जीरो कोविड पॉलिसी के खिलाफ सड़कों पर उतरे चीनी नागरिक, निकाली एंटी-लॉकडाउन रैली
नई दिल्ली : चीन में एक तरफ कोरोना केस बढ़ रहे हैं दूसरी तरफ जीरो कोविड पॉलिसी के खिलाफ चीनी नागरिकों का गुस्सा भी बढ़ रहा है. यही कारण है कि बीते दो-तीन दिनों से चीन के अलग प्रांतों में लोगों ने अब सड़क पर उतरना शुरू कर दिया है. रविवार की रात भी कुछ ऐसी ही थी. चीन की राजधानी बीजिंग (Beijing) में नागरिकों ने एंटी-लॉकडाउन रैली में हिस्सा लिया. रैली में चीनी सरकार के कठोर कोविड-19 प्रतिबंधों के खिलाफ आवाज बुलंद की.
एक रिपोर्ट के मुताबिक, कुछ घंटों के भीतर ही सैकड़ों लोग लिआंगमा नदी के तट पर जमा हो गए थे, जिनमें से कई के हाथों में कोरे सफेद कागज थे. इसे सेंसरशिप के खिलाफ एक प्रतीकात्मक विरोध माना जाता है. अन्य लोगों ने एक छोटी अस्थायी वेदी पर मोमबत्तियां जलाईं, जहां फूलों के गुलदस्ते भी रखे गए थे. यहां उरुमकी में आग में मारे गए पीड़ितों को श्रद्धांजलि दी गई.
झिंजियांग के पश्चिमी क्षेत्र की राजधानी उरुमकी में एक इमारत में भीषण आग लग गई थी, जिसमें कई लोगों की जान गई. इसके बाद पूरे शंघाई और बीजिंग में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए. नागरिकों का मानना है कि इनती मौतें सिर्फ सख्त लॉकडाउन के कारण हुई हैं, क्योंकि उन्हें जरूरी समय पर आपातकालीन सेवाओं का लाभ नहीं मिला.
प्रदर्शनकारियों ने रैली में नारे लगाए, “हम सभी झिंजियांग के लोग हैं! चीनी लोग आगे बढ़ो! लॉन्ग लिव द पीपल!” तियान नाम की एक महिला ने एएफपी को बताया, “मैं यहां अपने भविष्य के लिए हूं… आपको अपने भविष्य के लिए खुद लड़ना होगा. मुझे डर नहीं है, क्योंकि हम कुछ भी गलत नहीं कर रहे हैं, हम कोई कानून नहीं तोड़ रहे हैं. बेहतर कल के लिए हर कोई कड़ी मेहनत कर रहा है.”
बीजिंग की सड़कों पर चीन की शून्य-कोविड नीति के विरोध में भी लोगों ने नारे लगाए. लोग कहते सुनाई दिए, “हमें न्यूक्लिक एसिड परीक्षण नहीं, खाना चाहिए!” वहीं कुछ लोगों ने देश की सख्त कोविड-विरोधी नियमों से जुड़ी त्रासदियों को याद करते हुए भी नारे लगाए. सितंबर में एक दुर्घटना का जिक्र करते हुए एक ने कहा, “गुइझोउ बस दुर्घटना में मरने वालों को मत भूलना… स्वतंत्रता को मत भूलना.”
शंघाई में भी हजारों लोगों ने सख्त कोविड उपायों का विरोध किया. प्रदर्शनकारियों ने राष्ट्रपति शी जिनपिंग को पद छोड़ने के लिए भी कहा. शंघाई के विरोध के एक पर्यवेक्षक, फ्रैंक त्साई ने बीबीसी को बताया कि वह इस बात से हैरान थे कि विरोध कितना बड़ा हो गया था. उन्होंने कहा, “मैंने पूरे 15 सालों में शंघाई में इस पैमाने का कोई विरोध प्रदर्शन नहीं देखा है.”