बेलगाम वक्फ बोर्ड!
–संजय सक्सेना
हिन्दुस्तान की राजनीति में एक बार फिर मोदी सरकार और मुसलमान आमने-सामने आ गये हैं। तीन तलाक, एनआरसी, समान नागरिक संहिता, जनसंख्या नियंत्रण कानून जैसे तमाम मुद्दों पर तो दोनों (मोदी सरकार और मुसलमानों) के बीच ‘टकराव’ चल ही रहा था, अब इसमें वक्फ बोर्ड विवाद की भी एंट्री हो गई है। मोदी सरकार द्वारा 8 अगस्त 2014 को संसद में पेश किया गया वक्फबोर्ड संशोधन बिल इस टकराव की बड़ी वजह बन गया है। लोकसभा में इस बिल के पेश होते ही पूरे देश में माहौल गरमा गया। अभी तक मुस्लिम समाज द्वारा इसके विरोध में तकरीरें और धरना-प्रदर्शन किया जा रहा है। संशोधन बिल के खिलाफ शिया-सुन्नी सब एकजुट होकर मोदी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं। हाल में ही शिया धर्मगुरु मौलाना कल्बे जव्वाद के नेतृत्व में मुसलमानों ने बड़ी संख्या में इकट्ठा होकर लखनऊ में बड़ा इमामबाड़ा के बाहर प्रदर्शन किया था। दूसरी ओर मोदी सरकार द्वारा संसद के भीतर जैसे ही वक्फ बोर्ड संशोधन बिल पेश किया गया, इसको लेकर सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच हंगामा शुरू हो गया।
बहरहाल, यह तय माना जा रहा था कि मोदी सरकार संख्या बल के आधार पर इस बिल को आसानी से पास कर सकती थी, क्योंकि बीजेपी की सहयोगी पार्टियों के नेता नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू की तरफ से इसका कोई खास विरोध नहीं किया गया था लेकिन आश्चर्यजनक रूप से मोदी सरकार ने ऐसा किया नहीं। लोकसभा में लम्बी बहस के बाद सरकार ने इस बिल को बड़ी आसानी से संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) को भेज दिया है। इस पर कई तरह की अलग-अलग प्रतिक्रिया भी आई। कुछ लोगों का मानना था कि मोदी सरकार कमजोर हो गई है, इसलिए विपक्ष के विरोध को देखते हुए सरकार ने इस मुद्दे पर हथियार डाल दिया है। वहीं एक धड़ा ऐसा भी है जो कहता है कि यह बीजेपी की रणनीति भी हो सकती है। इसके पीछे राम मंदिर निर्माण से जुड़ा तर्क दिया जा रहा है।
राजनीति के जानकार कहते हैं भारतीय जनता पार्टी राम मंदिर बनवाकर समझ चुकी है किसी भी समस्या के समाधान हो जाने के बाद जनता के लिए वह मुद्दा खत्म हो जाता है। अगर राम मंदिर बनने में कोई समस्या रह गई होती तो हो सकता है कि कम से कम उत्तर प्रदेश में तो बीजेपी को लोकसभा चुनावों में करारी शिकस्त का सामना नहीं करना पड़ता। बीजेपी यह जानती है कि वक्फ बोर्ड पर अगर अभी कानून बन गया तो इसका फायदा चुनावों में नहीं उठाया जा सकता, इसलिए पुरानी कांग्रेस सरकारों की तरह बीजेपी ने भी सीख लिया है कि मुद्दे को जीवित रखना है तो इसका कभी समाधान नहीं करना है। इसी रणनीति के तहत उसने वक्फबोर्ड संसोधन बिल को जेपीसी के पास भेज दिया है। वहीं शायद उत्तर प्रदेश में नजूल भूमि विधेयक भी इसीलिए रोक दिया गया, क्योंकि उत्तर प्रदेश के दोनों सदनों में पार्टी का बहुमत है। पार्टी जो चाहे कानून पास करा सकती थी। वक्फ बोर्ड संशोधन बिल के सहारे बीजेपी उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में फिर से अपनी खोई हुई ताकत वापस हासिल करना चाहती है।
