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Black Business : हलाल के सर्टिफिकेट से ‘हराम’ की कमाई

हलाल सर्टिफिकेट बांटने वाली कम्पनियों और संस्थाओं जमीयत उलमा-एर्-ंहद हलाल ट्रस्ट का कहना है कि दुनियाभर में हलाल प्रोडक्ट की मांग बहुत ज्यादा है, ऐसे में भारतीय कंपनियों के लिए ऐसा सर्टिफिकेट हासिल करना बहुत जरूरी है परंतु यहां भी यह संस्थाएं झूठ का सहारा लेते दिख रही हैं, क्योेंकि योगी सरकार ने निर्यात होने वाले सामानों पर हलाल सार्टिफिकेट पर किसी तरह का प्रतिबंध नहीं लगाया है। अब तो इनके खातों की जांच के बाद ही तमाम सच्चाई सामने आयेगी।

संजय सक्सेना, लखनऊ

उत्तर प्रदेश में हलाल प्रमाण पत्र का मुद्दा सुर्खियों में है। ऊपरी तौर पर हलाल सर्टिफिकेट के मसले पर योगी सरकार की सख्ती कुछ ज्यादा गंभीर नजर आती है, लेकिन जब इसकी तह में जाया जाता है तो पता चलता है कि हलाल सर्टिफिकेट के नाम पर देश की जड़ों को खोखला करने में लगीं देशी-विदेशी ताकतों ने प्रदेश में साम्प्रदाकिता का जहर घोलने का लम्बा-चौड़ा प्लान तैयार कर रखा है। यह मुद्दा सिर्फ सर्टिफिकेट तक नहीं सीमित है, न ही इसका किसी की भावनाओं से कोई खास लेना देना है। हलाल सर्टिफिकेट का काला धंधा कुछ देशविरोधी शक्तियों की दिमागी फितूर का हिस्सा है क्योंकि व्यापार तो बिना हलाल सर्टिफिकेट के सदियों से चल रहा था, कहीं कोई अड़चन नहीं आती थी। सच्चाई यह है कि हलाल सर्टिफिकेट के पीछे तमाम देशविरोधी शक्तियां खड़ी है जिनका नेटवर्क कई मुल्कों तक फैला हुआ है। हलाल सर्टिफिकेट के नाम पर कुछ संस्थाओं की मोटी कमाई हो रही थी। यह धंधा करीब साढ़े चार हजार करोड़ तक पहुंच गया था, कमाई के चक्कर में उन उत्पादों पर भी हलाल का ठप्पा लगाया जा रहा था, जिसका हलाल या हराम से कोई लेनादेना ही नहीं होता है। हाल यह है कि हलाल के ठप्पे के नाम पर चीनी,चाय की पत्ती, तुलसी अर्क से लेकर धनिया पाउडर, एलोवेरा जूस, आई ड्राप र्पैंकग पर हलार्ल ंप्रट उत्पाद खूब बिक रहे हैं। समय की मांग है कि सरकार इस मामले में व्यापक कार्रवाई करते हुए उन लोगों की गिरफ्तारी भी करे जो इस अनैतिक धंधे में लगे हुए थे, जिनकी जड़ें बेहद गहरी हैं। इस धंधे में लगे लोगों को राजनीतिक और शासन-प्रशासन के स्तर पर भी संरक्षण मिला हुआ है। ऐसे लोगों को भी नहीं बख्शा जाना चाहिए।

