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कांग्रेस के लिए ” तुरुप के पत्ते ” की जगह “कमजोर कड़ी” साबित हुए भूयपंद्र सिंह हुड्डा

नई दिल्ली: हरियाणा में कांग्रेस जिस भूपेंद्र सिंह हुड्डा को अपने लिए तुरुप का पत्ता मान रही थी उनकी कट्टर जाट वाली छवि ही कांग्रेस के लिए चुनाव में कमजोर कड़ी साबित हुई। हुड्डा 2005 से 2014 तक हरियाणा के मुख्य मंत्री थे। इस दौरान हरियाणा की राजनीती में सिर्फ जाटों की ही तूती बोलती थी और अन्य समुदायों को सत्ता में पूरी हिस्सेदारी नहीं थी। राज्य की सत्ता में जाटों के प्रभुत्व के कारण अन्य समुदायों से जुड़े लोगों को काम करवाने के लिए कड़ी मशक्क्त करनी पड़ती थी। हरियाणा के वोटरों ने हुड्डा के शासन का 10 साल का दौर देखा था। इस चुनाव में जब कांग्रेस ने हरियाणा का चुनाव पूरी तरह से हुड्डा के हवाले कर दिया तो इस से गैर जाट वोटरों में भय उत्पन्न हुआ और व भाजपा के पीछे गोलबंद हो गए।

हरियाणा विधान सभा चुनाव में कांग्रेस की टिकटों के आबंटन से लेकर प्रचार की मुहिम तक सारा प्रबंधन हुड्डा के इर्द गिर्द ही घूमता रहा और हुड्डा केंद्रित चुनाव ही कांग्रेस को भारी पड़ गया। पिछले चुनाव के दौरान कांग्रेस ने 31 सीटें जीती थी। उस दौरान भूपेंद्र सिंह हुड्डा को कांग्रेस ने पूरी तरह से कमान नहीं दी थी और हुड्डा पार्टी है कमान को इस बात का एहसास करवाने में कामयाब रहे कि यदि पिछले चुनाव के दौरना ही टिकटों का आबंटन उनके हिसाब से होता और चुनाव प्रबंधन उनके मुताबिक किया जाता तो नतीजे अलग हो सकते थे।

आपको बता दें कि इस चुनाव में भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने हाई कमान को अपनी शर्तों पर टिकटें बाँटने पर मजबूर किया और अधिकतर टिकट उनकी मर्जी के मुताबिक बांटे गए और पार्टी के अन्य नेता नजर अंदाज कर दिए गए। इतना ही नहीं चुनाव प्रचार का पूरा काम भूपेंद्र सिंह हुड्डा के मुटबैक ही हो रहा था और कांग्रेस चुनाव में पूरी तरह से भूपेंद्र सिंह हुड्डा पर निर्भर हो आकर रह गई थी। हालाँकि राहुल गाँधी ने पार्टी के विभिन्न नेताओं को एक मंच पर ला कर कांग्रेस में एकजुटता लाने का सन्देश दिया लेकिन यह प्रयास पूरी तरह से कामयाब नहीं हुआ और पार्टी के नेता पूरे मन से पार्टी के लिए काम नहीं कर पाए ।

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