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जातीय विद्वेष की नई प्रयोगशाला बनता बिहार

पटना से दिलीप कुमार

बिहार और उत्तर प्रदेश में जाति राजनीति की नई बात नहीं है। जाति विशेष को साधकर चुनाव में जीत का फार्मूला तैयार किया जाता है। यही कारण है कि छोटी-छोटी जातियों की राजनीति करने वाले दल बन गए हैं। बिहार तो राजनीति के लिए जातीय विद्वेष की नई प्रयोगशाला बन गया है। रामचरितमानस पर राज्य के शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर के बयान की आग अभी ठंडी भी नहीं पड़ी कि ठाकुर (क्षत्रिय) जाति को लेकर विवाद शुरू हो गया है। रामचरितमानस को लेकर विवाद खड़ा किया गया। इसके जरिए सवर्णों को निशाना बनाया गया। एक बार फिर सवर्ण ही निशाने पर हैं। यह सारा खेल पिछड़ी व दलित जातियों को लुभाने के लिए हो रहा है। हिंदुओं के वोट को छोटे-छोटे टुकड़ों में बांटकर जीत हासिल करने का फार्मूला खोजा जा रहा है। गांधी जयंती दो अक्टूबर को राज्य में जातियों की गणना की जो रिपोर्ट जारी की गई, उससे तो इस तरह की राजनीति को और भी बल मिला है।

लोकसभा चुनाव से पहले बिहार में जाति की गोलबंदी शुरू हो गई। टीका-टिप्पणी का दौर शुरू हो गया है। किस जाति को किस तरह से साधा जाए, इसकी रणनीति बन रही है। रामचरितमानस के बाद ठाकुर को लेकर विवाद की शुरुआत राजद सांसद मनोज झा ने की। उन्होंने राज्यसभा में ‘ठाकुर का कुआं’ कविता सुनाकर राज्य में ऊंच-नीच को बढ़ाया है। दरअसल, महिला आरक्षण बिल पर सदन में अपनी बात रखते हुए आरजेडी के राज्यसभा सदस्य मनोज झा ने कहा था कि इस बिल को दया भाव की तरह पेश किया जा रहा है। दया कभी अधिकार की श्रेणी में नहीं आ सकती। आखिरी में उन्होंने ओमप्रकाश वाल्मीकि की यह कविता पढ़कर अंदर के ठाकुरों को मारने का आह्वान किया था। इस कविता के माध्यम से जिस तरह ठाकुरों को निशाना बनाया गया, इससे बिहार के ठाकुर नेता नाराज हो गए हैं। इस कविता को इस समय सुनाने का मंतव्य समझना होगा। कविता के अर्थ को भी समझना होगा। ओमप्रकाश वाल्मीकि की लिखित यह कविता इस प्रकार है-

चूल्हा मिट्टी का, मिट्टी तालाब की, तालाब ठाकुर का।
भूख रोटी की, रोटी बाजरे की,
बाजरा खेत का, खेत ठाकुर का।
बैल ठाकुर का, हल ठाकुर का,
हल पर हथेली अपनी, फसल ठाकुर की।
कुआं ठाकुर का, पानी ठाकुर का,
खेत-खलिहान ठाकुर के,
गली-मोहल्ले ठाकुर के, फिर अपना क्या?

इस कविता से साफ है कि इसमें शोषित, वंचित व पिछड़़ी जातियों की बात की जा रही है, जो ऊंची जाति के लोगों के जुल्म के शिकार हैं। यह इन जातियों को वोट के लिए गोलबंद करने की राजनीति है। इसका विरोध भी शुरू हो गया है। बाहुबली आनंद मोहन ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि यह बात कहने के दौरान अगर मैं राज्यसभा में होता तो जीभ खींचकर सभापति के आसन की तरफ उछाल देता। आरजेडी के ही विधायक और आनंद मोहन के बेटे चेतन आनंद ने भी उनके खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। कहा कि आप ब्राह्मण हैं इसलिए आपने ब्राह्मणों के विरोध में कविता नहीं पढ़ी। इस बारे में उप मुख्यमंत्री तेजस्वी मनोज झा के पक्ष में खड़े नजर आए। उन्होंने कहा कि मनोज झा ने किसी जाति की बात नहीं की।

