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देवभूमि में सख्त भूू-कानून से भूू-माफिया पर नकेल

सख्त फैसले लेने के लिए मशहूर मुख्यमंत्री पुष्कार सिंह धामी ने भू-कानून में क्रान्तिकारी बदलाव किए हैं। इसके हिसाब से दूसरे राज्यों के लोग उत्तराखंड के पहाड़ों पर पहले की तरह 250 वर्गमीटर जमीन पर अपना आशियाना बना सकते हैं लेकिन परिवार के अन्य सदस्यों के नाम से जमीन नहीं खरीद सकते। कृषि बागवानी के लिए भूमि की सीधी खरीद पर अब धामी सरकार ने रोक लगा दी है। धामी सरकार को इतने सख्त फैसले आखिर क्यों लेने पड़े? पहाड़ पर जमीन खरीदने के लिए बाहरी लोगों ने आखिर क्या चालबाजियां की थीं? पढ़िए ‘दस्तक टाइम्स’ के प्रधान संपादक रामकुमार सिंह की यह रिपोर्ट।

उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने जनभावनाओं को भांपते हुए भू-कानून पर बड़ा कदम उठाया है। इसकी मांग लंबे अरसे से की जा रही थी। इसके लिए आंदोलन चल रहा था लेकिन कोई सरकार इसमें हाथ नहीं डालना चाहती थी। उत्तराखंड में भू-सुधार का वादा कर फिर सत्ता में आई सीएम पुष्कर सिंह धामी सरकार की टीम पिछले तीन साल से इस पर काम कर रही थी। सरकार के सामने चुनौती थी कि ऐसा भू-कानून लाया जाए जिससे राज्य में होने वाला निवेश भी प्रभावित न हो और निजी फायदों के लिए पहाड़ों की जमीन का होने वाला दुरुपयोग भी रोका जा सके। जनसांख्यिकीय बदलाव के खतरे को भी संयमित किया जाए और जमीनों की ख़रीद-फ़रोख़्त पर भी कड़ी निगरानी रखी जा सके। यह एक मुश्किल टास्क था लेकिन मजबूत इरादे और प्रबल इच्छा शक्ति के चलते युवा सीएम पुष्कर सिंह धामी की सरकार ने यह कर दिखाया। संशोधित कानून लाकर धामी सरकार अर्थव्यवस्था और पारिस्थितिकी के बीच संतुलन बनाए रखने में कामयाब रही है। सरकार ने तय कर दिया है कि दूसरे राज्यों के व्यक्ति अब प्रदेश के हरिद्वार और ऊधर्मंसह नगर के अलावा अन्य जिलों में 250 वर्गमीटर से अधिक भूमि नहीं खरीद पाएंगे। निवेश के लिए जमीन दी जाएगी लेकिन पूरी जांच पड़ताल के बाद। मैदान वालों के लिए उत्तराखंड के हरे-भरे पहाड़ हमेशा से आकर्षण का केन्द्र रहे हैं। घर बना कर रहने और व्यापार-कारोबार व उद्योग-धंधों के लिए भी पहाड़ों की जमीन पर लोगों की नज़र रही है।

उत्तर प्रदेश से अलग होकर राज्य बनने के बाद भी उत्तराखंड में यूपी का ही कानून ‘उत्तर प्रदेश जमींदारी उन्मूलन और भूमि व्यवस्था सुधारअधिनियम’ अब तक चल रहा था। शुरू में उत्तराखंड में जमीन ख़रीद-फ़रोख़्त को लेकर कोई पाबंदियां नहीं थीं, जिसकी वजह से मैदान के धनाढ्य लोगों ने नए-नए बने पहाड़ी राज्य के सीधे-सादे लोगों से कौड़ियों के भाव खूब जमीनें खरीदीं। पहली बार साल 2003 में एनडी तिवारी की सरकार ने उत्तर प्रदेश जमींदारी उन्मूलन और भूमि व्यवस्था सुधार अधिनियम, 1950 (अनुकूलन एवं उपांतरण आदेश 2001) अधिनियम की धारा-154 में संशोधन किया। इसमें बाहरी लोगों को आवासीय उपयोग के लिए 500 वर्गमीटर से ज्यादा भूमि खरीदने पर रोक और कृषि भूमि की खरीद पर सशर्त प्रतिबंध लगाया गया। 12.5 एकड़ तक कृषि भूमि खरीदने की अनुमति देने का अधिकार जिलाधिकारी को दिया गया था। चिकित्सा, स्वास्थ्य, औद्योगिक उपयोग के लिए भूमि खरीदने के लिए सरकार से अनुमति लेना अनिवार्य किया गया। तिवारी सरकार ने यह प्रतिबंध भी लगाया था कि जिस परियोजना के लिए भूमि ली गई है, उसे दो साल में पूरा करना होगा। तय हुआ कि बाद में परियोजना समय से पूरी न होने पर कारण बताने पर ही विस्तार दिया जाएगा।

