झारखण्डदस्तक-विशेष

भाजपा के हुए कोल्हान टाइगर चंपई सोरेन

उदय चौहान

झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और झारखंड मुक्ति मोर्चा के बागी नेता चंपई सोरेन ने भारतीय जनता पार्टी का दामन थाम लिया है। उन्होंने झामुमो की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। अपने इस्तीफे में उन्होंने शिबू सोरेन से कहा कि पार्टी रास्ते से भटक चुकी है और ऐसा कभी नहीं सोचा था कि झामुमो से इस्तीफा देना पड़ेगा। सीएम पद से हटाए जाने के बाद जब चंपई सोरेन ने अपने सारे पत्ते खुलकर स्पष्ट किए थे, तब हेमंत सोरेन कैंप की तरफ से आयी पहली प्रतिक्रिया में कहा गया था कि यह हमारे लिए ग्रेट न्यूज है क्योंकि चंपई सोरेन अब एक्पोज हो चुके हैं। अगर वह निर्दलीय चुनाव लड़ते हो हमारे लिए कठिनाई होती क्योंकि वो जेएमएम के वोट शेयर में सेंध लगा सकते थे।

चंपई ने क्यों थामा भाजपा का दामन!

हाल ही में चंपई ने एक सोशल मीडिया पर पोस्ट के जरिए पार्टी नेतृत्व पर खुद को अपमानित करने का आरोप लगाया था। 18 अगस्त को लिखे एक पोस्ट में चंपई ने कहा, लगातार अपमानजनक व्यवहार से भावुक होकर मैंने सियासत में नए विकल्प को अपनाने का फैसला किया है। चंपई के मुताबिक, 1 जुलाई को अगले दो दिनों के उनके सभी कार्यक्रमों को पार्टी नेतृत्व द्वारा स्थगित करवा दिया गया। इसमें एक सार्वजनिक कार्यक्रम दुमका में था, जबकि दूसरा कार्यक्रम पीजीटी शिक्षकों को नियुक्ति पत्र वितरण करने का था। पूर्व सीएम ने कहा कि उन्हें बताया गया कि गठबंधन द्वारा 3 जुलाई को विधायक दल की एक बैठक बुलाई गई है, तब तक वो सीएम के तौर पर किसी कार्यक्रम में नहीं जा सकते।चंपई ने कहा, विधायक दल की बैठक के दौरान उनसे इस्तीफा मांगा गया और मैंने तुरंत इस्तीफा दे दिया, लेकिन आत्मसम्मान पर लगी चोट से दिल भावुक था। इस बीच कई ऐसी अपमानजनक घटनाएं हुईं, जिसका जिक्र फिलहाल नहीं करना चाहता। इतने अपमान एवं तिरस्कार के बाद मैं वैकल्पिक राह तलाशने हेतु मजबूर हो गया।

पूर्व सीएम ने कहा कि उनके पास तीन विकल्प थे। पहला, राजनीति से संन्यास लेना, दूसरा, अपना अलग संगठन खड़ा करना और तीसरा, इस राह में अगर कोई साथी मिले, तो उसके साथ आगे का सफर तय करना। हालांकि राज्य के सियासी घेरों की बात करें तो यहां चंपई सोरेन के बीजेपी में जाने पर मिलीजुली प्रतिक्रिया आ रही है। कुछ नेताओं का मानना है कि यह जेएमएम को नुकसान पहुंचाएगा क्योंकि चंपई सोरेन पूरे कोल्हान इलाके में अकेले प्रभावशाली नेता हैं। इस कोल्हान में तीन जिले पूर्वी सिंहभूम, पश्विमी सिंहभूम और सरायकेला-खरसावां शामिल हैं। यहां कुल 14 विधानसभा सीटें हैं। सियासी जानकारों का कहना है कि चंपई सोरेन अगर अकेले एलेक्शन लड़ते तो यह उनका ज्यादा समझदारी भरा कदम होता। इस तरह से उन्हें आदिवासियों के बीच ज्यादा समर्थन मिलता, जो इस समय बीजेपी के पक्ष में नहीं हैं। हालांकि, हिमंत सरमा विधानसभा चुनावों में बीजेपी के नैरेटिव को आगे बढ़ाने के लिए चंपई सोरेन का इस्तेमाल करेंगे, जो मौजूदा जेएमएम गठबंधन द्वारा आदिवासी बहुल संथाल परगना क्षेत्र में कथित बांग्लादेशी घुसपैठियों के तुष्टिकरण के खिलाफ है।

भारतीय जनता पार्टी की रणनीति पर काम करेंगे चंपाई सोरेन

हिमंत द्वारा चंपई सोरेन के बीजेपी में शामिल होने के बाद यह स्पष्ट हो गया है कि वह बीजेपी के पार्टी लाईन पर ही आगे बढ़ेंगे। चंपई ने अपने पोस्ट में बांग्लादेशी घुसपैठ की बात भी की। उन्होंने कहा कि इस बारे में सिर्फ बीजेपी सीरियस दिखाई दे रही है औऱ अन्य दल वोटों की खातिर इसे इग्नोर कर रहे हैं। उन्होंने कहा, संथाल परगना में बांग्लादेशी घुसपैठ बहुत बड़ी समस्या बन चुका है। इससे दुर्भाग्यपूर्ण क्या हो सकता है कि जिन वीरों ने जल, जंगल व जमीन की लड़ाई में कभी विदेशी अंग्रेजों की गुलामी स्वीकार नहीं की, आज उनके वंशजों की जमीनों पर ये घुसपैठिए कब्जा कर रहे हैं। इनकी वजह से फूलो-झानो जैसी वीरांगनाओं को अपना आदर्श मानने वाली हमारी माताओं, बहनों व बेटियों की अस्मत खतरे में है। सूत्रों का कहना है कि बीजेपी के नैरेटिव के चंपई ने समर्थन किया है। बीजेपी उनके साथ आदिवासियों के लिए रिजर्व कम से कम 10 एसटी सीटें जीतना चाहती है। राज्य में कुल 81 विधानसभा सीटों में से 28 आदिवासियों के लिए रिजर्व हैं। जेएमएम सूत्रों ने चंपई के बीजेपी में शामिल होने की वजह कुछ मामलों के सिलसिले में केन्द्रीय एजेंसियों द्वारा उन पर डाले जा रहे ‘बढ़ते दबाव’ को बताया है।

