नई दिल्ली: भारतीय मजदूर संघ (बीएमएस) ने आगामी एक फरवरी को पेश होने वाले केंद्रीय आम बजट के मद्देनजर केंद्र सरकार को कुछ महत्वपूर्ण सुझाव दिए हैं। बीएमएस का कहना है कि महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) पर सरकार को जोर देना चाहिए क्योंकि कोरोना संकटकाल में इस योजना से लोगों को काफी सहूलियत मिली है।
बीएमएस ने यह भी कहा है कि मनरेगा की तर्ज पर शहरी क्षेत्रों के लिए भी कोई योजना लागू की जानी चाहिए क्योंकि शहरी क्षेत्रों में भी असंगठित क्षेत्र के कामगारों की संख्या कोई कम नहीं है।
केंद्रीय आम बजट को लेकर वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने शुक्रवार को बीएमएस और विभिन्न ट्रेड यूनियनों के साथ ऑनलाइन बैठक की। बैठक के दौरान बीएमएस और अन्य संगठनों ने बजट को लेकर वित्त मंत्री को कई सुझाव पेश किये।
बीएमएस उत्तर क्षेत्र के क्षेत्रीय संगठन मंत्री पवन कुमार ने शनिवार को हिन्दुस्थान समाचार को बताया कि हमने केंद्रीय वित्त मंत्री से मनरेगा को और विस्तार देने की मांग की है। हमने स्पष्ट रूप से कहा है कि इसके तहत हर परिवार को वर्ष में कम से कम 200 दिन का रोजगार उपलब्ध कराना सुनिश्चित किया जाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि इसके साथ ही शहरी क्षेत्रों में भी मनरेगा जैसी ही कोई योजना लागू की जानी चाहिए। क्योंकि शहरी क्षेत्रों में भी असंगठित क्षेत्र के कामगारों की संख्या ज्यादा है। बहुत से कामगार ऐसे हैं जो कोरोना संकटकाल में बेरोजगार हो गए हैं। सरकार को इन जरूरतमंद लोगों के लिए आगामी बजट में कोई प्रावधान करना चाहिए।
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उन्होंने कहा कि संगठित क्षेत्र के लिए कर्मचारी पेंशन योजना भी एक बड़ा मुद्दा है। हमने कर्मचारी पेंशन योजना के तहत न्यूनतम पेंशन की धनराशि कम से कम ₹5000 करने की भी मांग की है। इसके साथ ही हमने यह भी मांग की है कि इसमें प्रतिवर्ष 5 प्रतिशत की वृद्धि हो, साथ ही पेंशन को महंगाई भत्ते (डीए) से भी लिंक किया जाए। उन्होंने कहा कि यह समय की मांग भी है और हमें उम्मीद है कि सरकार इस दिशा में बजट में कोई प्रावधान जरूर करेगी।
उल्लेखनीय है कि केंद्रीय आम बजट संसद में एक फरवरी, 2021 को पेश किया जाना है। केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का कहना है कि सरकार कोरोना महामारी से प्रभावित अर्थव्यवस्था को संभालना और विकास को बढ़ावा देना चाहती है। उनका यह भी कहना है कि अच्छा बजट तब तक मुमकिन नहीं है जब तक मुझे आपके इनपुट और आपकी मांगें नहीं मिलती हैं।
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