Delhi : प्रदूषण से सांसत में जान
दिल्ली राजधानी क्षेत्र में आजकल हवा में पीएम 10 का स्तर 318 और पीएम 2.5 का स्तर 177 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से ज्यादा है जिसके फिलहाल कम होने की उम्मीद बेमानी है। जबकि स्वास्थ्य की दृष्टि से पीएम 10 का स्तर 100 से कम और पीएम 2.5 का स्तर 60 से कम ही उचित माना जाता है। खतरनाक स्थिति यह है कि दिल्ली के आसमान पर अब धुंध की परत साफ दिखाई दे रही है।
–जितेन्द्र शुक्ला
प्रदूषण दिल्लीवासियों की नियति बन चुका है। वैसे तो प्रदूषण की मार से दिल्ली के लोग साल के बारह महीने त्रस्त रहते हैं लेकिन सर्दी की शुरुआत दिल्ली वालों के लिए आफत लेकर आती है क्योंकि सर्दी शुरू होने के साथ ही साफ हवा उनके लिए भीषण समस्या बन जाती है। वायु प्रदूषण इसमें अहम भूमिका निभाता है जिसके चलते दिल्ली वालों का सांस लेना तक दूभर हो जाता है। मौजूदा हालात इस बात का सबूत हैं कि आसमान में प्रदूषण की मोटी परत के चलते दिल्ली वालों का दम फूल रहा है। वायु गुणवत्ता सूचकांक बेहद खराब श्रेणी में रहने के कारण दिल्ली के लोगों का सांस लेना दूभर हो गया है। साफ हवा के लिए ड्रोन से पानी का छिड़काव भी नाकाम साबित हो रहा है। स्थिति यह है कि दिल्ली में प्रदूषण का स्तर भयावह श्रेणी में पहुंचने के कारण अब ऐसे लोग भी भारी तादाद में अस्पताल पहुंच रहे हैं जिन्हें कभी भी सांस की बीमारी थी ही नहीं। हालात इतने खराब हो गये हैं कि ऐसी शिकायतें अब आम हो गयीं हैं जिनमें लोग कहते हैं कि अब जब वे सुबह उठते हैं तो उन्हें गले में तेज दर्द होता है और बार-बार मुश्किल से कफ निकल पाता है। केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार दिल्ली की हवा में प्रदूषण का जहर तेजी से बढ़ता जा रहा है। पिछले दिनों में वायु गुणवत्ता सूचकांक 300 से ऊपर यानी बेहद खराब श्रेणी में रहा है। पिछले दिनों दिल्ली में कहीं तो वायु गुणवत्ता सूचकांक अत्यंत गंभीर श्रेणी 400 के पार तक पहुंच गया। देखा जाये तो दिल्ली की हवा में इस समय सामान्य से तीन गुणा से भी ज्यादा प्रदूषण है।
दिल्ली राजधानी क्षेत्र में आजकल हवा में पीएम10 का स्तर 318 और पीएम2.5 का स्तर 177 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से ज्यादा है जिसके फिलहाल कम होने की उम्मीद बेमानी है। जबकि स्वास्थ्य की दृष्टि से पीएम10 का स्तर 100 से कम और पीएम2.5 का स्तर 60 से कम ही उचित माना जाता है। खतरनाक स्थिति यह है कि दिल्ली के आसमान पर अब धुंध की परत साफ-साफ दिखाई दे रही है। ऐसी हालत में दिल्ली के लोगों को जानलेवा प्रदूषित हवा से राहत मिलने की उम्मीद दूर की कौड़ी लगने लगी है। दी लैंसेट प्लेनेटरी हैल्प जरनल में प्रकाशित एक महत्वपूर्ण अध्ययन, जो दुनिया के 13,000 से अधिक शहरों और कस्बों पर किया गया है, के अनुसार दुनिया में पीएम2.5 से हर साल 10 लाख लोग मौत के मुंह में चले जाते हैं। इनमें अकेले 60 फीसदी लोग एशिया के होते हैं।