उन्होंने सिर्फ ओमप्रकाश वाल्मीकि की कविता पढ़ी। उनका आशय यह था कि सभी को मौका मिले। इस कविता पर जीभ काटने और गला काटने की बात की जा रही है। बिहार में ठाकुर तो कर्पूरी ठाकुर भी थे। हम अहीर जाति के हैं। इस जाति के लोग यादव, चौधरी, राय और प्रसाद भी अपने नाम से जोड़ते हैं। राजद में जितनी संख्या में राजपूत एमएलए-एमएलसी हैं, उतनी संख्या में भाजपा के पास हैं नहीं। तेजस्वी ने मनोज झा के खिलाफ आनंद मोहन के पुत्र राजद विधायक चेतन आनंद की टिप्पणी पर भी आपत्ति की। कहा कि उन्हें पार्टी फोरम में बात उठानी चाहिए थी। पार्टी अध्यक्ष लालू प्रसाद ने कहा कि मनोज झा विद्वान व्यक्ति हैं। उन्होंने जो कहा है वह बिल्कुल सही है। उनका इरादा राजपूतों या किसी अन्य समुदाय का अपमान करने का नहीं था। दूसरी ओर, जीभ खींचने के बयान पर बिहार की राजनीति में लड़ाई ठाकुर बनाम ब्राह्मण की हो गई है। पूर्व बीजेपी एमएलसी टुन्ना पांडेय ने कहा कि आनंद मोहन चाहते हैं कि ब्राह्मणों पर टिप्पणी करके राजपूत समाज के नेता बन जाएं। आप बहुत बड़े बाहुबली हैं तो ये दिमाग से उतार दीजिए। मेरे जैसा ब्राह्मण अपने पर आ जाएगा तो आपको मसल देगा। राजपूत-ब्राह्मण को बांटकर नेता बनना चाहते हैं। सहरसा में ब्राह्मण ठाकुर लिखते हैं। आप चाहते हैं कि सवर्ण वोट बैंक बंट जाए। उन्होंने कहा कि हिम्मत है तो किसी ब्राह्मण की जीभ खींच कर दिखाइए।

यह है जातिगत लड़ाई का कारण

इस तरह की टिप्पणी की अगर गहराई में जाएं और राज्य में विभिन्न जातियों की जनसंख्या देखें तो साफ समझ में आ जाएगा कि ऐसी राजनीति क्यों की जा रही है। बिहार देश का पहला राज्य है जहां जातियों की गणना कर उसकी रिपोर्ट जारी की गई। इसमें सवर्णों की आबादी 15.52 प्रतिशत, पिछड़ा वर्ग की 27.12 फीसदी, अत्यंत पिछड़ा वर्ग की 36.1 प्रतिशत, अनुसूचित जनजाति की 1.68 फीसदी है। जाति के हिसाब से देखें तो 14.27 प्रतिशत यादव, कुशवाहा 4.2 प्रतिशत, कुर्मी 2.87 प्रतिशत हैं। सवर्णों में भूमिहार 2.86 प्रतिशत, ब्राह्मण 3.65 प्रतिशत, राजपूत 3.45 प्रतिशत और कायस्थ 0.6 प्रतिशत हैं। इस हिसाब से देखा जाए तो करीब साढ़े तीन प्रतिशत ठाकुर अगर राजद से नाराज हो गए तो उसका बहुत फर्क नहीं पड़ने वाला है। राजद यादव व मुसलमानों के 17.70 प्रतिशत वोट मिला दें तो यह संख्या करीब 32 प्रतिशत होती है। इसके साथ ओबीसी व अनुसूचित जाति के वोट को गोलबंद कर वह आसानी से जीत जाएगी। राजद नेता की ओर से इस कविता को कहने की रणनीति कुछ ऐसी ही है।

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