खरीद लिए पहाड़ के पहाड़
लेकिन इस कानून के बावजूद उत्तराखंड में नियमों को ताक पर रखकर बड़े पैमाने पर हो रही भूमि की ख़रीद-फ़रोख्त जारी रही। जनरल बीसी खंडूरी की सरकार ने वर्ष 2007 में भू-कानून में संशोधन कर उसे थोड़ा और सख्त बना दिया। सरकार ने आवासीय भूमि खरीद की सीमा 500 से घटाकर 250 वर्गमीटर कर दी लेकिन करीब दस साल बाद 2018 में त्रिवेंद्र सरकार ने कानून में संशोधन कर उसे और उदार बना दिया। उत्तराखंड में उद्योग स्थापित करने के मकसद से पहाड़ में जमीन खरीदने की अधिकतम सीमा और किसान होने की बाध्यता खत्म कर दी गई। कृषि भूमि का भू-उपयोग बदलना आसान कर दिया गया। इसमें पहले पर्वतीय फिर मैदानी क्षेत्र भी शामिल किए गए। सबसे ज्यादा दुरुपयोग उस धारा का हुआ जिसमें कोई भी बाहरी व्यक्ति डीएम की इजाजत लेकर 12.5 एकड़ तक कृषि भूमि खरीद सकता था। इससे उत्तराखंड में जमीन की अंधाधुंध खरीद शुरू हो गई। बाहरी लोगों ने स्थानीय लोगों से सस्ते दामों पर खेती की जमीन खरीद कर पहाड़ों पर बड़े-बड़े फार्म हाउस बनवा लिए। तत्कालीन त्रिवेंद्र सरकार का तर्क था कि तराई क्षेत्रों में औद्योगिक प्रतिष्ठान, पर्यटन गतिविधियों, चिकित्सा तथा चिकित्सा शिक्षा में विकास के लिए निर्धारित सीमा से अधिक भूमि की मांग है। इसकी वजह से सरकार के पास निवेशकों के कई प्रस्ताव लंबित थे। तत्कालीन सरकार ने उत्तर प्रदेश जमींदारी उन्मूलन और भूमि व्यवस्था अधिनियम व्यवस्था 1950 में बदलाव करते हुए कृषि और बागवानी की भूमि पर उद्योग स्थापित करने की छूट दे दी। बाहरी लोगों ने होटल, रिजॉर्ट, उद्यान खेती के नाम पर पहाड़ पर खूब जमीनें खरीदीं। कइयों ने तो उद्योग के नाम पर पहाड़ के पहाड़ खरीद लिए। केवल नाम के होटल, रेस्त्रां खोलकर वे बाकी की जमीन के मालिक बन बैठे। जो कभी इन खेतों के मालिक थे, वह अपनी ही जमीन पर नौकर बन गए। खेती योग्य जमीन कम होने लगी। इसे लेकर स्थानीय लोगों में काफी गुस्सा था।