खैर, यहां विश्लेषण वक्फबोर्ड और उसको लेकर मोदी सरकार के नजरिये का किया जाये तो काफी हद तक ‘दूध का दूध और पानी का पानी’ हो जाएगा। वक्फ बोर्ड और वक्फ की संपत्तियों को लेकर हिंदुस्तान में अक्सर सही-गलत चर्चा होती रहती है। हममें से अधिकांश लोगों ने वक्फ का नाम तो सुना है, लेकिन वह इसके बारे में बहुत कुछ जानते नहीं हैं। वक्फ होता क्या है? किसी मस्जिद या दूसरे धर्मस्थल के वक्फ होने का मतलब क्या है? और क्या मोदी सरकार द्वारा वक्फ बोर्ड के संविधान में तब्दीली की कोशिशों का असर मुस्लिम धर्मस्थलों के स्टेटस पर पड़ सकता है? चूंकि भारत में रेलवे और रक्षा मंत्रालय के बाद सबसे बड़ा भूस्वामी वक्फ बोर्ड ही है। इसलिए हम इन सारे सवालों का जवाब जानने की कोशिश करेंगे। सबसे पहले यह जान लेना जरूरी है कि भारत में इस्लाम की आमद के साथ वक्फ के उदाहरण मिलने लगे थे। दिल्ली सल्तनत के वक्त से वक्फ संपत्तियों का लिखित जिक्र मिलने लगता है। मुगल शासन काल में क्योंकि ज्यादातर संपत्ति राजा महाराजाओं के पास ही होती थी, इसीलिए प्राय: वही वाकिफ होते, और वक्फ कायम करते जाते। जैसे कई बादशाहों ने मस्जिदें बनवाईं, वो सारी वक्फ हुईं और उनकेप्रबंधन के लिए स्थानीय स्तर पर ही इंतजामिया कमेटियां बनती रहीं।
इसके पश्चात 1947 में आजादी के बाद पूरे देश में पसरी वक्फ संपत्तियों के लिए एक स्ट्रक्चर बनाने की बात उठने लगी। इस तरह 1954 में संसद ने वक्फ एक्ट 1954 पास किया। इसी के नतीजे में वक्फ बोर्ड बना। ये एक ट्रस्ट था, जिसके तहत सारी वक्फ संपत्तियां आ गईं। 1955 में यानी कानून लागू होने के एक साल बाद, इस कानून में संशोधन कर राज्यों के लेवल पर वक्फ बोर्ड बनाने का प्रावधान किया गया। इसके बाद साल 1995 में नया वक्फ बोर्ड एक्ट आया। 2013 में मनमोहन सरकार के समय इसमें कई संशोधन करके इसे पूरी तरह से तानाशाही रूप दे दिया गया। फिलहाल जो व्यवस्था है, वो इन्हीं कानूनों और संशोधनों के तहत चल रही है। इसमें सबसे खतरनाक संशोधन यह था कि वक्फ बोर्ड जिस किसी सम्पत्ति को अपना बता दे तो फिर वह उसकी बिना किसी जांच पड़ताल के हो जाती है और जिसकी सम्पत्ति छीनी जाती है, वह कोर्ट या पुलिस के पास भी अपनी फरियाद लेकर नहीं जा सकता है। प्राय: मुस्लिम धर्मस्थल वक्फ बोर्ड एक्ट के तहत ही आते हैं लेकिन इसके अपवाद भी हैं। जैसे यह कानून अजमेर शरीफ दरगाह पर लागू नहीं होता। इस दरगाह के प्रबंधन के लिए दरगाह ख्वाजा साहिब एक्ट 1955 बना हुआ है। वक्फ बोर्ड को मिली असीमित शक्तियों पर अंकुश लगाने और बेहतर प्रबंधन व पारदर्शिता के लिए मोदी सरकार ने आठ अगस्त 2024 को लोकसभा में दो विधेयक पेश किये। पहले विधेयक के जरिए सरकार मुसलमान वक्फ अधिनियम 1923 को समाप्त करने को कटिबद्ध लगती है, जबकि दूसरे से मुसलमान वक्फ अधिनियम 1995 में 44 संशोधन किए जाएंगे। सरकार इस विधेयक में बोहरा-आगाखानी के लिए अलग वक्फ बोर्ड का प्रावधान करेगी और किसी की संपत्ति को वक्फ की संपत्ति घोषित करने के अधिकार से संबंधित धारा 40 को समाप्त कर देगी।