योगी सरकार ने हलाल प्रकरण की जांच एसटीएफ को सौंप दी है, जिसने कार्रवाई भी शुरू कर दी है। हलाल सर्टिफिकेट वाले उत्पादों की जब्ती भी की जा रही है, लेकिन यह ‘ऊंट के मुंह में जीरा’ से अधिक नहीं है क्योंकि योगी सरकार द्वारा हलाल सर्टिफिकेट को अवैध घोषित किए जाने के बाद ही हलाल सर्टिफिकेट वाले सभी उत्पाद बाजारों से गायब हो चुके हैं। बहराल, ध्यान देने वाली बात यह भी है कि बीते कुछ समय से उत्तर प्रदेश में लगातार आतंकियों की हो रही गिरफ्तारी और उन्हें की जा रह टेरर र्फंंडग की जांच एसटीएफ की टीम पहले से ही कर रही थी। अब हलाल प्रकरण में एसटीएफ जांच की शुरुआत हलाल प्रमाणपत्र बांटने वाली कम्पनियों, ड्रिस्टीब्यूटरों और उत्पाद विक्रेताओं के बैंक खातों की जांच करके भी ‘दूध का दूध, पानी का पानी’ करेगी। खातों की जांच के बाद ही तमाम सच्चाई सामने आयेगी। उधर हलाल सर्टिफिकेट बांटने वाली कम्पनियों और संस्थाओं जमीयत उलमा-एर्-ंहद हलाल ट्रस्ट का कहना है कि दुनियाभर में हलाल प्रोडक्ट की मांग बहुत ज्यादा है, ऐसे में भारतीय कंपनियों के लिए ऐसा सर्टिफिकेट हासिल करना बहुत जरूरी है परंतु यहां भी यह संस्थाएं झूठ का सहारा लेते दिख रही हैं,क्योंकि योगी सरकार ने निर्यात होने वाले सामानों पर हलाल सार्टिफिकेट पर किसी तरह का प्रतिबंध नहीं लगाया है।

हलाल प्रकरण सामने आने के बाद सवाल खड़ा हो रहा है कि खाद्य पदार्थों की गुणवता का पैमाना क्या अब सिर्फ एफएसएसएआई सर्टिफिकेट नहीं रह गया है? एफएसएसएआई का मतलब फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड अथॉरिटी ऑफ इंडिया है, जो स्वास्थ्य मंत्रालय के तहत एक स्वायत्त निकाय है। एफएसएसएआई रजिस्ट्रेशन या लाइसेंस किसी भी ऐसे व्यक्ति या संगठन के लिए अनिवार्य है जो किसी भी प्रकार के फूड बिजनेस से जुड़ा है। प्रत्येक खाद्य व्यवसाय संचालक का कार्य सुरक्षा सुनिश्चित करने और प्रत्येक ग्राहक के लिए संतुष्टि प्रदान करने के लिए खाद्य गुणवत्ता मानकों को बनाए रखना है। नियंत्रण प्रक्रियाओं के निर्माण में, भारतीय फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड अथॉरिटी ऑफ इंडिया महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, लेकिन लगता है कि यह गुजरे जमाने की बात हो गई है। अब तो इस पर हलाल का ठप्पा भी लगा होना जरूरी है। इस हलाल के ठप्पे को सरकार भले नहीं मान्यता देती हो, लेकिन इस्लाम के नाम पर यह काला धंधा खूब फलफूल रहा था। इसका करोबार हजारों करोड़ तक पहुंच गया था और इसका पैसा कुछ धार्मिक ट्रस्टों और संस्थाओं के खाते में जा रहा था, जिसकी कहीं कोई लिखा पढ़ी नहीं होती थी। यह पैसा कहां खर्च होता था, इसकी भी किसी को जानकारी नहीं थी।