तीन साल की मेहनत
लम्बे समय से चली आ रही भू-कानून की इन विसंगतियों को भांपते हुए सीएम धामी ने सरकार गठन के साथ सक्रियता दिखाई। साल 2022 में मुख्यमंत्री पुष्कर्र ंसह धामी ने पूर्व मुख्य सचिव सुभाष कुमार की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया। कमेटी ने राज्य में जमीन खरीदने के मानकों को कड़ा करने, राज्य के प्रत्येक भूमिधर को भूमिहीन होने से बचाने, निवेश के नाम पर ली जाने वाली जमीन पर लगने वाले उद्यम में राज्य के 70 प्रतिशत लोगों को रोजगार देने, प्रदेश में 12.50 एकड़ से अधिक भूमि के आवंटन पर रोक लगाने समेत कुल 23 सिफारिशें की थीं। इनमें तीन सिफारिशें सबसे अहम थीं। पहली अहम सिफारिश थी कि पर्वतीय क्षेत्रों में भूमि की अंधाधुंध खरीद पर रोक लगाने के लिए ज़िलाधिकारी से इजाजत लेकर साढ़े 12 एकड़ भूमि की खरीद के प्रावधान को रद्द किया जाए। कमेटी की दूसरी अहम सिफारिश थी कि पर्वतीय क्षेत्रों में राज्य से बाहर के लोगों को कृषि एवं बागवनी की भूमि को उद्योग स्थापित करने के लिए खरीदने की छूट को भी नियंत्रित किया जाए। और तीसरी, पहाड़ों पर आवास के लिए 250 वर्ग मीटर भूमि खरीद का दुरुपयोग रोका जाए क्योंकि इसमें नियमों के उल्लंघन के सैकड़ों मामले कमेटी के सामने आए थे। कमेटी की सिफारिशों से इतर धामी सरकार ने भू-कानून उल्लंघन की जांच भी शुरू करा दी। इस जांच में भू-कानून उल्लंघन के 599 मामले सामने आए हैं, जिनमें से 572 मामलों में न्यायालय में वाद चल रहे हैं, जबकि अन्य निस्तारित हो चुके हैं। इस अभियान के दौरान 9.47 एकड़ भूमि सरकार में निहित की जा चुकी है।

भू-माफिया पर नकेल
भू-़कानून कमेटी की इन सिफारिशों का गहनता से अध्ययन करने के बाद धामी सरकार पिछले महीने अपने बजट सत्र में भू-सुधार कानून में संशोधन का बिल सामने लाई है। धामी सरकार ने सबसे पहले त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार की ओर से लागू किए गए उस भू-कानून को विलोपित कर दिया जिसमें उद्योगों, शिक्षण संस्थानों की स्थापना के साथ ही कृषि और बागवानी के लिए पर्वतीय क्षेत्रों में 12.5 एकड़ भूमि की खरीद की व्यवस्था थी। नई व्यवस्था में अब राज्य के बाहर के व्यक्ति को निवेश के लिए जरूरी भूमि अवश्य दी जाएगी, लेकिन इसके लिए उसे शासन स्तर पर मंजूरी लेनी होगी। निवेशक को रजिस्ट्रार को शपथ पत्र देना होगा कि वह जिस मकसद के लिए जमीन खरीद रहे हैं, उसका उपयोग उसी के लिए करेंगे। अब तक कोई भी राज्य से बाहर का व्यक्ति आवासीय उपयोग के लिए 250 वर्ग मीटर तक भूमि खरीद सकता था लेकिन इसका दुरुपयोग करते हुए लोगों ने अपने परिवार के अन्य सदस्यों के नाम से अपनी जमीन के सटे दूसरे भूभाग पर 250 वर्गमीटर जमीन खरीदनी शुरू कर दी। इस तरह आवासीय उपयोग के नाम पर एक ही व्यक्ति 1000-2000 वर्ग मीटर की जमीन का मालिक बन बैठा। अब नए कानून में तय किया गया है कि यह रियायत परिवार के अन्य सदस्यों को नहीं दी जाएगी।

राज्य के बाहर के व्यक्ति को आवासीय उपयोग के लिए 250 वर्ग मीटर जमीन ही मिल पाएगी। अगर किसी भी व्यक्ति ने जमीन ख़रीद-फ़रोख़्त में नियमों के विरुद्ध कार्य किया तो वह भूमि सरकार में निहित हो जाएगी। कृषि और बागवानी के लिए भूमि खरीद के प्रावधान को हिमाचल प्रदेश से भी कड़ा कर दिया गया है। बता दें कि हिमाचल प्रदेश में कैबिनेट की मंजूरी के बिना कोई बाहरी व्यक्ति एक इंच जमीन भी नहीं खरीद सकता। कांग्रेस के पूर्व के कार्यकाल में प्रियंका गांधी को भी हिमाचल में आवासीय मकसद से जमीन खरीदने की इजाजत राज्य की कैबिनेट से लेनी पड़ी थी। हालांकि वहां कोई बाहरी व्यक्ति स्थानीय आवास विकास या बिल्डर से फ्लैट जरूर खरीद सकता है। इसके लिए सरकार से इजाजत लेने की आवश्यकता नहीं है। जैसा कि मुख्यमंत्री पुष्कर् सिंह धामी ने कहा- ‘राज्य में जमीनों को भू-माफियाओं से बचाने, प्रयोजन से इतर उनका दुरुपयोग रोकने की जरूरत को समझते हुए कानून में बदलाव किया जा रहा है। इस बदलाव को लाने से पहले हमारे समक्ष भौगोलिक, सांस्कृतिक, निवेश एवं रोजगार को लेकर भी चुनौतियां थीं। पिछले कुछ सालों में देखा गया कि विभिन्न उपक्रम स्थापित करने, स्थानीय लोगों को रोजगार देने के नाम पर जमीन खरीदकर उसे अलग प्रयोजनों में इस्तेमाल किया जा रहा था। इस संशोधन से न केवल उन पर रोक लगेगी, बल्कि असल निवेशकों व भू-माफिया के बीच के अंतर को पहचानने में भी कामयाबी मिलेगी।