मोदी सरकार ने वक्फ बोर्ड संशोधन विधेयक संसद में पेश करने से एक दिन पहले कहा कि विधेयक लाने का उद्देश्य वक्फ संपत्तियों का बेहतर प्रबंधन और संचालन करना है। विधेयक पेश किए जाने के बाद सरकार ने इसे व्यापक विमर्श और सर्वसम्मति के लिए प्रवर समिति को भेज दिया है। दूसरे विधेयक में वक्फ अधिनियम 1995 का नाम बदलकर एकीकृत वक्फ प्रबंधन, सशक्तिकरण, दक्षता विकास अधिनियम करने का प्रावधान है। इसमें वक्फ बोर्डों के केन्द्रीय परिषद और ट्रिब्यूनल की संरचना में व्यापक बदलाव लाने का भी प्रावधान है। मसलन केन्द्रीय परिषद और राज्य वक्फ बोर्ड में दो महिलाओं का प्रतिनिधित्व अनिवार्य बनाया जाएगा। इसके अलावा कानून में संशोधन के बाद अब वक्फ ट्रिब्यूनल के आदेश को 90 दिन के अंदर हाईकोर्ट में चुनौती दी जा सकेगी। वक्फ संपत्तियों के सर्वेक्षण के लिए सर्वे कमिश्नर का अधिकार अब जिला कलेक्टर या उसके की ओर से नामित डिप्टी कलेक्टर के पास होगा।
विधेयक की खास बातों पर नजर डाली जाए तो मोदी सरकार वक्फ अधिनियम, 1923 को वापस लेगी। पारदर्शिता, बेहतर प्रबंधन और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए 44 संशोधन किये जायेंगे, जिसके द्वारा आगाखानी व बोहरा वक्फ को परिभाषित किया जाएगा। पांच साल तक मुस्लिम धर्म का पालन करने वालों की संपत्ति वक्फ हासिल कर सकेगा। वक्फ के धन से विधवा, तलाकशुदा व अनाथों के कल्याण के लिए सरकार के सुझाए तरीके से काम करने होंगे। संपत्ति वक्फ को देने के दौरान उत्तराधिकारियों और महिलाओं के अधिकार नहीं छीने जा सकेंगे। वहीं रजिस्टर्ड वक्फ संपत्तियों को 6 माह में पोर्टल पर डालना होगा। वक्फ संपत्तियों से मिलने वाले भू राजस्व, सेस, उसका रेट, कर, आय, कोर्ट मामले की जानकारी भी बतानी होगी। सरकारी संपत्ति को वक्फ अपनी संपत्ति घोषित नहीं कर पाएगा। वक्फ बोर्ड में जो बदलाव होंगे, उसके अनुसार मुसलमान वक्फ कानून 1923 खत्म होगा।
वक्फ अधिनियम होगा एकीकृत वक्फ प्रबंधन कानून, धारा 40 होगी खत्म, जिससे किसी की संपत्ति को वक्फ की संपत्ति घोषित करने का अधिकार मिल जाता है। दरअसल, केन्द्र की मोदी सरकार यूपीए-2 में मनमोहन सिंह सरकार ने 2013 में वक्फ अधिनियम में संशोधन कर वक्फ बोर्ड को किसी की भी संपत्ति को अपनी संपत्ति घोषित करने और वक्फ बोर्ड के निर्णयों को किसी भी कोर्ट में चुनौती देने का अधिकार खत्म करने जैसे बदलाव किए गए थे। सरकारी सूत्रों के अनुसार तब से मुस्लिम समाज से जुड़े व्यक्तियों व संगठनों की करीब 60 हजार शिकायतें सरकार के पास लंबित हैं। इन सभी शिकायतों में वक्फ बोर्ड में भारी अनियमितता व जबरन संपत्ति पर कब्जा जैसी समान बातें थीं। संशोधन विधेयक में वक्फ परिषद में भी बदलाव का प्रावधान है। मसलन परिषद के अध्यक्ष अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री होंगे। तीन सांसद, मुसलमानों के तीन प्रतिनिधि, मुस्लिम कानून के तीन जानकार, सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट के दो पूर्व जज, एक वरिष्ठ वकील, देश की चार नामचीन हस्तियां व केन्द्र सरकार के अतिरिक्त या संयुक्त स्तर के अधिकारी व दो महिलाएं इसकी सदस्य होंगी।
