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वसई-विरार के घमंडी कमिश्नर, पद महान-किर्ती लहान!

डॉ.धीरज फुलमती सिंह

मुबंई: वसई-विरार के नवनियुक्त आयुक्त गंगाधरन डी पद ग्रहण करते ही अपनी कार्यशैली के कारण सुर्खियों में हैं। मात्र महीने भर के कार्यकाल में ही उनकी कार्यशैली पर सवाल उठने लगे हैं। किसी राजनीतिक दल के नेता की तरह बड़े—बड़े बयान देना, किसी भी कार्य योजना को अमली जामा न पहनाने के साथ—साथ व्यावहारिक भूमिका भी निभाने में असफल प्रतीत हो रहे हैं।

बीते 4 जून की अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में बडे जोर शोर से वसई विरार मनपा में भ्रष्टचार का मुद्दा उन्होंने उठाया था, पिछले दस सालों में 470 कर्मचारियों द्वारा तनख्वाह और पद में हेरफेर के नाम पर 120 करोड़ रुपये के घोटालें का पर्दाफाश भी किया, भ्रष्टाचारियों पर अंकुश लगाने की बात भी कही, भ्रष्टाचारियों पर कार्यवाही करने का शिगूफा छोड़ा था।

भ्रष्टाचार को उजागर करने के लिए जांच कमेटी बनाने का वादा किया लेकिन अब महीना खत्म होने को है और सब कुछ टांय-टांय फिस्स होता नजर आ रहा है। बड़े—बड़े वादों का गुब्बारा हवा होता दिखाई दे रहा है। हाल में ही आयुक्त ने सबूत के साथ सेनेटाइजर के नाम पर हुए घपले का मुद्दा भी उठाया है,जिसमे बिना टेंडर के एक महीने मे तीन करोड़ खर्च होने का मामला उजागर हुआ है लेकिन किया कुछ भी नहीं। भ्रष्टाचार का सबूत होने पर भी किसी पर कोई क़ानूनी कार्यवाही नहीं की जा सकी है।

वसई-विरार के कमिश्नर के भ्रष्टाचारियों के खिलाफ लगाये गये आरोप सिर्फ बयानबाजी तक सीमित होते दिखायी दे रहे हैं। ऐसा प्रतीत हो रहा है कि कमिश्नर की कथनी व करनी में फर्क है और वे अपनी बड़ी—बड़ी घोषणाओं से केवल स्थानीय नेता, उनके मातहत कर्मचारी और आम लोगों को सिर्फ अपनी बयानबाजी से खुश रखना चाह रहे हैं। पर भ्रष्टाचार के खिलाफ कड़े कदम उठाने की उनकी कोई मंशा नहीं दिखायी दे रही है। यानि अभी तक उनकी कार्यशैली से वे भी किसी राजनेता की तरह ही मात्र बयानवीर ही प्रतीत हो रहे हैं। मुम्बइया लहजे में कहा जाये तो अपना काम बनता, भाड़ में जाए जनता।

आयुक्त ने जून के पहले सप्ताह में प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान भ्रष्टाचार के जो खुलासे किये थे, उस सिलसिले में क्या कोई जांच कमिटी बैठी है? इस मामले में कमिश्नर से बीते 4 और 7 जुलाई को संपर्क करने का प्रयास किया गया, लेकिन उनकी तरफ से कोई जवाब नहीं आया फिर 8 जुलाई को मैंने उनके पीआरओ से पुन: संपर्क किया तो वे भी गोलमोल जवाब देने लगे।

उनके अनुसार जांच कमिटी बैठाने का काम अभी प्रगति की ओर है लेकिन अभी तक किसी भी प्रकार का कोई पुलिस केस दर्ज किया गया है। वरई कमिश्नर की घोषणाओं में अगर सच्चाई है तो वे मीडिया को स्पष्ट जवाब देने से क्यों बच रहे हैं? वे स्वयं मीडिया की शंकाओं और सवालों पर सामने आकर विराम क्यों नहीं लगाते।

कुल मिलाकर लब्बोलुआब यह है कि कमिश्नर ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके वसई विरार महानगर पालिका पर भ्रष्टाचार का इल्जाम लगा तो दिया लेकिन जो जानकारी मिली है उसके अनुसार अब तक सिर्फ जांच कमिटी बैठाने की प्रक्रिया ही चल रही है, न तो कोई न्यायिक जांच करवाई जा रही है और न ही बाकी कोई और वैधानिक प्रक्रिया शुरू की गयी है।

