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लोकसभा चुनावों के लिए एनडीए को मजबूत करना भाजपा की सबसे बड़ी चुनौती

नई दिल्‍ली : विपक्षी एकता की कवायद और हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक में चुनावी हार के बाद लोकसभा चुनावों के लिए एनडीए (NDA) को मजबूत करना भाजपा (BJP) के लिए चुनौती होगी। देश के लगभग एक दर्जन ऐसे बड़े राज्य हैं जहां की राजनीति पर क्षेत्रीय दलों का खासा असर है, और वह नतीजे तय करने में अहम भूमिका निभाते हैं।

एनडीए में अभी छोटे-बड़े लगभग 28 दल हैं, लेकिन प्रभावी भूमिका व बड़े दलों में शिवसेना (शिंदे), अन्नाद्रमुक, लोजपा के दोनों धड़े, अपना दल, आजसू प्रमुख हैं। मौजूदा लोकसभा में ही उसने जदयू और अकाली दल जैसे दो पुराने साथियों को खोया है।

देश में क्षेत्रीय दलों की भूमिका वाले लगभग एक दर्जन राज्यों में कर्नाटक, झारखंड, हरियाणा, पंजाब, पश्चिम बंगाल, बिहार, तमिलनाडु, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, ओडिशा, महाराष्ट्र, जम्मू-कश्मीर, उत्तर प्रदेश और दिल्ली शामिल हैं। दिल्ली समेत इन राज्यों की 390 में से भाजपा के पास 190 सीटें हैं। हालांकि यह तथ्य महत्वपूर्ण है कि भाजपा ने बीते चुनाव में यह सफलता बिहार में जद (यू), महाराष्ट्र में शिवसेना एवं पंजाब में अकाली दल के साथ हासिल की थी। यह दल अब विपक्षी खेमे में हैं। इन तीनों राज्यों में भाजपा को 42 सीटें मिली थी।

सूत्रों के अनुसार, भाजपा लोकसभा चुनाव में अपनी सफलता को दोहराने और उसे बड़ा करने के लिए राजग को मजबूती देगी। ऐसे में वह नए क्षेत्रीय समीकरणों को साधेगी। कुछ नए दल उसके साथ आ सकते हैं, लेकिन इसमें सबसे बड़ी बाधा विपक्षी एकता की है। कई दल ऐसे हैं जो विपक्षी गठबंधन होने पर भाजपा के बजाय दूसरे खेमे को चुन सकते हैं। अभी एनडीए में जो प्रमुख दल हैं उनमें शिवसेना (शिंदे) सबसे बड़ा है। इसके अलावा अपना दल, लोजपा के दोनों धड़े, अन्नाद्रमुक, आरपीआई, आजसू, पीएमके एवं पूर्वोत्तर राज्यों के दल शामिल हैं।

एक तरह से यह एनडीए बनने के बाद से सबसे कमजोर दिखता है, जिसमें भाजपा के अलावा कोई भी प्रभावी दल नजर नहीं आता है। शिवसेना शिंदे को अभी साबित करना है कि वह असली शिवसेना है। अन्नाद्रमुक खुद से ही जूझ रही है और अन्य दल भाजपा पर ज्यादा निर्भर हैं। ऐसे में 2024 में भाजपा के सामने संभावित विपक्षी एकता के साथ एनडीए की मजबूती की भी चुनौती होगी, ताकि राज्यों के समीकरणों को भी साधा जा सके।

देश के जिन प्रमुख राज्यों में क्षेत्रीय दल मजबूत हैं उनमें दक्षिण के कर्नाटक (28 सीटें) में जदएस, तमिलनाडु (39 सीटें) में द्रमुक और अन्नाद्रमुक, आंध्र प्रदेश (25 सीटें) में वायएसआरसीपी और तेलुगुदेशम, तेलंगाना (17 सीटें) में बीआरएस प्रमुख है। यहां पर एनडीए में भाजपा के साथ केवल तमिलनाडु में अन्नाद्रमुक साथ हैं। हालांकि, तमिलनाडु और आंध्र में कुछ क्षेत्रीय दल भी राजग में हैं लेकिन उनकी ताकत पूरे राज्य में न होकर कुछ सीटों तक ही सीमित है। ऐसे में भाजपा के लिए इस क्षेत्र में बड़ी सफलता के लिए मजबूत सहयोगी जरूरी है।

तमिलनाडु में अन्नाद्रमुक बंटवारे के बाद खुद से जूझ रही है। कर्नाटक विधानसभा चुनाव में हार का असर लोकसभा पर भी पड़ सकता है। जिस तरह का ध्रुवीकरण विधानसभा में हुआ वह लोकसभा में भी होता है तो भाजपा को नुकसान हो सकता है। तेलंगाना में भी उसे अपने दम पर जड़े जमाने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी। आंध्र, केरल एवं तमिलनाडु में खुद की ताकत न होने से प्रभावी सहयोगी की जरूरत है। भाजपा का पिछली बार तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में खाता भी नहीं खुला था। तेलंगाना में चार सीटें मिली थी।

पूर्वी क्षेत्र में पश्चिम बंगाल (42 सीटें) में तृणमूल कांग्रेस सबसे बड़ी ताकत है, जो भाजपा के खिलाफ है। यहां पर भाजपा ने अपनी दम पर 18 सीटें जीती थी। बिहार राजग का सबसे मजबूत गढ़ था। यहां की 40 में भाजपा ने जदयू और लोजपा के साथ चुनाव लड़ा था और खुद 17 सीटें जीती थी। अब जदयू विपक्षी खेमे में है और लोजपा उसके साथ तो है, लेकिन बंट चुकी है। ओडिशा में भाजपा ने बीजद को चुनौती देते हुए 21 में से आठ सीटें जीती थी। झारखंड में भाजपा को 14 में से 11 सीट मिली थी। यहां पर झामुमो और आजसू की क्षेत्रीय ताकतें मजबूत हैं। भाजपा के साथ एनडीए में आजसू है।

उत्तर भारत में भाजपा का पुराना सहयोगी पंजाब में अकाली दल से नाता टूट चुका है। पंजाब में (13 सीटें) में भाजपा ने गठबंधन में दो सीटें जीती थी। हरियाणा में भाजपा ने जजपा के साथ मिलकर खुद ही सारी सीटें लड़ी और सभी दस सीटें जीती। जम्मू-कश्मीर में भाजपा को छह में से जम्मू क्षेत्र की तीनों सीटों पर जीत मिली थी। भाजपा के साथ पूर्व में यहां पर नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी सहयोगी रह चुके हैं। आम आदमी पार्टी राष्ट्रीय पार्टी है लेकिन दिल्ली में वह बड़ी ताकत है, लेकिन भाजपा यहां पर सभी लोकसभा सीटें जीत रही है।

महाराष्ट्र (48 सीट) में भाजपा ने पिछली बार शिवसेना के साथ मिलकर खुद 23 सीट जीती थी। अब उसके साथ शिवसेना का टूटा धड़ा है। ऐसे में राजग वहां पर भी कमजोर पड़ा है। यूपी में दो बड़ी क्षेत्रीय ताकतें सपा-बसपा है और भाजपा का भी यह सबसे बड़ा गढ़ है। भाजपा ने बीते दो चुनाव में यहां पर भारी सफलता हासिल की थी। पिछली बार उसने 80 में से 62 सीट जीती थी। यहां पर उसके साथ छोटी पार्टी अपना दल है।

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