आश्चर्यजनक यह है कि उत्तर प्रदेश में वर्षों से हलाल सर्टिफिकेट बांटने का धंधा खूब फलफूल रहा था, लेकिन अब योगी सरकार जागी है। इसी के बाद गत दिनों उत्तर प्रदेश सरकार ने खाद्य पदार्थों सहित अन्य कई सामानों पर पर हलाल सर्टिफिकेट देने वालों के खिलाफ बड़ा ऐक्शन लेते हुए इस धंधे पर पूरी तरह से शिकंजा कसते हुए इस तरह के प्रमाणपत्र बांटने पर रोक लगा दी है। योगी सरकार के ऐक्शन लेते ही रातों-रात हलाल का ठप्पा लगा सामान बाजारों से गायब हो गया, क्योंकि हलाल का ठप्पा लगा सामान बेचने वालों के खिलाफ पुलिस ने कार्रवाई शुरू कर दी थी, जिसमें उम्रकैद तक की सजा का प्रावधान था। मगर सवाल यह भी खड़ा होता है कि यदि हलाल सर्टिफिकेट बांटने का गोरखधंधा लम्बे समय से चल रहा था तो यूपी पुलिस और अन्य खुफिया एजेंसियों और खाद्य विभाग को इसकी भनक कैसे नहीं लग पाई, क्योंकि हलाल पर जो भी कार्रवाई हो रही है, वह लखनऊ के हजरतगंज थाने में लिखाई गई एक एफआईआर के बाद सामने आई है, जो एक व्यक्ति विशेष ने दर्ज कराई थी। इसी के साथ यूपी और उनसे लगे राज्यों में हलाल और हराम को लेकर एक नई बहस छिड़ गई है। कोई हलाल के तार आतंकवाद और अन्य मतांतरण को बढ़ावा देने वाली घटनाओं से जोड़ कर देखा रहा है तो किसी को इसमें साम्प्रदायिता की बू आ रही है। इस पर राजनीति भी खूब हो रही है। हालांकि, हलाल का मामला यूपी तक ही सीमित नहीं है। छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश सहित कई राज्यों में हलाल का ठप्पा लगाये जाने का खेल चल रहा है, लेकिन वहां की सरकारें आंखें मूंदे बैठी हैं, जबकि हिन्दू जनजागृति समिति लगभग दो साल से इसके खिलाफ अभियान चला रही है। इसको लेकर जमशेदपुर में समिति की सेमिनार-गोष्ठी भी हो चुकी है। आज भी कई राज्यों में हलाल सर्टिफिकेट के मिठाई-नमकीन सहित कॉस्मेटिक के उत्पाद बिक रहे हैं।

बताते चलें कि उत्तर प्रदेश में हलाल का करोबार लम्बे समय से व्यापक स्तर पर फैला हुआ है। कोई भी शहर इससे अछूता नहीं है। मुरादाबाद, सहारनपुर, आजमगढ़, कानपुर जैसे तमाम जिलों में हलाल प्रमाणित उत्पादों का बड़ा बाजार है। बात कानपुर की कि जाए तो यहां से कई उत्पाद विदेशों विशेषकर मुस्लिम देशों में निर्यात होते हैं। इस कारण कुछ कारोबारी मजबूरी में इसमें फंस गए,जबकि खाद्य सुरक्षा मानक अधिनियम 2006 में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है। अब ऐसे व्यापारियों को इन उत्पादों पर रोक लगने के कारण करोड़ों का नुकसान सहना होगा। दरअसल, ज्यादातर लोग हलाल का मतलब बकरे का गला रेतने के बाद खून निकलने पर खाने के लिए मांस तैयार करना मानते थे। हलाल एक अरबी शब्द है, इसका अर्थ कानून सम्मत या जिसकी इजाजत इस्लामिक कानून (शरीयत) से है। इसलिए कुछ कंपनियां खाद्य सुरक्षा मानक अधिनियम में इसका प्रावधान न होने के बावजूद उत्पादों को प्रमाणित करने लगीं। हलाल पर रोक के बाद सक्रिय हुए खाद्य सुरक्षा विभाग एवं औषधि प्रशासन को मिले इनपुट से पता चला है कि प्रत्येक जिला हलाल प्रमाणित उत्पादों का व्यापार कर रहा है। खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन विभाग के सहायक आयुक्त विजय प्रतार्प ंसह का कहना है कि रोक लगने के कारण अब हलाल प्रमाणित उत्पादों के उत्पादन, बिक्री और भंडारण को रोका जाएगा। अगर कोई दुकानदार बिक्री करते या कोई कारोबारी उत्पादन करते मिला तो उस पर कार्रवाई होगी।