वायु प्रदूषण से हृदय, फेफड़े, मधुमेह, यकृत, हड्डियों के कमजोर होने, त्वचा और मूत्राशय के कैंसर जैसी बीमारियों के शिकार होते हैं लोग। यही नहीं, हवा में घुले धूल के छोटे-छोटे कण बेहद खतरनाक होते हैं। ये कण आंखों और नाक में घुसकर बड़ी परेशानी की वजह बन जाते हैं। यह वैज्ञानिक आधार पर साबित भी हो चुका है। अध्ययन और शोधों से यह साबित हो गया है कि वायु प्रदूषण से सांस के रोगियों की तादाद में ही बढ़ोतरी नहीं हो रही है बल्कि इससे अजन्मे शिशु का स्वास्थ्य भी गंभीर रूप से प्रभावित हो रहा है। पीएम2.5 बढ़ने से गर्भवती महिला के बच्चे का वजन 23.4 ग्राम और पीएम10 बढ़ने से गर्भ में पल रहे बच्चे का वजन 16.8 ग्राम कम हो जाता है। यही नहीं नाइट्रस आक्साइड में सांस लेने से 16 फीसदी गर्भपात होने का अंदेशा बना रहता है। इसके साथ ही प्रदूषण बच्चों के कम विकसित दिमाग और आटिज्म जैसे न्यूरो विकार की संभावना को बढ़ा देता है।
उधर, विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) के मुताबिक दुनिया की 99 फीसदी आबादी दूषित हवा में सांस ले रही है। इसका मतलब है कि दुनियाभर में करीब 782 करोड़ से ज्यादा लोग ऐसी हवा में सांस लेने को मजबूर हैं, जिसमें वायु प्रदूषण का स्तर डब्लूएचओ द्वारा तय मानकों से ज्यादा है। देखा जाए तो हवा में घुला यह जहर उनके स्वास्थ्य के लिए घातक हो सकता है। वायु प्रदूषण को लेकर डब्लूएचओ द्वारा जारी नवीनतम आंकड़ों में यह उजागर हुआ है। दुनिया में वायु प्रदूषण की समस्या कितनी गंभीर है इसका अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि हवा में घुला यह जहर हर साल 70 लाख से ज्यादा लोगों की जान ले रहा है। हालांकि डब्लूएचओ ने यह भी जानकारी दी है कि पहले की तुलना में अब कहीं ज्यादा शहर वायु गुणवत्ता की निगरानी कर रहे हैं। गौरतलब है कि वायु गुणवत्ता की निगरानी करने वाले शहरों की संख्या में पहले की तुलना में 2,000 शहरों का इजाफा हुआ है।
गौरतलब है कि जहां उच्च आय वाले देशों में निगरानी किए गए 17 फीसदी शहरों में पीएम10 और पीएम2.5 का स्तर डब्ल्यूएचओ द्वारा तय सीमा के भीतर था जबकि निम्न और मध्यम आय वाले देशों में यह आंकड़ा एक फीसदी से भी कम दर्ज किया गया है। आंकड़ों के मुताबिक दुनिया के करीब 74 देशों में 4000 शहरों में नाइट्रोजन डाइऑक्साइड सम्बन्धी आंकड़े एकत्र किए जा रहे हैं, जिनसे पता चला है कि इन स्थानों की लगभग 23 फीसदी आबादी ऐसी हवा में सांस ले रही है जो डब्लूएचओ के वायु गुणवत्ता दिशानिर्देशों को पूरा नहीं करते हैं। शोध के अनुसार पार्टिकुलेट मैटर, विशेष रूप से पीएम2.5 फेफड़ों और यहां तक की रक्त प्रवाह में भी प्रवेश कर सकता है जिससे हृदय आघात, स्ट्रोक और सांस सम्बन्धी विकार पैदा हो सकते हैं। इस बात के भी प्रमाण सामने आए हैं कि पार्टिकुलेट मैटर शरीर के कई अन्य अंगों को भी प्रभावित कर सकता है। साथ ही कई बीमारियों के जोखिम को और बढ़ा सकता है।