झारखंड मुक्ति मोर्चा का क्या कहना है?

जेएमएम का कहना है कि कि चंपई का अपमान संबंधी पोस्ट सिर्फ एक तमाशा था। वो एक्सपोज हो चुके हैं, कभी बीजेपी नेता हेमंत सोरेन की जगह उनके सीएम बनने पर मजाक उड़ा रहे थे। उन्होंने यह भी कहा कि चंपई विधानसभा चुनाव में अपने बेटे के लिए टिकट चाहती थी, जो जेएमएम नहीं देती। वह जननेता भी नहीं हैं और उनके लिए लोगों का समर्थन जुटाना भी आसान नहीं था। उनके बीजेपी में शामिल होने की एकमात्र वजह यह है कि उन्हें एक संगठन का समर्थन और आसानी से फंड उपलब्ध होगा। वहीं जेएमएम के एक विधायक ने माना कि कोल्हान क्षेत्र में उनके प्रभाव को नाकारा नहीं जा सकता है। उन्होंने कहा कि चंपाई कोल्हान में 30-35 वर्षों से काम कर रहे हैं। अगर इस इलाके में किसी को समस्या होती है तो चंपई दादा उसके पास जाते हैं। वह वहां की विधानसभाओं में कई लोगों को जानते हैं और उनकी भावनात्मक स्पीच से लोकल आदिवासी कनेक्ट करते हैं। जेएमएम को उनके खिलाफ इस्तेमाल किए जाने वाले शब्दों का सावधानी से चयन करना चाहिए क्योंकि हम उन्हें विलेन बनाने की स्थिति में नहीं है।

कैसा रहा है चंपई का सियासी सफर?

चंपई सोरेन झारखंड विधानसभा के सदस्य हैं। वर्तमान में वह झारखंड मुक्ति मोर्चा पार्टी से सरायकेला विधानसभा सीट से विधायक हैं। कैबिनेट मंत्री के रूप उन्होंने परिवहन, अनुसूचित जनजाति और अनुसूचित जाति और पिछड़ा वर्ग कल्याण और जल संसाधन, उच्च शिक्षा, तकनीकी शिक्षा विभाग की जिम्मेदारी संभाली। चंपई संयुक्त बिहार में 1991 में उपचुनाव जीतकर पहली बार विधायक बने थे। के.सी. मार्डी के इस्तीफे के बाद चंपई ने बतौर निर्दलीय चुनाव जीता था। फिर 1995 में झामुमो के टिकट पर चुनाव जीतकर विधायक बने थे। वहीं 2005 में चंपई झारखंड विधानसभा के लिए चुने गए थे। इसके बाद 2009 में भी विधायक बने। उन्होंने अर्जुन मुंडा वाली सरकार में सितंबर 2010 से जनवरी 2013 तक विज्ञान और प्रौद्योगिकी, श्रम और आवास मंत्री की जिम्मेदारी संभाली। वहीं जुलाई 2013 से दिसंबर 2014 तक खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति, परिवहन कैबिनेट मंत्री थे। 2014 में फिर झारखंड विधानसभा के लिए चुने गए। वहीं 2019 में भी विधायक बने। इसके साथ ही वह हेमंत सरकार में परिवहन, अनुसूचित जनजाति, अनुसूचित जाति एवं पिछड़ा वर्ग कल्याण मंत्री बन गए। 2019 में चंपई ने अपनी संपत्ति 2.55 करोड़ बताई थी।

हेमंत सोरेन जेल गए तो शिबू सोरेन के विश्वस्त को मिली कमान

31 जनवरी, 2024 को भूमि घोटाले के आरोपों के बाद प्रवर्तन निदेशालय ने हेमंत सोरेन को गिरफ्तार कर लिया। गिरफ्तारी से ऐन पहले उन्होंने पद से त्यागपत्र दिया। इसके बाद 2 फरवरी को सोरेन सरकार में परिवहन मंत्री रहे चंपई सोरेन को मुख्यमंत्री पद मिल गया। वह हेमंत सोरेन के सबसे खास लोगों में माने जाते रहे हैं। चंपई ने शिबू सोरेन के साथ लंबे समय तक काम किया है। इसी साल जुलाई झारखंड में एक बार फिर नेतृत्व परिवर्तन हुआ। अदालत से जमानत मिलने के बाद सोरेन को 28 जून को जेल से रिहा कर दिया गया। चंपई सोरेन ने 3 जुलाई को झारखंड के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। अगले दिन यानी 4 जुलाई को हेमंत सोरेन तीसरी बार झारखंड के मुख्यमंत्री बन गए। नई सरकार में चंपई को कैबिनेट मंत्री के रूप में जल संसाधन, उच्च शिक्षा और तकनीकी शिक्षा जैसे विभागों की जिम्मेदारी मिली।

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