सिंगूर जमीन विवाद में टाटा की बड़ी जीत, बंगाल सरकार से वसूलेंगी 766 करोड़
नई दिल्ली : पश्चिम बंगाल के सिंगूर जमीन विवाद में टाटा को बड़ी जीत मिली है। टाटा ग्रुप की कंपनी टाटा मोटर्स इस विवाद में ₹766 करोड़ वसूलने (to recover)की हकदार है। बता दें कि सिंगूर में टाटा मोटर्स के नैनो प्लांट को ममता बनर्जी से पहले की वामपंथी सरकार ने अनुमति दी थी। इसके तहत बंगाल की जमीन पर लखटकिया कार ‘नैनो’ के उत्पादन के लिए कारखाना स्थापित किया जाना था। तब ममता बनर्जी विपक्ष में थीं और वामपंथी सरकार की नीतियों के खिलाफ थीं। विपक्ष में रहते हुए ममता बनर्जी इस प्रोजेक्ट का विरोध कर रही थीं। इस मुद्दे ने ममता बनर्जी को सत्ता में आने में मदद की थी। ममता बनर्जी ने सत्ता में आते ही कानून बनाकर सिंगूर की करीब 1000 एकड़ जमीन उन 13 हजार किसानों को लौटाने का फैसला किया, जिनसे अधिग्रहण किया गया था।
इस फैसले की जानकारी देते हुए टाटा मोटर्स ने कहा- तीन सदस्यीय पंचाट न्यायाधिकरण ने टाटा मोटर्स लिमिटेड (टीएमएल) के पक्ष में फैसला सुनाया है। टीएमएल अब प्रतिवादी पश्चिम बंगाल औद्योगिक विकास निगम (डब्ल्यूबीआईडीसी) से 11% प्रति वर्ष की दर से ब्याज के साथ 765.78 करोड़ रुपये की राशि वसूलने की हकदार है। बता दें कि डब्ल्यूबीआईडीसी पश्चिम बंगाल सरकार के अधीन है।
सिंगूर के जमीन का विवाद इतना बड़ा था कि टाटा मोटर्स को परियोजना बंद करनी पड़ी। इसके बाद कंपनी गुजरात चली गई और टाटा नैनो के निर्माण के लिए साणंद में एक प्लांट स्थापित किया। हालांकि, टाटा का यह प्रोजेक्ट सफल नहीं रहा।
टाटा मोटर्स ने साल 2011 में ममता सरकार के उस कानून को चुनौती दी थी, जिसके जरिए कंपनी से जमीन छीन ली गई थी। जून 2012 में कलकत्ता उच्च न्यायालय ने सिंगूर अधिनियम को असंवैधानिक घोषित कर दिया और भूमि पट्टा समझौते के तहत कंपनी के अधिकारों को बहाल कर दिया। इसके बावजूद टाटा मोटर्स को जमीन का कब्जा वापस नहीं मिला। इसके बाद राज्य सरकार ने अगस्त 2012 में सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अपील दायर की। अगस्त 2016 में, सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा नैनो परियोजना के लिए भूमि अधिग्रहण को अवैध घोषित किया और निर्देश दिया कि जमीन भूस्वामियों को वापस कर दी जाए।
इसके बाद टाटा मोटर्स ने जमीन के लीज समझौते के एक क्लॉज का हवाला देकर क्षतिपूर्ति की मांग की। इस क्लॉज में था कि जमीन अधिग्रहण को अवैध माना जाता है, तो राज्य कंपनी को साइट पर होने वाली पूंजीगत लागत के लिए क्षतिपूर्ति करेगा। इसके बाद टाटा मोटर्स ने मध्यस्थता की मांग की और अपना दावा दायर किया। अब करीब 7 साल बाद टाटा मोटर्स को जीत मिली है।