नए कानून के तहत बदलाव

  • हरिद्वार, ऊधर्मंसह नगर को छोड़कर बाकी 11 जिलों में राज्य के बाहर के व्यक्ति कृषि और बागवानी के लिए भूमि नहीं खरीद सकेंगे।
  • हरिद्वार व ऊधर्मंसह नगर में कृषि-औद्यानिकी की जमीन खरीदने के लिए जिलाधिकारी के स्तर से अनुमति के बजाय अब इसके लिए शासन स्तर से ही अनुमति लेनी पड़ेगी ।
  • नगर निकाय क्षेत्रों को छोड़कर बाकी जगहों पर बाहरी राज्यों के व्यक्ति जीवन में एक बार आवासीय प्रयोजन के लिए 250 वर्ग मीटर भूमि खरीद सकेंगे। इसके लिए उन्हें अब अनिवार्य शपथपत्र देना होगा।
  • 11 जनपदों में 12.5 एकड़ भूमि की र्सींलग खत्म कर दी गई है। हरिद्वार-ऊधर्मंसह नगर में भी 12.5 एकड़ भूमि खरीदने से पहले जिस प्रयोजन के लिए खरीदी जानी है, उससे संबंधित विभाग को जरूरी प्रमाणपत्र जारी करना होगा। तब शासन स्तर से अनुमति मिल सकेगी।
  • खरीदी गई भूमि का निर्धारित से अन्य उपयोग नहीं करने के संबंध में क्रेता को रजिस्ट्रार को शपथपत्र देना होगा। भू-कानून का उल्लंघन होने पर भूमि सरकार की होगी।
  • पोर्टल के जरिए भूमि खरीद प्रक्रिया की निगरानी होगी। सभी जिलाधिकारी राजस्व परिषद और शासन को नियमित रूप से भूमि खरीद से जुड़ी रिपोर्ट भेजेंगे।
  • नगर निकाय सीमा के अंतर्गत भूमि का उपयोग केवल निर्धारित भू-उपयोग के अनुसार ही किया जा सकेगा।
  • औद्योगिक प्रयोजन के लिए जमीन खरीद के नियम यथावत रहेंगे।

भू-कानून : कब क्या हुआ

  • वर्ष 2002 में पहली बार निर्वाचित एनडी तिवारी सरकार ने कानून सख्त बनाने की दिशा में कदम उठाए।
  • वर्ष 2003 में बाहरी व्यक्तियों के लिए आवासीय उपयोग के लिए 500 वर्ग मीटर भूमि खरीद की सीमा तय की गयी। इसके साथ ही12.5 एकड़ तक कृषि भूमि खरीद की अनुमति देने का अधिकार डीएम को दिया गया।
  • वर्ष 2007 में बाहरी व्यक्तियों के लिए 500 वर्ग मीटर भूमि खरीद की अनुमति घटाकर 250 वर्ग मीटर की गई।
  • वर्ष 2018 में व्यावसायिक व औद्योगिक प्रयोजन के लिए 12.5 एकड़ के दायरे को बढ़ाकर 30 एकड़ किया गया।
  • वर्ष 2022 में भू-कानून को लेकर पूर्व मुख्य सचिव सुभाष कुमार की अध्यक्षता में समिति गठित हुई।
  • वर्ष 2022 में सुभाष कुमार समिति ने सरकार को रिपोर्ट सौंपी।
  • वर्ष 2023 में अपर मुख्य सचिव राधा रतूड़ी की अध्यक्षता में चार सदस्यीय प्रारूप समिति का गठन हुआ।
  • वर्ष 2025 में (उत्तर प्रदेश जमींदारी उन्मूलन एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम) संशोधन विधेयक, 2025 को मंजूरी मिली।

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