स्थानीय नेता आपस में कानाफूसी कर रहे हैं कि स्थानीय नेताओं पर दबाव बनाने के लिए यह सब किया जा रहा है, उनको लगता है कि एक बार खुश कर देने के बाद भ्रष्टाचार की इस फाइल को हमेशा के लिए बंद कर दिया जाएगा? गौरतलब है कि इसके पहले भी वसई विरार महानगर पालिका पर करोड़ों के घपलों के मामले उजागर हुए है, इल्जाम लगते रहे हैं लेकिन आज तक उस पर कोई कार्यवाही कभी नहीं हुई है। सिर्फ जांच कमिटी बैठाने की बातें हो रही हैं फिर कुछ दिन बीतते ही जांच कमिटी बैठाने की बात हमेशा के लिए ठंडे बस्ते में चली जाती है।

वर्तमान कोरोना वायरस महामारी से जूझ रहे सभी शहरवासियों में अनियंत्रित कोरोना प्रसार को भी नियंत्रित करने के लिए उनकी बातें मात्र शिगूफा साबित हो रही हैं। वसई विरार शहर में कोरोना मरीजों की संख्या 10000 के करीब पहुंचने वाली है। शहर के कुछ इलाकों मे इस महीने के आखिर तक लॉकडाउन की बातें भी सिर्फ कागजी खानापूर्ति बन कर रह गई है।

हाल ही में महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के कई कार्यकर्ताओं ने उनके ऑफिस पर जाकर धरना प्रदर्शन किया, कोरोना मरीजों के साथ हो रही नाइंसाफी, ज्यादती और कोताही के फोटो उनके कार्यालय पर चिपकाये गये, उनके विरोध में नारे लगाये।

कमिश्नर ने 17 जुलाई को प्रेस कॉफ्रेस की थी। मेट्रो सिटी समाचार की विडियो रिपोर्ट के अनुसार ” कमिश्नर के घमंड की बानगी देखिए कि प्रेस कॉफ्रेस में जब हिंदी अखबार के पत्रकार ने उनसे सवाल पूछा तो उन्होंने हंसते हुए उसका मजाक उड़ाया और कहा कि “मुझे हिंदी भाषा नहीं आती!” कमिश्नर एक आईएएस हैं।

एक आईएएस अधिकारी को भारत की राष्ट्रभाषा नहीं आती है और इस बात का उनको गर्व है? अब इससे बड़े शर्म की और क्या बात हो सकती है? चलिये मान लिया की हिंदी भाषा का ज्ञान उन्हें नहीं है लेकिन उसका मजाक बनाने या मजाक उड़ाने की क्या जरूरत है? जबकि इस शहर में अधिकांश जनसंख्या हिंदी भाषी है। ऐसा अधिकारी जनता से संपर्क और संबंध कैसे बना सकता है?

वसई-विरार के कमिश्नर की एक बेहतरीन खूबी है कि काम कुछ करें या न करें, प्रेस कॉफ्रेस जरूर करते रहते हैं। मिली जानकारी के अनुसार कमिश्नर कार्यालय में हिंदी भाषा में लिखे कोई पत्र वयवहार को स्वीकार नहीं किया जाता साथ ही अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में किसी भी हिंदी भाषी स्थानीय अखबारों और चैनलों के संवाददाताओं को आमंत्रित नहीं करते और बिना अमंत्रण के पहुंचे हिंदी पत्रकारों को व्यंग्यात्मक लहजे में जलील करना नहीं भूूलते।

हिंदी भाषा के अपमान पर कमिश्नर के माफी न मांगने पर सलाम वसई सेवा संस्था के संस्थापक अध्यक्ष विनय तिवारी ने आंदोलन की धमकी दी है और सड़क पर उतर कर इसका विरोध करने की बात कही है।


वसई-विरार की जनता कमिश्नर द्वारा ही उजागर किये गये भ्रष्टाचार के मुद्दे पर क्या कार्रवाई हुई, यह सभी जानना चाहते हैं। भ्रष्टचार गैर कानूनी कार्य होता है, मतलब संगीन जुर्म है तो फिर इतने दिन बीत जाने के बाद भी अभी तक कोई कानूनी कार्रवाई क्यों नहीं हुई? एक महीने होने को आए, जांच कमिटी बैठाने का काम भी कछुआ चाल से ही क्यों रेंग रहा है। क्या कमिश्नर साहब की नीयत में कोई खोट है या फिर उनका मक़सद कुछ और है?

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