बड़ी खबर! सिसोदिया की मुश्किलें बढ़ी, सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की जमानत याचिका
नई दिल्ली: हाल ही में सामने आई बड़ी खबर के मुताबिक, उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) ने कथित दिल्ली आबकारी नीति घोटाला (Delhi Liquor Scam Case) से संबंधित भ्रष्टाचार, धन शोधन के मामलों में पूर्व उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया (Deputy Chief Minister Manish Sisodia) की जमानत याचिकाएं खारिज कीं।
उच्चतम न्यायालय ने कहा कि अगर सुनवाई की कार्यवाही में देरी होती है तो सिसोदिया कथित दिल्ली आबकारी नीति घोटाला से संबंधित मामलों में तीन महीने में जमानत के लिए आवेदन कर सकते हैं। न्यायमूर्ति संजीव खन्ना एवं न्यायमूर्ति एस. वी. एन. भट्टी की पीठ ने कहा कि उसने जांच एजेंसियों के बयान को रिकॉर्ड किया है कि इन मामलों में सुनवाई छह से आठ महीने में पूरी हो जाएगी। पीठ ने कहा कि अगर सुनवाई की कार्यवाही में देरी होती है तो सिसोदिया तीन महीने में इन मामलों में जमानत के लिए आवेदन कर सकते हैं। शीर्ष अदालत ने अब खत्म हो चुकी दिल्ली आबकारी नीति से संबंधित भ्रष्टाचार और धन शोधन के मामलों में दायर सिसोदिया की दो अलग-अलग नियमित जमानत याचिकाओं पर अपना फैसला सुनाया।
उच्चतम न्यायालय ने 17 अक्टूबर को दोनों याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। सिसोदिया को केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) ने 26 फरवरी को ‘‘घोटाले” में उनकी भूमिका के आरोप में गिरफ्तार किया था। आम आदमी पार्टी (आप) नेता तब से हिरासत में हैं। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने तिहाड़ जेल में पूछताछ के बाद नौ मार्च को सीबीआई की प्राथमिकी से जुड़े धन शोधन के मामले में सिसोदिया को गिरफ्तार किया। सिसोदिया ने 28 फरवरी को दिल्ली कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया था। उच्च न्यायालय ने 30 मई को सीबीआई के मामले में उन्हें जमानत देने से इनकार कर दिया था और कहा था कि उप मुख्यमंत्री और आबकारी मंत्री रहने के कारण वह एक ‘‘हाई-प्रोफाइल” व्यक्ति हैं जो गवाहों को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं।
उच्च न्यायालय ने तीन जुलाई को दिल्ली सरकार की आबकारी नीति में कथित अनियमितताओं से जुड़े धन शोधन के मामले में उन्हें जमानत देने से यह कहकर इनकार कर दिया था कि उनके खिलाफ आरोप ‘‘बहुत गंभीर प्रकृति” के हैं। दिल्ली सरकार ने 17 नवंबर, 2021 को यह नीति लागू की थी, लेकिन भ्रष्टाचार के आरोपों के बीच सितंबर 2022 के अंत में इसे रद्द कर दिया। जांच एजेंसियों के मुताबिक, नयी नीति के तहत थोक विक्रेताओं का मुनाफा पांच फीसदी से बढ़ाकर 12 फीसदी कर दिया गया था।
एजेंसियों ने आरोप लगाया है कि नयी नीति के परिणामस्वरूप गुटबंदी हुई और धन लाभ पाने के लिए शराब लाइसेंस देने में अयोग्य लोगों को लाभ दिया गया। दिल्ली सरकार और सिसोदिया ने किसी भी गलत काम से इनकार किया और नयी नीति से दिल्ली के राजस्व हिस्से में वृद्धि का दावा किया है।