गौरतलब हो यूपी की योगी आदित्यनाथ सरकार ने कथित हलाल सर्टिफिकेट वाले उत्पादों के उत्पादन, भंडारण, वितरण और बिक्री पर रोक लगाने का बड़ा फैसला 18 नवंबर 2023 के एक महत्वपूर्ण आदेश में लिया है। लखनऊ में एक दिन पूर्व ही 17 नवम्बर 2023 को हलाल इंडिया प्राइवेट लिमिटेड कम्पनी और जमीयत उलेमा-ए-हिन्द सहित कुछ अन्य संस्थाओं एवं लोगों पर एफआईआर दर्ज हुई थी, जिसमें हलाल सर्टिफिकेट को हिन्दू आस्था पर आघात बताते हुए इससे जुड़े लोगों पर कार्रवाई करने की मांग की गई थी। केस दर्ज होने के बाद उत्तर प्रदेश शासन ने अगले दिन 18 नवम्बर को हलाल के बजाय एफएसएसआई एवं एफएसएसएआई के प्रमाणपत्र को मानकों के लिए उचित बताया था। इस केस में दर्ज हुई एफआईआर में हलाल इंडिया के चेन्नई और मुंबई कार्यालय के साथ जमीयत उलेमा ए हिन्द के दिल्ली और मुंबई ऑफिस को नामजद किया गया था। इसके अलावा हलाल सर्टिफिकेट को बढ़ावा देने वाली कुछ अज्ञात कम्पनियां, राष्ट्र विरोधी साजिश रचने वाले कुछ अन्य अज्ञात लोग, आतंकी गतिविधियों को बढ़ावा दे रहे अज्ञात समूह और जनआस्था से खिलवाड़ करने के साथ दंगे करवाने की साजिश रच रहे कुछ अज्ञात लोगों को नामजद किया गया है।

लखनऊ के ऐशबाग निवासी शैलेन्द्र कुमार ने अपनी शिकायत में कहा है कि हलाल सर्टिफिकेट मजहब के नाम पर धर्म विशेष के लोगों द्वारा जारी किया जा रहा है। इस साजिश में एक मजहब विशेष के लोगों के सामानों की बिक्री बढ़ाने के लिए हलाल के नाम पर छल किया जा रहा है। एफआईआर में कहा गया है कि जिन कंपनियों ने इनसे हलाल सर्टिफिकेट नहीं लिया है, उनकी बिक्री घटाने के लिए आपराधिक कृत्य किया जा रहा है। शिकायत में हलाल सर्टिफिकेट को मुस्लिमों को अपनी तरफ आकर्षित करने का खास तरीका बताया गया है। एफआईआर में आरोप है कि हलाल सर्टिफिकेट देने वाली कंपनियों ने सरकार के नाम का भी फर्जी कागजातों से दुरूपयोग किया है। हालात सर्टिफिकेट देने वाली कंपनियों के कागजातों में भी गड़बड़ी होने की बात कही गई है। इसके साथ ही कहा गया है कि इसके जरिए समाज में विभाजन पैदा करने की कोशिश की जा रही है।

शिकायतकर्ता ने सभी आरोपितों पर समाज में विद्वेष फैलाने, आपराधिक कृत्य कर के करोड़ों रुपए कमाने, राष्ट्र विरोधी साजिश रचने के साथ हलाल सर्टिफिकेट से मिल रहे पैसे से आतंकियों को र्फंंडग होने की आशंका जताई है। एफआईआर में कहा गया है कि इससे होने वाले अनुचित लाभ को देशविरोधी गतिविधियों में इस्तेमाल किया जाता है। तेल, साबुन, टूथपेस्ट, शहद आदि तक के लिए हलाल सर्टिफिकेट दिए जा रहे हैं, जबकि इनके लिए हलाल सर्टिफिकेट की आवश्यकता नहीं होती, क्योंकि ये शाकाहारी वस्तुएं हैं। शाकाहारी वस्तुओं के लिए हलाल सर्टिफिकेट की आवश्कयता नहीं होती। एफआईआर में आगे कहा गया है कि हलाल के द्वारा एक विशेष वर्ग द्वारा प्रचार किया जा रहा है कि उन वस्तुओं का इस्तेमाल न करो, जिन्हें हलाल सर्टिफिकेट नहीं दिया गया हो। इससे दूसरे वर्ग के व्यापारियों के हितों को नुकसान पहुंचाया जा रहा है। उधर, इस मामले में अब राजनीति भी होने लगी है। भाजपा जहां इसके पक्ष में तर्क दे रही है, वहीं विपक्ष सरकार की मंशा पर सवाल उठा रहे हैं। भाजपा प्रवक्ता राकेश त्रिपाठी ने कहा कि किसी को भी इस बात की छूट नहीं दी जा सकती है कि वह समाज की भावनाएं भड़काने की चेष्टा करे। वहीं सपा प्रवक्ता फखरुल हसन चांद को लगता है कि यह कोई मामला ही नहीं है। एफआईआर तो कोई भी किसी के खिलाफ करा सकता है, इसकी विवेचना होगी, तब हकीकत सामने आयेगी। आश्चर्य की बात है कि सरकार की नाक के नीचे यह सब कई वर्षों से चल रहा था और उसको इस बात की भनक तक नहीं थी। सरकार हलाल प्रकरण को हिन्दू-मुस्लिम और वोट बैंक के नजरिये से देख रही है, जबकि अखिल भारत हिन्दू महासभा के शिशिर चतुर्वेदी ने हलाल सर्टिफिकेट को एक प्रकार का नया जिहाद बताया है। उन्होंने सरकार पर हलाल सर्टिफिकेट प्रोडक्ट पर बैन लगाने की मांग की है। शिशिर चतुर्वेदी का कहना है कि सर्टिफिकेट के नाम पर बड़ी रकम वसूली जाती है, जो हिन्दुस्तान को जलाने वाले आतंकियों, चरमपंथियों पर खर्च की जाती है। यहां से उलेमा काउंसिल, सिमी, लश्कर आईएसआईएस जैसी संस्थाओं को पैसा दिया जाता है। उन्होंने मांग की है कि सरकार इस पर बैन लगाए, हिंदू महासभा साथ है। वहीं दारुल उलूम फिरंगी महली के प्रवक्ता सुफियान निजामी ने कहा है कि इस्लाम सिर्फ इबादत या अकीदे का नाम नहीं है।