उधर, विपक्षी दलों ने बिल पेश होने से पहले ही सरकार से आग्रह किया कि वक्फ (संशोधन) विधेयक को पेश किये जाने के बाद इस पर विचार करने के लिए संसद की स्थायी समिति को भेजा जाए। वहीं सरकार ने कहा कि कार्य मंत्रणा समिति (बीएसी) की भावना का आकलन के बाद वह इस पर फैसला करेगी। इसी क्रम में मोदी सरकार ने बहुचर्चित वक्फ अधिनियम में संशोधन वाला विधेयक लोकसभा में पेश करने के बाद विपक्ष की मांग पर ध्यान देते हुए उसे संयुक्त संसदीय समिति के पास भेजने का जो फैसला लिया, वह इस दृष्टि से सही कदम है, क्योंकि इस समिति में उस पर विस्तार से और संभवत: दलगत राजनीति से ऊपर उठकर विचार हो सकेगा। इससे सबसे बड़ा लाभ यह होगा कि विपक्ष के पास यह बहाना नहीं रह जाएगा कि सरकार ने एक महत्वपूर्ण विधेयक बिना बहस आनन-फानन पारित करा लिया और उसकी कोई बात नहीं सुनी गई।
ध्यान रहे कि मोदी सरकार के पहले और दूसरे कार्यकाल में अनेक विधेयकों के संसद से पारित होने और उनके कानून में परिवर्तित हो जाने के बाद विपक्ष ने यह माहौल बनाया कि उन पर संसद में चर्चा नहीं होने दी गई। ऐसे कुछ कानूनों को लेकर जनता को बरगलाने का भी काम किया गया। इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि नागरिकता संशोधन कानून यानि सीएए और फिर कृषि संबंधी तीन कानूनों को लेकर विपक्ष ने अपने संकीर्ण राजनीतिक हितों के लिए किस तरह जनता को गुमराह किया। देखना है कि संयुक्त संसदीय समिति वक्फ संशोधन अधिनियम पर किस तरह विचार करती है और कोई आम सहमति कायम पाती है या नहीं? फिलहाल तो संसदीय समिति में टकराव ज्यादा होता नजर आ रहा है। संसदीय समिति में शामिल विपक्षी नेता जेपीसी में ऐसा बर्ताव कर रहे हैं जिससे कि मुस्लिम वोटरों के बीच उनकी छवि और मजबूत हो ताकि वह इनके वोटो के लिए और ज्यादा सौदा कर सके। कुल मिलाकर इस समय वक्फ बोर्ड एक बेलगाम घोड़े की तरह दौड़ रहा है, जिस पर नकेल डालना जरूरी है।
बिहार में पूरे गांव पर ही ठोक दिया दावा
एक तरफ मोदी सरकार वक्फ बोर्ड के पर कतरने की तैयारी कर रही है तो दूसरी तरफ बिहार में बेखौफ वक्फ बोर्ड गुंडागर्दी के सहारे एक गांव पर कब्जा करने पर उतारू है। बिहार की राजधानी पटना से 30 किलोमीटर दूर गांव फतुहा में सुन्नी वक्फ बोर्ड ने कई परिवारों की नींद हराम कर दी है। दरअसल, वक्फ बोर्ड ने गांव के हिन्दू परिवारों को नोटिस जारी कर 30 दिनों के भीतर घर खाली करने के लिए कहा है। सुन्नी वक्फ बोर्ड के इस मनमाने आदेश से गांव के लोग काफी परेशान हैं और उनेके अंदर इसे लेकर काफी आक्रोश भी है। बता दें कि वक्फ बोर्ड की मनमानी और गुंडागर्दी से न सिर्फ फतुहा गांव के लोग बल्कि पूरा इलाका परेशान है। उधर, वक्फ बोर्ड का कहना है कि यह जमीन कब्रिस्तान की है। गांव वालों ने वक्फ बोर्ड के दावे को गलत बताया है और कहा है कि उनके पास जमीन के सभी कागजात हैं। मामला जिलाधिकारी तक पहुंच गया है और उन्होंने जांच के आदेश दे दिए हैं। यह मामला केन्द्र में मोदी सरकार द्वारा लाए गए वक्फ बोर्ड संशोधन बिल संसद में पेश करने के बाद सामने आया है।