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पाम आयल की खेती से असम की अर्थव्यवस्था होगी मजबूत

गोदरेज एग्रोवेट लिमिटेड हाइलाकांदी, कछार और करीमगंज जिले में, पतंजलि फूड लिमिटेड जोरहाट, गोलाघाट, डिब्रूगढ़, तिनसुकिया, कामरूप, ग्वालपाड़ा और नगांव जिलों में, के ई कल्टिवेशन धेमाजी और शोणितपुर जिले में और 3एफ ऑयल पाम कंपनी लखीमपुर और चिरांग जिले में पाम तेल की खेती करेगी।

संजीव कलिता

केन्द्र सरकार द्वारा सन 2021 में जारी राष्ट्रीय खाद्य तेल मिशन-ऑयल पाम के जरिए आत्मर्भिर भारत गढ़ने के लक्ष्य को साकार करने में असम भी कूद पड़ा है। असम में सन 2026 तक 2 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि पर पाम तेल की खेती का लक्ष्य रखा गया है। सूबे के 18 जिलों में पाम तेल की खेती की जाएगी। पाम तेल उत्पादन क्षेत्र को 10 लाख हेक्टेयर तक बढ़ाने और 2025-26 तक कच्चे पाम तेल के उत्पादन को 11.20 लाख टन तक बढ़ाने के उद्देश्य से भारत सरकार द्वारा शुरू इस मिशन के जरिए खाद्य तेलों के उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि के अलावा आयात बोझ को कम करना है। केंद्र सरकार के इस मिशन के तहत देश के विभिन्न राज्यों के साथ असम की भागीदारी को लेकर भले ही सूबे के विभिन्न दल, संगठन विरोध करते नजर आ रहे हैं। इनका कहना है कि पाम तेल की खेती काफी हद तक भूजल को अवशोषित करता है और राज्य में अन्य खेती पर इसका व्यापक प्रभाव पड़ सकता है। उन्होंने सरकार से उद्यम शुरू करने से पहले दो बार सोचने का आग्रह किया है ताकि आम किसानों पर असर न पड़े। हालांकि, असम सरकार के कृषि मंत्री तथा भाजपा मित्रदल में शामिल असम गण परिषद के अध्यक्ष अतुल बोरा ने तमाम आशंकाओं को खारिज करते हुए साफ शब्दों में कह दिया है कि राज्य में पाम तेल की खेती को लेकर एकांश राजनीतिक दल एवं संगठन आम नागरिकों के मन में भ्रम फैला रहे हैं। पाम तेल की खेती को लेकर पिछले दिनों से कुछ गैर-वैज्ञानिक, वैज्ञानिक बने हुए हैं, जिनकी बातों में कोई सच्चाई नहीं है।

केंद्र सरकार ने असम में पाम तेल की खेती के लिए संभावित क्षेत्रों के रूप में 3.75 लाख हेक्टेयर भूमि की पहचान की है। कृषि मंत्री अतुल बोरा के अनुसार राज्य में पाम ऑयल की खेती के लिए विभाग ने चार कंपनियों को कृषि योग्य भूमि आवंटित की है। गोदरेज एग्रोवेट लिमिटेड हाइलाकांदी, कछार और करीमगंज जिले में, पतंजलि फूड लिमिटेड जोरहाट, गोलाघाट, डिब्रूगढ़, तिनसुकिया, कामरूप, ग्वालपाड़ा और नगांव जिलों में, के ई कल्टिवेशन धेमाजी और शोणितपुर जिले में और 3एफ ऑयल पाम कंपनी लखीमपुर और चिरांग जिले में पाम तेल की खेती करेगी। कृषि विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों के अनुसार चूंकि ऑयल पाम नर्सरी स्थापित करने के लिए उपयुक्त बड़ी निजी भूमि की कमी है, इसलिए विभाग इस उद्देश्य के लिए कुछ सरकारी बीज फार्मों को पट्टे पर देने का प्रयास कर रहा है। आंध्र प्रदेश से भी पौधे लाने की प्रक्रिया चल रही है। पाम तेल प्रसंस्करण मिलें स्थापित करने के लिए कृषि विभाग उद्योग विभाग के साथ गठजोड़ करने का प्रयास कर रहा है। वर्तमान में सभी प्रमुख तेल पाम प्रसंस्करण कंपनियां क्षेत्र विस्तार के लिए अपने-अपने राज्यों में किसानों के साथ सक्रिय रूप से प्रचार और भागीदारी कर रहे हैं। देश में प्रमुख तेल पाम उत्पादक राज्यों की सूची में आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु, ओडिशा, कर्नाटक, गोवा के साथ-साथ अब असम, त्रिपुरा, नगालैंड, मिजोरम और अरुणाचल प्रदेश भी इस पहल में भाग लेगा। योजना के सुचारु कार्यान्वयन के लिए विभाग ने पहले ही जिला कार्यक्रम प्रबंधन टीमों को सूचित कर दिया है। इसके लिए जिला स्तर पर भी अधिकारियों को सूचित कर दिया गया है। विभाग ने क्षमता निर्माण के लिए 275 किसानों और 18 अधिकारियों के लिए प्रशिक्षण की व्यवस्था की है। सूचीबद्ध कंपनियों ने अपने आवंटित जिलों में नर्सरी गतिविधियां शुरू कर दी हैं और अब तक उन्होंने दस से अधिक नर्सरी पूरी कर ली हैं।

