सुरंग, खदानों में हाथों से खुदाई का बड़ा अनुभव होता है। जहां बहुत थोड़े स्थान से खुदाई करनी होती है, वहां फावड़ा व अन्य औजार का प्रयोग करना संभव नहीं होता, इसलिए ऐसे स्थानों पर खुदाई के लिए रैट माइनर्स को लगाया जाता है। इनके इतिहास की बात करें तो प्राचीन काल में भी रैट माइनर्स का खुदाई में प्रयोग करने का प्रचलन देखा गया है। भारत के प्रमुख वंश चंदेल शासन में मध्य प्रदेश के क्षेत्र में इन श्रमिकों के उपयोग के प्रमाण मिलते हैं। ऐतिहासिक कालिंजर के किले निर्माण में भी रैट माइनर्स को खुदाई का जिम्मा सौंपा गया था।

ऑस्ट्रेलिया से ही एक्सपर्ट व ऑगर मशीन क्यों लाई गयी?
सबसे बड़े टनल रेस्क्यू माने जाने वाला सिलक्यारा टनल रेस्क्यू अब अंतिम स्टेज पर है। इस रेस्क्यू में ऑस्ट्रेलिया की विश्वस्तरीय तकनीक अपनायी गई, जिनसे नामुमकिन से लगने वाले इस रेस्क्यू को मुमकिन किया जाना संभव लगने लगा है। रेस्क्यू की कमान ऑस्ट्रेलियाई रेस्क्यू एक्सपर्ट अर्नोल्ड डिक्स को सौंपी गई और जब ड्रिलिंग में बाधा आई तो ऑस्ट्रेलिया की बड़ी ऑगर मशीनों को ही मोर्चे पर लगाया गया। इस पूरे रेस्क्यू में आस्ट्रेलिया को ही चुना गया? इसके पीछे बेहद महत्वपूर्ण कारण है। दरअसल, उत्तराखंड ने आपदा प्रबंधन में ऑस्ट्रेलिया मॉडल को अपनाया है। ऑस्ट्रेलिया में जिस तरह से आपदा प्रबंधन के उपाय किये जाते हैं, उसी तरह उत्तराखंड में भी प्रबंधन किये जाते हैं। यहां आपदा एवं प्रबंधन के अध्ययन में ऑस्ट्रेलियाई वैज्ञानिक एवं एक्सपर्ट की सहायता ली जाती रही है। इस उत्तराखंड सरकार ने ऑस्ट्रेलियाई एक्सपर्ट की मदद ली और ऑस्ट्रेलिया की आपदा प्रबंधन की तकनीकों को अपनाया गया है।

…तो बौख नाग देवता के नाराज होने पर हुआ हादसा!
सिलक्यारा टनल हादसे के पीछे कई धार्मिक मान्यताएं भी सामने आ रही हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि जहां पर टनल निर्माण हो रहा है, वहां स्थानीय देवता बौख नाग का मंदिर था, जिसे हटाया गया। लोगों की मान्यता है कि बौख नाग देवता इससे रुष्ट हो गए थे, जिस कारण यह हादसा हुआ। इस मान्यता के सामने आने के बाद लोगों के जहन में धारी देवी (श्रीनगर) की घटना भी आ गयी। बता दें कि कई वर्षों पहले श्रीनगर स्थित धारी देवी के मंदिर को भी निर्माण परियोजना के चलते उनके मूल स्थान से हटाया गया था, जिसके बाद भीषण आपदा आई थी। उत्तराखंड में मान्यता है कि हर गांव व कुल में अलग-अलग देवी-देवता होते हैं। गांवों में उनके छोटे-छोटे मंदिर भी बनाये जाते हैं। माना जाता है कि यदि देवी-देवताओं को उनके मूल स्थान से हटा दिया जाता है तो वे रुष्ट हो जाते हैं, जिसका परिणाम परिवार या क्षेत्र में बड़ी क्षति के रूप में देखने को मिलता है।

जब ताकतवर ऑस्ट्रेलियाई ऑगर मशीन भी दे गई जवाब
ऑस्ट्रेलिया की आगर मशीन को दुनिया की सबसे ताकतवर मशीन माना जाता है, लेकिन सिलक्यारा रेस्क्यू में यह ताकतवर मशीन भी जवाब दे गई। दरअसल, कई मीटर तक सफलतापूर्वक ड्रिलिंग करने के बाद श्रमिकों से महज 8 से 10 मीटर की दूरी पर शनिवार (25 नवंबर) को इस ऑगर मशीन की ब्लेड टूट गई। इसके बाद ड्रिलिंग कार्य फिर रुक गया। रेस्क्यू एक्सपर्ट अर्नोल्ड डिक्स के अनुसार, मशीन की ब्लेड के आगे सरिया आ गया, जिसके कारण ब्लेड टूट गयी। अर्नोल्ड ने कहा कि हम मैनुअल तरीके से मलबा हटाने पर भी विचार कर रहे हैं, ताकि रेस्क्यू जल्द से जल्द पूरा किया जा सके।