इस्लाम मे अपने मानने वालों को उनर्की जिंदगी के हर मामले में रहनुमाई फरमाई है। हमें क्या खाना है, क्या इस्तेमाल करना है, यह तमाम चीज इस्लाम के दायरे में होनी चाहिए। वह कहते हैं कि जैसे हम गोश्त (मीट) खाते हैं, इसमें देखा जाता है कि गोश्त हलाल है या नहीं। उलेमा धार्मिक मान्यता के अनुसार इसको हलाल या हराम बताते हैंर्। ंहदुस्तान के अंदर जो गोश्त एक्सपोर्ट के जरिए दूसरे मुल्कों में जाता है उस पर हलाल सर्टिफिकेट मिला होता है। यहीं सर्टिफिकेट देखकर मुस्लिम देशों में इसे खरीदा जाता है। उनका कहना है कि अगर इस पर बैन लगता है तो इन देशों में इसकी खरीद बंद हो जाएगी, जिससे हमारे मुल्क की इकोनॉमी का बड़ा नुकसान होगा। हलाल प्रमाणपत्र पर जमीयत उलमा-एर्-ंहद हलाल ट्रस्ट का कहना है कि दुनियाभर में हलाल प्रॉडक्ट की मांग बहुत ज्यादा है। ऐसे में भारतीय कंपनियों के लिए ऐसा सर्टिफिकेट हासिल करना बहुत जरूरी है। इसके साथ ही ट्रस्ट की तरफ से की गई क्रिया निर्यात और घरेलू ग्राहकों की जरूरतों को पूरा करती है। ट्रस्ट के मुताबिक किसी भी प्रोडक्ट को हलाल सर्टिफाइड करने से पहले वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय की अधिसूचना में जारी सभी सरकारी नियमों का पालन किया जाता है। उनके मुताबिक सभी हलाल प्रमाणन निकायों को एनबीसीबी की तरफ से रजिस्टर्ड होना जरूरी है। ट्रस्ट हलाल प्रकरण योगी सरकार के निर्णय को कोर्ट में भी चुनौती देने का मन बना रही है। खैर, यह तय है कि हलाल का जिन्न अभी जल्दी बोतल में वापस नहीं जायेगा। इसके साथ ही इसमें भी कोई संदेह नहीं है कि कुछ लोग हलाल सर्टिफिकेट के नाम पर खूब हराम की कमाई कर रहे थे, उनके मसूबों पर योगी सरकार ने पानी फेर दिया है, ऐसे में इनका हो-हल्ला मचाना जायज है।

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