भाजपा की लामबंदी की रणनीति 200 जातीय सम्मेलन करेगी
लखनऊ: भले ही आज के दौर में राजनीतिक समीकरण जाति से परे मुद्दों पर आधारित होने की बात कही जाती है, लेकिन जमीन पर ऐसा नहीं दिखता। यूपी के चुनाव को ही लें तो यहां सपा, बसपा और भाजपा की ओर से जाति आधारित सम्मेलन बड़ी संख्या में किए जा रहे हैं। सत्ताधारी दल भाजपा की ही बात करें तो उसने जातिगत समीकरणों को साधने के लिए राज्य में 200 जातीय सम्मेलन करने का फैसला लिया है। ऐसी ही एक निषाद पार्टी की रैली में खुद अमित शाह शुक्रवार को लखनऊ पहुंचे हैं। निषाद अथवा मल्लाह बिरादरी के वोट यूपी के कुछ जिलों में बड़ी संख्या में हैं और भाजपा गैर-यादव ओबीसी और गैर-जाटव दलित वोटों की लामबंदी की रणनीति में इन्हें अहम मानती रही है।
उत्तर प्रदेश की दलित आबादी में इनकी हिस्सेदारी 14 फीसदी बताई जाती है और पूर्वांचल के गोरखपुर जैसे जिलों में इनकी अच्छी खासी आबादी है। कहा जाता है कि सूबे की करीब 150 सीटों पर इनका दखल है। दरअसल भाजपा ने 2017 में छोटे दलों के साथ गठबंधन की रणनीति अपनाई थी और इसके तहत उसे बड़ी सफलता मिली थी। लेकिन इस बार सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी ने उसका साथ छोड़ दिया है और ओपी राजभर ने सपा के साथ जाने का फैसला लिया है। उनकी भरपाई भाजपा दूसरे राजभर नेताओं को प्रमोट करके कर रही है।
निषाद पार्टी और अपना दल से भाजपा को हैं बड़ी उम्मीदें
इसके अलावा निषाद पार्टी से इसी साल सितंबर में भाजपा ने गठबंधन का ऐलान किया है। इसके अलावा अपना दल की नेता अनुप्रिया पटेल भी भाजपा के साथ हैं, जो केंद्रीय मंत्री भी हैं। वह कुर्मी बिरादरी से आती हैं, जिसकी यूपी के कई जिलों में अच्छी खासी आबादी है। भाजपा ने 2017 में सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी और अपना दल को 19 विधानसभा सीटें दी थीं। हालांकि 2019 में भाजपा को करीब एक दर्जन लोकसभा सीटों पर नुकसान उठाना पड़ा था। ऐसे में 2022 में वह फिर से जातीय समीकरणों को साधने के लिए छोटी पार्टियों को साथ लेकर चल रही है। निषाद पार्टी के जरिए भाजपा दलित समुदाय के बीच अपनी पैठ बनाने की कोशिश में है, जिनके राज्य में 20 फीसदी के करीब वोट हैं।