दूसरे देशों में काम आयेगा सिलक्यारा रेक्स्यू का अनुभव : अर्नाल्ड डिक्स
अर्नाल्ड डिक्स आस्ट्रेलिया, अमेरिका, इंग्लैंड व कई अन्य पश्चिमी देशों में कई बड़े रेस्क्यू को अंजाम दे चुके हैं। अर्नाल्ड का कहना है कि उन्होंने कई बड़े रेस्क्यू किये, जिनमें 2-4 जानें तो जाती ही है, लेकिन सिलक्यारा रेस्क्यू में ऐसा न होना बहुत बड़ी उपलब्धि है। पश्चिमी देशों में भौगोलिक परिस्थिति बहुत अलग होती है, जबकि उत्तराखंड हिमालयी राज्य होने के कारण यहां पर्वतीय क्षेत्र हैं। सिलक्यारा रेस्क्यू में भी पहाड़ बड़ी बाधा बनते रहे, लेकिन हम सबने मिलकर इस नामुमकिन से लगने वाले रेस्क्यू को पूरा कर दिखाया। यहां से मिले अनुभव का दूसरे देशों में होने वाले रेस्क्यू में बहुत लाभ मिलेगा। उन्होंने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी व पीएम नरेंद्र मोदी की भूमिका की सराहना की। बता दें कि अर्नाल्ड डिक्स ने रेस्क्यू शुरू करने से पहले वहां बने बौख नाग देवता के मंदिर पर मत्था टेका था और सभी श्रमिकों के सुरक्षित निकलने की प्रार्थना की थी। उन्होंने श्रमिकों के परिजनों को भी भरोसा दिलाया था कि अब वह आ गए हैं, श्रमिक भाइयों को सुरक्षित निकालने के लिए जी-जान लगा देंगे।

असली हीरो गब्बर सिंह
सिलक्यारा टनल रेसक्यू को सफल बनाने में बाहर पूरी रेस्क्यू टीम जुटी थी, वहीं एक शख्स ऐसा भी था जो टनल में फंसे श्रमिकों के बीच रहकर एक-एक जिंदगी को बचाने में लगा रहा। उस शख्स का नाम है- गब्बर सिंह। सुरंग में रहने का लंबा अनुभव रखने वाले गब्बर्र सिंह टनल में फंसे श्रमिकों को फिट रखने के लिए योगा व वार्म-अप कराते रहे। जो श्रमिक हिम्मत हार रहे थे, उन्हें अपने अनुभव बताकर उम्मीद न हारने की प्रेरणा दी। गब्बर्र सिंह के इन प्रयासों की खूब सराहना हो रही है। उल्लेखलीय है कि कई बार ऐसा समय भी आया, जब श्रमिकों की उम्मीद पूरी तरह टूटने लगी थी, तब गब्बर ही थे जो एक-एक श्रमिक की हौसलाअफजाई करते रहे और उन्हें हार न मानने की प्रेरणा देते रहे। बता दें कि जब पाइप श्रमिकों तक पहुंच पाया तो सीएम धामी ने श्रमिकों के मनोरंजन के लिए लूडो, फोन व कई अन्य आवश्यक वस्तुएं भेजी थी। गब्बर मनोरंजन के जरिये श्रमिकों का ध्यान परेशानी से हटाने में लगे रहते थे। सीएम पुष्कर्र सिंह धामी भी रोजाना गब्बर सिंह से फोन पर बात करते रहे और श्रमिक भाइयों का ध्यान रखने के लिए गब्बर को विशेष धन्यवाद देते रहते थे।

गब्बर ने निभाया अपना वादा
गब्बर ने कहा कि उन्होंने कहा था कि वह सबसे पहले 40 श्रमिक भाइयों को बाहर भेजेंगे, अंत में वह खुद बाहर जाएंगे। मैंने अपना वायदा पूरा कर दिखाया। मुझें एक-एक श्रमिक भाई र्की चिंता थी, क्योंकि कई काफी परेशान होने लगे थे। लेकिन, मैने उनकी हिम्मत टूटने नहीं दी। मैंने उन्हें कुछ होने नहीं दिया। बता दें कि गब्बर सिंह नेगी सिलक्यारा सुरंग के निर्माण में लगी कंपनी नवयुग इंजीनिर्यंरग कंपनी लिमिटेड में फोरमैन के पद पर तैनात हैं। पौड़ी जिले के कोटद्वार नगर निगम क्षेत्र के अंतर्गत विशनपुर निवासी गब्बर सिंह पिछले 25 वर्षों से सुरंग कंपनियों से जुड़े हैं। उन्हें सुरंग निर्माण के दौरान होने वाली भूस्खलन की घटनाओं का भी अनुभव है।

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