दक्षिणी राज्यों में विशेष ध्यान दे रही भाजपा, आंध्र प्रदेश में बिगाड़ा YSRC का गेम
नई दिल्ली : आंध्र प्रदेश में वाईएसआर कांग्रेस के लिए विधानसभा-लोकसभा चुनाव की पिछली जीतों को कायम रख पाना आसान नहीं होगा। क्योंकि, भाजपा दक्षिणी राज्यों में विशेष ध्यान दे रही है। जबकि, कांग्रेस ने जगनमोहन रेड्डी की बहन को राज्य की चुनावी कमान सौंप दी है। आंध्र प्रदेश उन राज्यों में से एक है, जहां लोकसभा के साथ विधानसभा चुनाव भी होने हैं। आंध्र प्रदेश में पिछली बार लोगों के मतदान का पैटर्न एक जैसा दिखा था। लोकसभा-विधानसभा चुनाव में जगन मोहन रेड्डी के नेतृत्व वाली वाईएसआर कांग्रेस को करीब-करीब बराबर वोट मिले थे।
वाईएसआर कांग्रेस को लोकसभा चुनाव में 49.89 फीसदी मत मिले थे। विधानसभा चुनाव में भी 49.89 फीसदी ही मत मिले थे। हालांकि, इसी पैटर्न पर ओडिशा में हुए चुनावों में बीजद को लोकसभा चुनाव में विधानसभा चुनाव की तुलना में छह फीसदी कम मत मिले थे।
राजनीतिक जानकार मानते हैं कि वाईएसआर कांग्रेस के लिए पिछले प्रदर्शन को दोहराने की चुनौती होगी। इसके कई कारण हैं। इधर, भाजपा ने दक्षिणी राज्यों पर बहुत ज्यादा मेहनत की है तथा जमीनी स्तर पर उसका संगठन भी मजबूत हुआ है। दूसरे, जगनमोहन रेड्डी की बहन वाईएस शर्मिला को हाल में कांग्रेस ने प्रदेश की कमान सौंपी है। शर्मिला की सक्रियता से राज्य में रसातल में पहुंच चुकी कांग्रेस को थोड़ी-बहुत संजीवनी मिल सकती है। पार्टी कुछ सीटों पर वह बेहतर प्रदर्शन कर सकती है।
आंध्र प्रदेश में तेदेपा प्रमुख विपक्षी दल है। पिछले लोकसभा चुनाव में उसे 40 और विधानसभा चुनावों में 39 फीसदी वोट मिले थे। लेकिन, लोकसभा में उसकी सीटें 15 से घटकर तीन और विधानसभा में 102 से घटकर 23 रह गईं। जहां तक कांग्रेस का प्रश्न है, उसने 25 लोकसभा तथा 174 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ा, लेकिन कोई सीट नहीं मिली। वोट भी महज एक फीसदी ही मिल सके।
भाजपा को इन चुनावों में नुकसान हुआ। उसने 2014 में लोकसभा की दो और विधानसभा की चार सीटें जीती थीं। लेकिन, 2019 में उसे कोई सीट नहीं मिली। 2014 में उसे करीब सात फीसदी वोट मिले थे, लेकिन 2019 में उत्तरी राज्यों में भाजपा की लहर के बावजूद आंध्र प्रदेश में उसे एक फीसदी से भी कम वोट मिले। कोई सीट नहीं जीत पाई।
यहां यह महत्वपूर्ण है कि राज्य में वामदलों की मौजूदगी है। यदि वे कांग्रेस के साथ गठबंधन में मिलकर लड़ते हैं तो कुछ सीटों पर फायदा हो सकता है। जहां तक भाजपा का प्रश्न है तो अगर उसका वोट प्रतिशत बढ़ता है तो पार्टी दक्षिणी राज्यों को लेकर रणनीति मजबूत करेगी। दूसरे, राज्य में तेदेपा कमजोर हुई है। यह देखना होगा कि क्या भाजपा तेदेपा की जगह लेने की कोशिश में कामयाब हो पाती है या नहीं।