हाल ही संपन्न विधानसभा के शरद सत्र में भी विरोधी विधायकों ने असम में पाम तेल की खेती की सरकार की पहल की कड़ी आलोचना की और हर हालत में इसे रोकने पर बल दिया। निर्दलीय विधायक अखिल गोगोई ने एक संकल्प प्रस्ताव लाया कि राज्य के 18 जिलों में 3.75 लाख हैक्टेयर भूमि पर पाम तेल की खेती करने की सरकार की पहल को रोका जाए। उनके प्रस्ताव के समर्थन में कांग्रेस विधायक भी आगे आए। प्रस्ताव के समर्थन में कांग्रेस विधायक भरत चंद्र नरह ने पाम तेल की खेती के नकारात्मक पहलुओं की ओर सदन में सरकार का ध्यान आकर्षित किया था। असम में पाम तेल की खेती की संभावना संदर्भ में दस्तक टाइम्स के साथ हुई बातचीत में कृषि मंत्री अतुल बोरा ने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) और इसके तहत इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ऑयल पाम रिसर्च (आईआईओपीआर) की रिपोर्ट का हवाला देते हुए बताया कि इसकी खेती से पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं पहुंचती है, बल्कि लाभ ही हैं। मंत्री बोरा के अनुसार देश तेल उत्पादन के मामले में आत्मनिर्भर नहीं है। 80 फीसदी तेल देश के बाहर से आयात होती है। असम में हर साल 3 लाख एमटी तेल की जरूरत होती है जबकि यहां उत्पादन महज 60 हजार एमटी ही होती है।

कृषि मंत्री बोरा ने विरोधियों को लताड़ लगाते हुए दावा किया कि कांग्रेस के शासन में ही राज्य के तीन जिलों ग्वालपाड़ा, बंगाईगांव और दक्षिण कामरूप जिले में परीक्षात्मक तौर पर पाम तेल की खेती शुरू की गई थी। पाम तेल का पेड़ धान, केला और गन्ने से काफी कम पानी भूगर्भ से सोखता है। असम में की जानेवाली कई खेतियों की तुलना में पाम तेल की खेती में कम पानी की जरूरत होगी। मंत्री बोरा यह भी बताते हैं कि मलेशिया और इंडोनेशिया में वनांचल हटाकर पाम तेल की खेती करने के कारण ही वहां के पर्यावरण में नकारात्मक असर पड़ा था, पाम तेल की खेती के कारण नहीं। आईसीएआर से जुड़े कृषि वैज्ञानिकों अनुसार 1 हेक्टेयर भूमि पर केले की खेती करने में साल में 120 लाख लीटर पानी की खपत होती है। उसी मात्रा की जमीन पर गन्ने की खेती की जाए तो साल में 133 लाख लीटर पानी की जरूरत होती है।

वहीं, 1 हेक्टेयर जमीन पर एक साल में दो प्रकार की धान की खेती के लिए 300 लाख लीटर पानी की जरुरत होती है। लेकिन, इसके विपरीत 1 हेक्टेयर जमीन पर पाम तेल की खेती के लिए साल में सिर्फ 67.35 लाख लीटर की पानी की जरूरत होती है। कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार पाम तेल की जड़ों का अधिकांश हिस्सा जमीन से 60 सेंटीमीटर की गहराई में ही रहती है। भूगर्भ के जल स्तर की सीमा इसके काफी नीचे रहती है। इस कारण पाम तेल की खेती से भूगर्भ में जल की कमी होने संबंधी आशंका निराधार है और महज एक कुप्रचार है। भारत सरकार की नई नीति के अनुसार पाम खेती के लिए वनांचल इलाके की जमीन का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है। बल्कि, बेकार पड़े जमीन अथवा कम आमदनी वाली भूमि पर ही इसकी खेती करनी होगी। चूंकि असम में वन इलाकों में इसकी खेती नहीं की जाएगी अत: पर्यावरण पर खतरे की कोई संभावना ही नहीं है। मालूम हो कि देश के कई राज्यों आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, तमिलनाडू और मिजोरम के कुल 4.60 लाख हेक्टेयर जमीन पर पाम की खेती की गई है तथा आज तक इन राज्यों में इसका किसी नकारात्मक असर पड़ने की खबर नहीं है। केंद्र सरकार की इस योजना के तहत, किसानों को गुणवत्तापूर्ण रोपण सामग्री, फसल के रखरखाव और अंतरफसल के लिए वित्तीय सहायता सहित विभिन्न प्रोत्साहन भी प्रदान किए जाते हैं। इसके अतिरिक्त, किसानों को उनकी उपज के लिए गारंटीकृत कीमतों के साथ एक सुनिश्चित बाजार भी प्रदान किया जाता है।

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